गुरु अमरदास: सेवा ही धर्म है
तीसरे सिख गुरु अमरदास जी जहां सेवा और समर्पण के आदर्श बने, वहीं धर्म को लोक कल्याण का माध्यम बनाया। कल उनका प्रकाशोत्सव था।
तीसरे सिख गुरु अमरदास जी जहां सेवा और समर्पण के आदर्श बने, वहीं धर्म को लोक कल्याण का माध्यम बनाया। कल उनका प्रकाशोत्सव था।
इकसठ वर्ष से अधिक आयु के हो चुके थे, जब एक बार प्रात: उनके कानों में गुरुवाणी के बोल पड़े। ये बोल उनके हृदय में उतर गए। उन्हें पता लगा की यह वाणी गुरु नानक देव जी की है, जिनके मिशन को गुरु अंगद देव जी आगे बढ़ा रहे हैं। गुरु अमरदास जी अपनी आयु का ध्यान न करके तन-मन से गुरु अंगद देव जी की सेवा में रत हो गए। नित्य भोर में उठकर तीन कोस दूर व्यास नदी से गागर में जल लाते, जिससे गुरु अंगद देव जी स्नान करते। फिर लंगर और संगत की सेवा में लग जाते। उनकी सेवा और विनम्रता से प्रभावित होकर गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी पर आसीन किया। गुरु अमरदास जी ने समाज में जाति भेदभाव और छुआछूत जैसी प्रथाओं को तोड़ने पर विशेष ध्यान दिया। कई श्रद्धालु कथित निम्न जातियों से मेलजोल में संकोच करते। इसीलिए गुरु जी ने आदेश दिया कि जो सभी के साथ पंक्ति में बैठकर लंगर छकेगा, वही उनके दर्शन कर सकेगा। मुगल शासक अकबर ने भी नीचे बैठ सबके साथ लंगर ग्रहण किया। गुरु जी ने सती प्रथा और स्त्रियों की पर्दा प्रथा के विरुद्ध भी चेतना का संचार किया। संगत में स्त्रियां बिना मुंह ढके आने लगीं। यह बड़ा सामाजिक बदलाव था। उन्होंने सादगीपूर्ण विवाह पर जोर दिया और धर्म के प्रसार में स्त्रियों को भी लगाया। अमृतसर की स्थापना की योजना भी गुरु अमरदास जी की ही थी। अपने पूर्ववर्ती गुरु नानक व गुरु अंगद देव जी की तरह गुरु अमरदास जी ने भी गुरुवाणी की रचना की, जो श्रीगुरुग्रंथ साहिब में शामिल है।