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राजा का हाथी

मनोबल ही महत्वपूर्ण है। वह जाग उठे, तो असंभव सा दिखने वाला काम भी सहज हो जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2015 09:47 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 09:55 AM (IST)
राजा का हाथी

गौतम बुद्ध ने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई थी। विराट नगर के राजा सुकीर्ति के पास लौहशांग नामक एक हाथी था, जिस पर चढ़कर राजा ने कई युद्धों में विजय पाई थी। युद्ध कला में प्रवीण लौहशांग जब हुंकार भरता हुआ शत्रु-सेनाओं में घुसता, तो विपक्षियों के पांव उखड़ जाते थे।

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एक ऐसा समय आया, जब लौहशांग वृद्ध हो गया। उसका पराक्रम समाप्त हो गया। उसके भोजन में कमी कर दी गई। कई बार हाथी को भूखा-प्यासा ही रहना पड़ता। कई दिनों से पानी न मिलने के कारण एक बार लौहशांग हाथीशाला से निकलकर तालाब की ओर चल पड़ा, जहां उसे पहले ले जाया जाता था। उसने भरपेट पानी पीकर प्यास बुझाई और गहरे जल में उतर गया। उस तालाब में दलदल था, जिसमें वह फंस गया। जितना भी वह निकलने का प्रयास करता, वह उतना ही फंसता जाता। जब यह समाचार राजा तक पहुंचा, तो वे बड़े दु:खी हुए। हाथी को निकलवाने के प्रयास किए, पर सभी निष्फल। तब एक चतुर सैनिक ने युक्ति सुझाई।

उसने कहा कि सभी सैनिकों को युद्ध की वेशभूषा पहनाई जाए और युद्ध के बाजे बजवाए जाएं। हाथी के सामने युद्ध-नगाड़े बजने लगे। सैनिक लौहशांग की ओर ऐसे बढ़े, जैसे युद्ध में आक्रमण कर रहे हों। यह देखकर लौहशांग में पुराना जोश आ गया। वह आक्रमण करने के लिए पूरी शक्ति से दलदल को रौंदता हुआ तालाब के तट पर जा पहुंचा।

कथा मर्म : मनोबल ही महत्वपूर्ण है। वह जाग उठे, तो असंभव सा दिखने वाला काम भी सहज हो जाता है।


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