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अपनी प्रशंसा न स्वयं करें और न ही सुनें

किसी भी कार्य के संपन्न होने में ईश्वरीय शक्ति का योगदान होता है। मनुष्य तो सिर्फ माध्यम बनते हैं। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 11:43 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 05:09 PM (IST)
अपनी प्रशंसा न स्वयं करें और न ही सुनें
अपनी प्रशंसा न स्वयं करें और न ही सुनें
आपको सद्बुद्धि के साथ-साथ निश्चयात्मक बुद्धि और पवित्रता चाहिए, तो मां भगवती की आराधना करें। शक्ति
परांबा की आराधना करें। वे विद्या हैं, मुक्तिप्रदायिनी भी हैं। वे अविद्या भी हैं, बंधन में डाल देने वाली। वे ही
हृदय में सद्भाव का संचरण करती हैं। वही हैं बीजों में बीजत्व। वही हैं शक्ति। वही हैं भक्ति। वही हैं मेधा 
ऋ तंभरा भी। उनकी कृपा दृष्टि पड़ने पर आसुरी भाव दैवी भाव में बदल जाते हैं। बुद्धि की जड़ता छिन जाती है और चैतन्य का प्रसाद मिल जाता है। उनकी कृपा से वेदों को समझने की शक्ति मिल जाती है।
वे जब कृपा करती हैं, तो हमारा कौतूहल जिज्ञासा बन जाता है, जो दुर्गति का नाश कर दे और चित्त को सारे व्यसनों से मुक्त कर परम सत्ता की ओर उन्मुख कर दे, वही दुर्गा हैं। इसलिए देवी भागवत अध्यात्म का शास्त्र है। अध्यात्म यानी अध्य-आत्म अर्थात अपनी तरफ लौटना, स्वरूप की तरफ लौटना। शुचिता और पवित्रता की तरफ लौटना। मां से हम प्रार्थना करें कि हमारा मन ऐसा हो जाए, जिसमें परमात्मा स्वयं आकर विराजमान हो जाएं। मां हमें करुणा, पवित्रता तथा प्रसन्नता प्रदान करें। मां के लिए सुर-असुर एक समान हैं। वह पात्रता नहीं देखती हैं। वह तो वत्सला होती हैं। जीवन के सबसे बड़े बंधन हैं-राग-द्वेष। इसलिए अपनी प्रशंसा न स्वयं करें और न ही सुनें। जहां ऐसा हो रहा हो, वहां से पलायन कर जाएं। जहां आपकी प्रशस्ति गाई जा रही हो, वहां से अनुपस्थित हो जाएं।
दरअसल, किसी भी कार्य के संपन्न होने में ईश्वरीय शक्ति का योगदान होता है। मनुष्य तो सिर्फ माध्यम बनते हैं। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। आपका प्रशस्ति गान करने वाले लोग मिथ्या भी बोल सकते हैं, लेकिन अपने मन के दर्पण में देखकर स्वयं के बारे में जानने की कोशिश करते रहें। हम प्रशंसा के योग्य हैं या नहीं, इसके द्वारा यह जान सकते हैं। सारी दुनिया जय- जयकार करे, तो हमें अपने मन से पूछना चाहिए कि
हमारी दशा क्या है। राग ही सारे अनर्थ की जड़ है। सृजन के लिए बुद्धि चाहिए। सृजन को हम ब्रह्मा या मां सरस्वती की कृपा मानते हैं। यदि आप वास्तव में मां सरस्वती की कृपा चाहते हैं, तो अपने प्रयासों से देश भर में
विद्यालयों की स्थापना करें, इस संकल्प के साथ कि देश का कोई भी बच्चा निरक्षर नहीं रह पाए।

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