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बेहद आकर्षक व खूबसूरत होने के कारण देवता भी इनसे हमेशा प्रसन्न रहते थे

अप्सराओं का कार्य स्वर्ग लोक में देवों का मनोरंजन करना था। वे उनके लिए नृत्य करती थीं, अपनी खूबसूरती से उन्हें प्रसन्न रखती थीं और जरूरत पड़ने पर वासना की पूर्ति भी करती थीं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 27 Dec 2016 02:36 PM (IST)Updated: Wed, 28 Dec 2016 10:48 AM (IST)
बेहद आकर्षक व खूबसूरत होने के कारण देवता भी इनसे हमेशा प्रसन्न रहते थे

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार अप्सराएं बेहद सुंदर और आकर्षक होती थीं। इनका उल्लेख हिंदू पौराणिक कथाओं के अलावा, बौद्ध पौराणिक कथाओं और चीनी पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख मिलता है। यूनानी ग्रंथों में अप्सराओं को 'निफ' नाम से संबोधित किया गया है। अप्सराएं स्वर्ग में रहती थीं, किसी खास प्रयोजन के लिए वो पृथ्वी पर आती थीं। हिंदू पुराणों में ऐसी कहानियां हैं जिसमें इस बात का प्रमाण मिलता है। स्वर्ग में रहने वाली इन अप्सराओं का मुख्य कार्य था नृत्य के जरिए देवताओं का मनोरंजन करना। बेहद खूबसूरत होने के कारण देवता भी इनसे हमेशा प्रसन्न रहते थे।

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हमारे धर्म ग्रंथों में मुख्य रूप से तीन अप्सराओं का उल्लेख मिलता है। उर्वशी नाम की अप्सरा भगवान श्रीकृष्ण के मित्र अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करने में नाकाम रही थी। रंभा, मेनका, उर्वशी ने अनेक सिद्ध पुरुषों को अपने रूप-रंग से मोहित कर तप भंग किया। अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। लेकिन ये अमर नहीं थीं इसलिए इनकी मृत्यु हो गई। अथर्ववेद और यजुर्वेद के अनुसार अप्सराएं पानी में रहती थीं। इस तरह का विवरण हमारे पौराणिक कहानियों में मिलता है कि उन्हें मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए कहा गया जाता था।

मेनका, उर्वशी, रंभा जैसे नाम सुनते ही इन्द्रलोक की कमनीय, सुन्दर अप्सराओं का चित्र आंखों के सामने उतर आता है। कहा जाता है कि व्यक्ति अपने सदकर्मो के बल पर ही स्वर्ग जा सकता है और इन अप्सराओं के साथ रह सकता है।

क्या देवताओं को रिझाने वाली अप्सराएं खुद थीं शोषण की शिकार!

हिन्दू पौराणिक ग्रंथों एवं कुछ बौद्ध शास्त्रों द्वारा भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है। जिसके अनुसार ये काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिया गया है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इन अप्सराओं का कार्य स्वर्ग लोक में रहनी वाली आत्माओं एवं देवों का मनोरंजन करना था। वे उनके लिए नृत्य करती थीं, अपनी खूबसूरती से उन्हें प्रसन्न रखती थीं और जरूरत पड़ने पर वासना की पूर्ति भी करती थीं।

लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता, क्योंकि इनका उल्लेख अमूमन ऐतिहासिक दस्तावेजों में ही प्राप्त हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है। लेकिन इनके नाम काफी भिन्न हैं। चीनी धार्मिक दस्तावेजों में भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है, लेकिन शुरुआत हम हिन्दू इतिहास से करेंगे।

ऋग्वेद में अप्सराएं

हिन्दू इतिहास की बात करें ऋग्वेद के साथ-साथ महाभारत ग्रंथ में भी कई अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है। यह अप्सराएं किसी ना किसी कारण से स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर आईं एवं इन ग्रंथों को एक कहानी प्रदान कर चली गईं। हिन्दू ग्रंथों में हमें स्वर्ग लोक की चार सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं का वर्णन मिलता है।

ये हैं उर्वशी, मेनका, रंभा एवं तिलोत्तमा। कहते हैं इन सब में से सबसे खूबसूरत एवं किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकने वाली अप्सरा थी उर्वशी। लेकिन यह वही अप्सरा है जो पाण्डु पुत्र अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करने में असमर्थ रही थी। और परिणाम स्वरूप क्रोध में आकर अर्जुन को श्राप देकर चली गई।

अर्जुन से हुई थी भेंट

इस कहानी के अनुसार एक बार इन्द्रदेव ने अपने पुत्र अर्जुन को स्वर्ग लोक में आमंत्रित किया और उसे अप्सरा उर्वशी का नृत्य देखना हासिल हुआ। कहते हैं कि उस समय उर्वशी इतना सुंदर नृत्य कर रही थीं कि उसके पैरों की थरथराहट से अर्जुन अपनी आंखों हटा ना सकें। लेकिन दूसरी ओर इन्द्रदेव को लगा कि शायद अर्जुन अप्सरा की खूबसूरती में मग्न हो गए हैं। इसलिए नृत्य मनोरंजन के बाद उन्होंने अप्सरा को अर्जुन के कक्ष में जाकर उन्हें प्रसन्न करने का आदेश दिया। लेकिन जब अर्जुन को यह बात पता चली तो उन्होंने उर्वशी से ऐसा करने से मना किया और साथ ही उसे ‘माता’ कह कर भी संबोधित किया। एक अप्सरा होते हुए अपना यह अपमान वह बर्दाश्त ना कर सकी और अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसकता का पाप झेलने का शाप देकर चली गई।

