आधी रोटी अच्छी है, कुछ नहीं से
'जब जन साधारण जाग उठेगा तो वह तुम्हारे द्वारा किए गए दमन को समझ जाएगा। और उनके दारुण दुखों की एक आह तुम्हें पूर्णरूपेण नष्ट कर देगी।"
स्वामी विवेकानंद के हृदय में गरीबों एवं पददलितों के प्रति असीम संवेदना थी। उन्होंने कहा, राष्ट्र का गौरव महलों में सुरक्षित नहीं रह सकता, झोंपडि़यों की दशा भी सुधारनी होगी। गरीबों यानी दरिद्रनारायण को उनके दीन हीन स्तर से ऊंचा उठाना होगा। यदि गरीबों एवं शूद्रों को दीन हीन रखा गया तो देश और समाज का कोई कल्याण नहीं हो सकता है। विवेकानंद के समाजवादी अंतरआत्मा ने चीत्कार कर कहा, ‘’ मैं उस भगवान या धर्म पर विश्वास नहीं कर सकता जो न तो विधवाओं के आंसू पोंछ सकता है और न तो अनाथों के मुंह में एक टुकड़ा रोटी ही पहुंचा सकता है।‘’ दलित उत्थानयुक्त समाजवाद विवेकानंद में श्रमिक वर्ग के प्रति जबरदस्त सहानुभूति थी।
स्वामी विवेकानंद ने लिखा है, '' मैं समाजवादी हूं, इसलिए नहीं कि मैं इसे पूर्ण रूप से निर्दोष व्यवस्था समझता हूं, बल्कि इसलिए कि आधी रोटी अच्छी है, कुछ नहीं से।'' स्वामी विवेकानंद के समाजवाद को समझने के लिए उनकी पुस्तक, 'जाति, संस्कृति और समाजवाद' को पढ़ने की जरूरत है...और फिर पता चलेगा कि उनका समाजवाद, समाजवाद के नाम पर इस देश में राजनीति करने वालों से बिल्कुल भिन्न था। उनके समाजवाद में नर ही नारायण है।
विवेकानंद को जनसाधारण की शक्ति में अटूट विश्वास था। वे इस बात को भांप गए थे कि सामान्य जनता में जब तक जागृति का संचार नहीं होगा तब तक समाज में घोर विषमता व्याप्त रहेगी और उच्च वर्ग निर्धनों का शोषण अविरल करते रहेंगे। निष्ठुर पूंजीपतियों और जमींदारों को उन्होंने चेतावनी देते हुए आगाहर किया था, उन्होंने कहा था, ''जब जन साधारण जाग उठेगा तो वह तुम्हारे द्वारा किए गए दमन को समझ जाएगा। और उनके दारुण दुखों की एक आह तुम्हें पूर्णरूपेण नष्ट कर देगी।"
विवेकानंद समाजवाद के लिए वर्ग क्रांति नहीं, धर्म क्रांति के पक्षधर थेविवेकानंद काविश्वास न तो कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद में था और न ही मार्क्स के अनुयायियों की तरह वह वर्ग संघर्ष में विश्वास करते थे। वह मानते थे कि वेदांत पर आधारित सामाजिक दर्शन में वर्ग संघर्ष का कोई स्थान नहीं है। भारत के जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए भी वे आदि काल के वर्ण व्यवस्था के पक्षधर थे। वो चाहते थे कि निम्न वर्ग को उच्च वर्ग तक उठने का अवसर मिले- यही वेदांत का मूल संदेश है।
स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि भारत में किसी भी सुधार के लिए सबसे पहले धर्म में एक क्रांति लाना आवश्यक है। उनका कहना था कि " हमें देश में समाजवादी विचारों की बाढ़ लाने से पहले यहां आध्यात्मिक विचारों की धारा प्रवाहित करनी चाहिए।"