भारत के विभिन्न राज्यों में कैसे व क्यों मनाई जाती है होली
बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है जबकि नेपाल की होली में इस पर धार्मिक व् सांस्कृतिक रंग दिखाई देते है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 03:00 PM (IST)Updated: Thu, 09 Mar 2017 09:35 AM (IST)
शिव पुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने भेजा परन्तु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव जी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अहंकार की, अहं की, वैर-द्वेष की, ईर्ष्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम।
प्रह्लाद और होलिका का प्रसंग तो लगभग सभी लोग जानते हैं। माना जाता है कि होली पर्व का प्रारंभ प्रह्लाद और होलिका से जुड़ा है। दोनों की कथा विष्णु पुराण में उल्लिखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से, न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी, परन्तु पुत्र प्रह्लाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दीं परन्तु उसने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए प्रह्लाद सहित आग में प्रवेश करा दिया परन्तु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। बस प्रह्लाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
भारत में बहुत से ऐसे त्यौहार मनाए जाते है जिनका उत्साह सभी प्रदेशवासियों में एक समान देखने को मिलता है. उन्ही में से एक है होली, जिसे देश के लोग उत्साह के साथ मनाते है. होली वसंत ऋतू में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है।
मुख्य तौर पर नेपाल और भारत के लोगो में इसका अधिक उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन लोग एक दुसरे पर रंग, गुलाल कबीर आदि फेंकते है और ढोल बजा कर होली के गीत गाते है साथ ही घर-घर जाकर अपने दोस्तों आदि को भी रंग लगाया जाता है।
होली मनाने का एक ही उद्देश्य होता है लोगो को अपने प्यार के रंग में रंगना. लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों में होली मनाने का आलग अलग तरीका है. जैसे की वृन्दावन में फूलो की होली खेली जाती है जबकि बरसाने में लट्ठमार होली का चलन है. आगे हम आपको विभिन्न प्रदेशो में होली मनाने के विभिन्न तरीको के बारे में बताने जा रहे है. ताकि आप भी जान सके की भारत के अलग अलग राज्यों में होली कैसे मनाई जाती है?
कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां होती है। यह सब होली के कई दिनों पहले ही शुरू हो जाते है। हरियाणा की धुलेंडी में भाभी द्वारा देवर को परेशान करने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जुलुस के साथ-साथ गाना बजाना भी चलता है। इसके अलावा महाराष्ट्र की रंगपंचमी में सुखा गुलाल खेलने, गोवा में शिमगो तथा पंजाब में होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की प्रथा है।
तमिलनाडू की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोत्सव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्ही झोपडी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी तथा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है जबकि नेपाल की होली में इस पर धार्मिक व् सांस्कृतिक रंग दिखाई देते है। इसी तरह विभिन्न देशो में बसे प्रवासी तथा धार्मिक संस्थाओ जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग-अलग प्रकार से होली के श्रृंगार व् उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमे कई समानताए और भिन्नताएं है।
होली भारत में ऐसे त्यौहार है जिनका उत्साह सभी प्रदेशवासियों में एक समान देखने को मिलता है
बरसाने की “लट्ठमार होली”
पंजाब का “होला मोहल्ला”
हरियाणा की “धुलेंडी”
बिहार की “फागु पूर्णिमा”
राजस्थान की “होली”
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