इन्द्रदेव से ही दो और अप्सराओं की भी कहानी जुड़ी है। कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र के कठोर तप से भय में आ चुके इन्द्रदेव को यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं विश्वामित्र की तपस्या से वे स्वर्ग लोक ना खो बैठें। इसलिए उन्होंने अप्सरा रंभा को पृथ्वी लोक पर ऋषि को अपनी ओर आकर्षित कर उनकी तपस्या भंग करने को कहा।

आज्ञा पाकर रंभा ऋषि के सामने पहुंच भी गई और ठीक वही किया जो उसे करने के लिए कहा गया था, लेकिन इसका परिणाम वह जानती नहीं थी। तप में विघ्न आने के कारण क्रोधित विश्वामित्र ने रंभा को शाप दिया और उसे एक खूबसूरत अप्सरा से वर्षों तक पत्थर बने रहने के लिए विवश कर दिया।

अप्सरा रंभा के संदर्भ में एक और कहानी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि एक बार जब वह कुबेर-पुत्र के यहां जा रही थी तो कैलाश की ओर जाते हुए रावण ने मार्ग में उन्हें रोक लिया। उसकी खूबसूरती देख रावण ने पहले उसे प्रसन्न करने के लिए कहा, लेकिन जब अप्सरा अपनी इच्छानुसार ना मानी तो रावण ने उसके साथ बलात् संभोग किया था।

कहते हैं कि रंभा से भी अधिक सुंदर यदि कोई अप्सरा थी तो वह थी मेनका। जब रंभा ने इन्द्रदेव का कार्य ना किया तो उन्होंने हार नहीं मानी, अब उन्होंने अप्सरा मेनका को पृथ्वी लोक पर भेजा। कहते हैं मेनका की खूबसूरती ने वह कर दिखाया, जो रंभा करने में असमर्थ हुई थी। जब वह ऋषि के सामने पहुंची और उन्हें तपस्या में लीन देखा, तो वह सोचने लगी कि वह ऐसा क्या करे कि ऋषि उसकी ओर आकर्षित हों। वह एक अप्सरा थी, लेकिन अब ऋषि विश्वामित्र के लिए उसने नारी का रूप धारण किया था। इसलिए उसने यह कार्य करने के लिए अपनी सुंदरता का भरपूर इस्तेमाल किया। वह ऋषि विश्वामित्र को अपनी ओर आकर्षित करने का हर संभव प्रयास करती। मौका पाकर कभी ऋषि की आंखों का केन्द्र बनती तो कभी मंशापूर्वक हवा के झोंके के साथ अपने वस्त्र को उड़ने देती ताकि ऋषि विश्वामित्र की नज़र उस पर पड़े। लेकिन ऋषि विश्वामित्र का शरीर तप के परिणाम से कठोर हो चुका था, इसलिए उन पर कोई असर नहीं हो रहा था। लेकिन अप्सरा के निरंतर प्रयासों से धीरे-धीरे ऋषि विश्वामित्र के शरीर में बदलाव आने लगे। कामाग्नि की प्रतीक मेनका के सामीप्य और संगति से महर्षि के शरीर में कामशक्ति के स्फुलिंग स्फुरित होने लगे। और फिर वह दिन आया जब ऋषि तप के अपने दृढ़ निश्चय को भूल अप्सरा की ओर आकर्षित हो गए। अब अप्सरा का कार्य पूरा हो गया था लेकिन यदि वह तभी उन्हें वहां छोड़कर वापस स्वर्ग लोक चली जाती तो ऋषि फिर से तपस्या आरंभ कर सकते थे।

इसलिए उसने वहीं कुछ वर्ष और बिताने का निर्णय लिया। इसी बीच ऋषि और अप्सरा ने एक संतान को जन्म दिया जो आगे चलकर ‘शकुंतला’ के नाम से जानी गई। लेकिन वक्त आने पर ऋषि एवं अप्सरा ने आपसी सलाह करके कन्या को देर रात कण्व ऋषि के आश्रम में छोड़ दिया जिसके बाद अप्सरा वापस स्वर्ग लोक चली गईं और ऋषि तपस्या के लिए वन में चले गए।

इसके बाद जिस अप्सरा का हम वर्णन करने जा रहे हैं, वे असल में अप्सरा थी नहीं बल्कि एक शाप के कारण बना दी गई थी। इस अप्सरा का नाम है तिलोत्तमा। यह प्रसिद्ध अप्सरा कश्यप और अरिष्टा की कन्या थी, जो पूर्वजन्म में ब्राह्मणी थी और जिसे असमय स्नान करने के अपराध में अप्सरा होने का शाप मिला था।

कहते हैं कि इस अप्सरा के कारण ही देवों पर आने वाली एक बड़ी समस्या का नाश किया गया था। उस समय सुंद और उपसुंद नामक राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था इसलिए उनके संहार के लिए ब्रह्मा ने विश्व की उत्तम वस्तुओं से तिल-तिल सौंदर्य लेकर इस अपूर्व सुंदरी की रचना की। कहते हैं कि इतनी खूबसूरत अप्सरा को देखते ही दोनों राक्षस उसे पाने के लिए आपस में लड़ने लगे और परिणाम यह हुआ कि किसी को अप्सरा तो मिली नहीं, परन्तु युद्ध के कारण दोनों एक-दूसरे द्वारा मारे गए।

लेकिन बताई गई अप्सराओं के अलावा अन्य और भी कई अप्सराएं थीं जो किसी शाप के कारण अप्सरा बनने को विवश तो थीं। लेकिन वे पृथ्वी लोक पर ही थीं।

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