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चक्रव्यूह से निकालती है गीता

जीवन में जब भी संकट आता है, गीता में श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उपदेश हमें इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने का रास्ता दिखाता है। गीता जयंती (2 दिसंबर) पर चिंतन...

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 02 Dec 2014 10:22 AM (IST)Updated: Tue, 02 Dec 2014 10:29 AM (IST)
चक्रव्यूह से निकालती है गीता

जीवन में जब भी संकट आता है, गीता में श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उपदेश हमें इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने का रास्ता दिखाता है। गीता जयंती (2 दिसंबर) पर चिंतन...

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मद्गवद्गीता के अध्याय 16 के श्लोक 24 में कहा गया है - तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।। अर्थात तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। यानी हमारे कार्य-व्यवहार को शास्त्र सही राह दिखाते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता भी शास्त्र है, जो हमें जीवन के चक्रव्यूह से बाहर निकालती है।

आप जब भी हवाई जहाज की यात्रा करते हैं तो आपको हमेशा विमान परिचारिका विमान उड़ने से पहले कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं देती है। उन सूचनाओं में सबसे प्रमुख है कि विमान में कितने निकास द्वार अर्थात एक्जिट डोर हैं। भले ही आपने जीवन में कई बार हवाई यात्राएं की होंगी, फिर भी हर बार आपको सुरक्षा नियम बताए जाते हैं। आपने शायद एक बार भी उन निकास द्वारों का प्रयोग न किया हो, परंतु आपातकाल में उनका प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इसी तरह जीवन की उड़ान में भी हमारे पास एक्जिट पॉलिसी अर्थात निकास पद्धति होनी ही चाहिए।

आमतौर पर आप अपनी कार का, घर का तथा घर की वस्तुओं का भी बीमा कराते हैं, क्योंकि आप चाहते हैं कि इन वस्तुओं को कोई नुकसान न पहुंचे, परंतु अगर कुछ हो भी जाए तो आप नुकसान के उस

झटके को सहने में सक्षम हो सकेें। हम बात कर रहे हैं दुख झेलने की उस क्षमता की, जो दुख के आने से पहले हमारे भीतर पैदा हो जाती है। दुख अगर बताकर आए तो सहना आसान है, परंतु यदि एकदम आ जाए तो मुश्किल आ जाती है। उदाहरण के लिए, यदि आपको मालूम हो कि कल सप्लाई का पानी नहीं आएगा, तो आप अपने आपको इसके लिए तैयार कर सकते हैं, पर अगर बिना सूचना के अचानक पानी चला जाए तो उसे झेलना काफी मुश्किल हो जाता है। आर्थिक समस्याओं के लिए तो हम अक्सर तैयार रहते हैं, शारीरिक स्तर पर भी हम कुछ हद तक स्वयं को सक्षम बना लेते हैं, पर प्रहार जब मन पर होता है तो हमारे पास कोई भी एक्जिट पॉलिसी अर्थात उस समस्या से निकलने का द्वार नजर नहीं आता। ऐसे में हम उन लोगों की शरणागति जाते हैं जो ख़ुद अपनी समस्याओं में उलझे हुए होते हैं। किसी शायर ने कहा है, 'थामा था उनका हाथ जो ख़ुद ढूंढते थे सहारा।Ó

इसीलिए कहा जाता है कि जब भी आप खुद को संकट की स्थिति में पाएं, तो शास्त्रों का सहारा लीजिए। जब किसी शब्द की स्पेलिंग या अर्थ पर आप अटकते हैं तो शब्दकोश की शरण में जाते हैं, फिर शब्दकोश में जो भी लिखा हो उसको आप अक्षर-अक्षर स्वीकार करते हैं।

हमारा जीवन एक तरह का महाभारत ही है और हम सब इसमें अभिमन्यु की तरह हैं, जिसे कठिनाइयों के चक्रव्यूह में आना तो आता है, पर निकलना नहीं आता। इस जीवन के चक्रव्यूह से निकलना तथा निकालना आता है भगवान कृष्ण की वाणी गीता को, परंतु आज हम गीता से बहुत दूर चले गए हैं।


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