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जीवन को दिशा देता गुडी पड़वा

गुडी पड़वा का पर्व हमारे जीवन को एक दार्शनिक आयाम भी प्रदान करता है..।

By Edited By: Published: Sat, 13 Apr 2013 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2013 11:33 AM (IST)
जीवन को दिशा देता गुडी पड़वा

गुडी पड़वा दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। गुडी पड़वा यानी विद्या विनय की सीख देने का दिन। दरवाजे पर तनकर खड़ी गुडी (जिसका अर्थ है विजय पताका) स्वाभिमान से जीने और जमीन पर लाठी की तरह गिरते ही साष्टांग दंडवत कर जिंदगी के उतार-चढ़ाव में बगैर टूटे उठने का संदेश देती है।

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गुडी पड़वा में जीवन का आध्यात्मिक गुरुमंत्र छिपा है। तनकर खड़ी गुडी परमार्थ में पूर्ण शरणगति यानी एकनिष्ठ शरणभाव का संदेश देती हैं, जो ज्ञान प्राप्ति के परमानंद का अहम साधन है। वहीं पड़वा साष्टांग नमस्कार (सिर, हाथ पैर, हृदय, आंख, जांघ, वचन और मन आठ अंगों से भूमि पर लेटकर किया जाने वाला प्रणाम) का संकेत देता है। इस एक दिन के त्योहार में आपको आदर्श जीवन के प्रतिबिंब नजर आते हैं। गुडी की लाठी को तेल-हल्दी लगाकर सजाते हैं। उस पर चांदी या तांबे का उल्टा लोटा रखकर रेशमी वस्त्र, फूलों के हार व नीम की टहनी से सजाकर दरवाजे पर खड़ी करते हैं। तनी हुई रीढ़ से इज्जत के साथ गर्दन हमेशा ऊंची रखकर जीना ही तो गुडी हमें सिखाती है। श्वेत केशरी हार और नीम के फूलों की डाल को समभाव से कंधे पर डाले शान से खड़ी गुडी कामयाबी और नाकामयाबी में बिना गिरे संघर्ष करना सिखाती है।?

ऋतु संधिकाल में तृष्णा-हरण शक्कर और रोगप्रतिरोधक नीम और गुड़ धनिए की योजना हमारे पूर्वजों के आयुर्वेद के समन्वय को दर्शाती है। पोर-पोर की लाठी में रीढ की समानता नजर आती है, तो चांदी का बर्तन मस्तक का प्रतीक है। उत्तम चैत्र मास और ऋतु बसंत का यह दिन जब सूर्य किरणों में नई चमक होती है। तनी हुई रीढ़ पर अधिष्ठित बर्तन सूर्य की किरणों को इकट्ठा कर उन्हें परिवर्तित भी करता है। परिपूर्ण विचार का धन और आत्मज्ञान सूर्य जैसे तपस्वी गुरु से प्राप्त कर तेजस्वी बुद्धि हासिल कर लोक कल्याण की प्रेरणा से उसे समाज को दान देने का संकेत भी गुडी ही देती है।

बसंत ऋतु को पहली ऋतु और सृष्टि के सृजन का प्रतीक माना जाता है। इसी बसंत की शुरुआत होती है गुडी पड़वा से।

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