कर्म के लिए जरूरी है ध्यान
हमारा कोई भी काम तब तक उत्कृष्ट नहीं होता, जब तक हमारा ध्यान न सधा हो। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन...
हमारा कोई भी काम तब तक उत्कृष्ट नहीं होता, जब तक हमारा ध्यान न सधा हो। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन...
तस्मात य इह मनुष्याणां महत्तां प्राप्नुवंति/ध्यानापादांशा इवैव ते भवंति।
इस श्लोक का अर्थ है कि जिन्हें दुनिया में महत्ता प्राप्त होती है, वह ध्यान के कारण ही होती है। मैं ध्यान के लिए हिमालय जाने के लिए घर से निकला, किंतु सौभाग्य से गांधीजी के पास पहुंच गया। गांधीजी के पास मुझे ध्यान का पर्याप्त लाभ मिला। जब हम सेवा करते हैं, तब हमें ध्यान का मौका मिलता है। जो सेवा की, वह परमेश्वर
की सेवा हुई, ऐसा मानेंगे तो वह ध्यान-योग होगा।
ध्यान साधना कर्मयोगमय होनी चाहिए। च्योगज् का नाम लेते ही कर्मशून्य ध्यान-साधना का भ्रम होता है। कर्म
छोड़कर काल्पनिक ध्यान के पीछे लगना पैर को तोड़कर रास्ता तय करने की कोशिश करने के बराबर है।
कर्मयोगी इन दोनों दोषों से दूर रहता है। कर्म करने के लिए मनुष्य को दस-पांच चीजों की तरफ खूब ध्यान देना पड़ता है। वह भी एक तरह का विविध ध्यान-योग ही है। चर्खा कातना हो, तो इधर पहिए की तरफ ध्यान देना
पड़ता है, तो उधर पूनी खींचने की तरफ। साथ में सूत लपेटने की तरफ भी ध्यान देना पड़ता है। बहनों को
रसोई का काम करते समय कई बातों की तरफ ध्यान देना पड़ता है। इधर चावल पक रहा है तो उसे देखना, उधर
आटा गूंथना, रोटी बेलना, सेंकना, तरकारी काटना। इसमें भी विविध ध्यान-योग है।
लोगों के मन में एक गलतफहमी रही है कि कर्म करना सांसारिकों का काम है और ध्यान करना अध्यात्म की चीज है। इस गलत खयाल को मिटाना बहुत जरूरी है। अगर ध्यान का अध्यात्म से संबंध जोड़ा जाए, तो वह आध्यात्मिकहै।
हमने खेत में कुदाल चलाई, कुआं खोदने का काम किया, कताई, बुनाई, रसोई, सफाई आदि तरह-तरह के काम
भी किए। बचपन में हमारे पिताजी ने हमसे रंगाई, चित्रकला, होजरी वगैरह के काम करवाए थे। वह सब करते
समय हमारी यही भावना थी कि हम इस रूप में एक उपासना कर रहे हैं। ध्यान और कर्म परस्पर पूरक शक्तियां
हैं। कर्म के लिए दस-बीस क्रियाएं करनी होती हैं, यानी उन सबका ध्यान करना पड़ता है। हमारा सब काम ध्यानस्वरूप होना चाहिए। मिसाल के तौर पर बाबा (स्वयं विनोबा) रोज घंटा, डेढ़ घंटा कभी-कभी ढाई
घंटे तक सफाई करता है। सफाई में एक-एक तिनका, पत्ती, कचरा उठाता है और टोकरी में डालता है।
परंतु बाबा को जो अनुभव आता है, वह सुंदर ध्यान का अनुभव आता है। माला लेकर जप करेगा तो जो अनुभव
आएगा, उससे किसी प्रकार से कम या अलग अनुभव नहीं, बल्कि ऊंचा ही है। यह एक ध्यान-योग ही है। यह
मानकर चलिए कि जो आदमी बाहर जरा भी कचरा सहन नहीं करता, वह अंदर का कचरा भी सहन नहीं करेगा।
उसे अंदर का कचरा निकालने की जोरदार प्रेरणा मिलेगी।
काम करते समय ध्यान होना ही चाहिए। जो लोग दुनिया में महत्ता प्राप्त करते हैं, वह उनको ध्यान के कारण ही
प्राप्त होती है। कबीर ने वर्णन किया है- माला तो कर में फिरे यानी हाथ में माला घूम रही है, मुख में जबान घूम
रही है और चित्त दुनिया में घूम रहा है। ध्यान के लिए आलंबन चाहिए।