सतगुरु परमात्मा ही हैं सर्वशक्तिमान
गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। स्वयं भगवान कृष्ण और राम भी गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के लिये गुरुकुल गये थे। इतना ही नहीं हुनमान जी ने सूर्य देव का आना गुरु बनाया था।
एक गुरु शास्त्रों के अध्ययन एवं तपस्या द्वारा प्राप्त अपने ज्ञान खजानों से शिष्यों का पालन करता है, जिसके फलस्वरूप शिष्य फिर उन्हें अपने हृदय में उच्चतम स्थान देते हैं। गुरु का स्थान ब्रम्ह से भी ऊपर होता है।
गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नम:
सदियों से हमारे शिक्षा पाठ्यक्रम का एक हिस्सा रहा है और आज भी है। बचपन में, हम में से अधिकांश लोग इस मंत्र को प्रार्थना के रूप में सर्वोच्च सत्ता परमात्मा, जो हम सभी आत्माओं के सतगुरु हैं, से आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु गाते थे। भारत देश में गुरु करने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। हिंदू समाज में तो ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में गुरु नहीं किया, उसका जीवन निरर्थक है। जन्म के समय से ही, बच्चे को अपने पारिवारिक गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ले जाया जाता है और फिर जब वह बड़ा होकर अपनी पढ़ाई, कारोबार एवं वैवाहिक जीवन की शुरुआत करता है, तब भी वह अपने गुरु की सलाह और उनके आशीर्वाद की उम्मीद रखता है।
गुरु एवं सतगुरु के बीच की जो भेद रेखा
यह वास्तव में काफी श्रद्धामय परंपरा है, जो दोनों पक्षों को पारस्परिक रूप से सुरक्षा की भावना प्रदान करती है। एक गुरु शास्त्रों के अध्ययन एवं तपस्या द्वारा प्राप्त अपने ज्ञान खजानों से शिष्यों का पालन करता है, जिसके फलस्वरूप शिष्य फिर उन्हें अपने हृदय में उच्चतम सन्मान का स्थान देते हैं। मगर, गुरु-शिष्य के बीच का यह सौहार्दपूर्ण संबंध तब अवास्तविक बन जाता है, जब गुरुसर्वशक्तिमान परमात्मा का स्थान लेने की शुरुआत कर देता है। इन हालातों में यह अत्यंत जरूरी हो जाता है कि हम गुरु एवं सतगुरु के बीच की जो भेद रेखा है, उसका बारीकी से अध्ययन करें।
गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर
हमें यह तथ्य समझना होगा की सभी धर्मों के संस्थापकों ने अपने धार्मिक उपदेशों में कई बार यह उल्लेख किया था कि वे भगवान नहीं हैं। लेकिन, दुर्भाग्य से आज अधिकांश धार्मिक अनुयायी अपने धर्म पिता एवं गुरुओं को भगवान समझकर ही पूजते हैं इसलिए इस तरह की भ्रामक स्थिति से खुद को बचाने के लिए हमें सर्वप्रथम गुरु के कार्यों को समझने की आवश्यकता है ताकि हम खुद को एवं हमारे जैसी अन्य प्रभु स्नेही आत्माओं को मुक्ति का सच्चा रास्ता बता सकें और सर्वशक्तिमान परमात्मा के साथ समन्वय स्थापित करने में उनका मार्गदर्शन कर सकें।
गुरु के बिना नहीं हो सकती है ज्ञान की प्राप्ति
हमें यह मूलभूत बात भी स्वीकार करनी होगी कि संसार में गुरुओं के बारे में जो दावे किए जाते हैं कि वह अपने भक्तों के सभी पापों को खत्म करने में सक्षम होते हैं एवं सभी देवताओं के ऊपर हैं इत्यादि, यह सभी दावे केवल उस एक सतगुरु परमात्मा के लिए ही किए जा सकते हैं, न कि किसी देहधारी के लिए क्योंकि अन्य सभी तो हमारे जैसे नश्वर प्राणी हैं जो समय और प्रकृति की सीमाओं से बंधे हुए हैं। अत: वे एक सीमित हद तक ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। दूसरा किसी अन्य व्यक्ति के पापों को खत्म करने की अवधारणा कर्म के कानून के विपरीत है क्योंकि उसके अनुसार हर आत्मा को उसके कर्मानुसार फल की प्राप्ति होती है। अत: पापियों के पाप यदि कोई हर सकता है तो वह केवल एक सतगुरु परमात्मा ही हैं जो गुरुओं के भी गुरु हैं।
सर्वोच्च सत्ता परमात्मा ही हैं हमारे मार्गदर्शक
वर्तमान समय में नकारात्मक माहौल और भावनाओं ने सभी के मन के ऊपर राज्य बना लिया है, जिसके फलस्वरूप सभी मनुष्य आत्माएं धर्म की छत्रछाया में एक स्थाई शरण खोजने में असमर्थ हो रही हैं। यह लक्षण उस शुभ घड़ी की ओर इशारा कर रहे हैं, जब 'सर्वोच्च सत्ता परमात्मा स्वयं मार्गदर्शक के रूप में हम सभी आत्माओं का मार्गदर्शन करने आएंगे और जीवन मुक्ति के पथ की ओर चलने की हमारी यात्रा का नेतृत्व करेंगे।