दोस्ती की आग
मदद करने का वह जज्बा अकूत धन से अधिक कीमती है, जो किसी को संकट से उबार ले।
एक नौकर को धन की सख्त जरूरत थी। उसने अपने मालिक से मदद की गुहार लगाई। मालिक ने उसके सामने शर्त रख दी। शर्त थी कि वह कड़कड़ाती सर्दी में पहाड़ की चोटी पर पूरी रात बिता दे, तो उसे मुंहमांगा धन मिल जाएगा।
लेकिन अगर वह नहीं कर सका, तो उसे आजन्म मुफ्त काम करना पड़ेगा। वह व्यक्ति घबरा गया और उसने अपने मित्र से विचार-विमर्श किया। मित्र ने कहा, 'मैं तुम्हारी मदद करूंगा। कल रात पहाड़ की चोटी पर बैठकर तुम सीधे देखना। तुम्हारे सामने वाले पहाड़ की चोटी पर मैं पूरी रात आग जलाकर बैठूंगा। उसे देखकर तुम्हें ऊष्मा का आभास होगा। नौकर बोला, अगर मैं ऐसा कर सका, तो तुम्हारी दोस्ती का एहसान कैसे चुकाऊंगा? मित्र बोला, 'अगले दिन मैं तुमसे इसके बदले में कुछ मांग लूंगा।
नौकर ने ऐसा ही किया और वह जीत गया। मुंहमांगा इनाम मिलने के बाद वह मित्र के पास गया और बोला, 'बताओ, उस अहसान के बदले तुम्हें कितना धन दूं? मित्र ने कहा, 'मुझे धन नहीं चाहिए। मुझसे वादा करो कि मेरी जिंदगी में जब कभी कोई बर्फीली रात आए, तो तुम भी मेरे लिए दोस्ती की आग जलाओगे।
(पाउलो कोएलो की किताब 'अलेफ से)
कथा मर्म : मदद करने का वह जज्बा अकूत धन से अधिक कीमती है, जो किसी को संकट से उबार ले।