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ईश्वर एक है

जिस प्रकार पानी को कोई जल, कोई पानी, कोई वाटर कहता है, इसी तरह ईश्वर को कोई हरि, कोई अल्लाह, तो कोई गॉड कहता है। जैसे मिठाई अलग-अलग आकार की होती है, उसी तरह ईश्वर भी देश-काल के अनुसार अलग रूपों में होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 03:45 PM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 03:51 PM (IST)
ईश्वर एक है

जिस प्रकार पानी को कोई जल, कोई पानी, कोई वाटर कहता है, इसी तरह ईश्वर को कोई हरि, कोई अल्लाह, तो कोई गॉड कहता है। जैसे मिठाई अलग-अलग आकार की होती है, उसी तरह ईश्वर भी देश-काल के अनुसार अलग रूपों में होते हैं।

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एक बड़े से तालाब में बहुत से घाट होते हैं, पर हर घाट पर एक ही पानी मिलता है। इसलिए मेरा घाट अच्छा है, तुम्हारा नहीं, यह कहकर परस्पर झगड़ना अच्छी बात नहीं। सभी धर्म मानों एक ही घाट हैं। लगन के साथ इनमें किसी भी एक घाट के सहारे आगे बढ़ कर तुम उस सरोवर में उतर सकते हो। यह कभी मत कहो कि मेरा धर्म श्रेष्ठ है। अज्ञान के कारण ही मनुष्य अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमतर बताता है। जब यथार्थ का ज्ञान हो जाता है, तो यह कलह भी शांत हो जाती है। बड़े तालाबों में स्वच्छ जल में दल (काई) नहीं होता, वह छोटी सड़ी तलैया में ही पैदा होता है। इसी

प्रकार जिस संप्रदाय के लोग शुद्ध, उदार, नि:स्वार्थ भाव से काम करते हैं, उनमें भी दल का निर्माण नहीं होता। जिस तरह आकाश को बांटा नहीं जा सकता, इसी प्रकार ईश्वर को भी धर्र्मों में नहीं बांटा जा सकता।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस


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