गुरु तेग बहादुर: बलिदान दिवस...
गुरु तेगबहादुर न सिर्फ विनम्र थे, बल्कि वीरता के पर्याय भी थे। उन्होंने गलत नीतियों के विरुद्ध शांतिपूर्ण बलिदान दे दिया...।
गुरु तेगबहादुर न सिर्फ विनम्र थे, बल्कि वीरता के पर्याय भी थे। उन्होंने गलत नीतियों के विरुद्ध शांतिपूर्ण बलिदान दे दिया...।
सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी का व्यक्तित्व वीरता, त्याग, विनम्रता और सहजता का अदभुत समन्वय था। वे छठे गुरु हरगोविंद जी के पुत्र थे, जिन्होंने प्रथम बार शस्त्र धारण करके अचंभित कर दिया था और 'मीरी व पीरीÓ की अवधारणा को प्रतिपादित किया था।
गुरु तेग बहादुर जी के जन्म के समय ही हरगोविंद जी ने कह दिया था कि यह पुत्र बड़ा होकर वीर और तेग का धनी होगा, इसीलिए उनका नाम तेग बहादुर रखा गया। गुरु तेग बहादुर जी एक हृष्ट-पुष्ट, साहसी और युद्ध कला में प्रवीण युवक बन कर उभरे और करतारपुर के युद्ध में अपने पिता के नेतृत्व में मुगल सेना के विरुद्ध लड़े। उन्होंने शास्त्रों-ग्रंथों की शिक्षा प्राप्त कर नई आध्यात्मिक सोच विकसित की। उनके द्वारा रची गई वाणी बाद में श्री गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हुई, जो मन के अंधेरे कोनों में ज्ञान का दीप जलाकर जीवन को प्रकाशित कर देती है।
जब तेगबहादुर जी गुरु गद्दी पर बैठे, तब देश के हालात बिगड़ चुके थे। मुगल बादशाह औरंगजेब अपनी धर्मांध नीतियों के तहत दूसरे धर्म के लोगों को धर्म परिवर्तन न करने पर प्रताडि़त कर रहा था। कश्मीरी पंडितों का एक दल औरंगजेब के विरुद्ध अपनी फरियाद लेकर पहुंचा और उसके जुल्म की दास्तान सुनाई, तो मात्र नौ वर्ष के गोविंद सिंह जी ने राय दी कि अन्याय की इस पराकाष्ठा के बाद अब बलिदान की आवश्यकता है। गुरु तेग बहादुर जी ने दल से कहा कि वे मुगलों से कह दें कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करो, फिर हम सब तैयार हो जाएंगे।
गुरु साहब के इस संदेश का असर यह हुआ कि उनकी गिरफ्तारी का आदेश जारी हो गया। इस बीच गुरु जी ने घूम-घूम कर लोगों में नई चेतना का संचार किया। जब वे आगरा में थे, उन्हें शाही सेना ने गिरफ्तार कर लिया और दिल्ली ले आए। किले में भीषण यातनाएं देकर उन्हें शहीद कर दिया। पर उन्होंने परिस्थितियों से घबराकर अपने सिद्धांतों और नीतियों से समझौता नहीं किया।
गुरुजी के बलिदान से लोगों में मौजूदा शासन के विरुद्ध आक्रोश तीव्र हुआ। आगे का काम गुरु गोविंद सिंह जी ने किया, जिससे मुगल साम्राज्य की चूलें हिल गईं और धर्मांधता का अंत हुआ।
गुरु तेग बहादुर का बलिदान देश की धार्मिक, सांस्कृतिक रक्षा का ही नहीं, एक वीर पुरुष का शांतिमय बलिदान था, जिसने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी।