क्रोध पर विजय [क्षमावाणी पर्व आज]
दशलक्षण पर्व की समाप्ति के ठीक एक दिन बाद क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है। श्वेतांबर जैन परंपरा में इसे संवत्सरी के नाम से पुकारते हैं, तो दिगंबर परंपरा के अनुयायी इसे 'क्षमापर्व' या 'क्षमावाणी पर्व' कहते हैं। इस दिन प्रत्येक से अपने जाने-अनजाने अपराधों के प्रति क्षमा याचना
दशलक्षण पर्व की समाप्ति के ठीक एक दिन बाद क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है। श्वेतांबर जैन परंपरा में इसे संवत्सरी के नाम से पुकारते हैं, तो दिगंबर परंपरा के अनुयायी इसे 'क्षमापर्व' या 'क्षमावाणी पर्व' कहते हैं। इस दिन प्रत्येक से अपने जाने-अनजाने अपराधों के प्रति क्षमा याचना की जाती है। अपनी भूलों का प्रायश्चित करना तथा दूसरी भूल नहीं करेंगे, यह प्रतिज्ञा लेना इस पर्व की विशेषता है।
क्षमा करने का अर्थ अपने क्रोध को दबा कर माफ कर देना नहीं है। क्षमा वह अवस्था है, जहां आपको क्रोध ही न आए..
क्षमा शब्द 'क्षम' से बना है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसी शब्द से 'क्षमता' शब्द भी बनता है। दरअसल, क्षमा कर देना या माफ कर देना बहुत बड़ी क्षमता का परिचायक होता है। इसलिए नीति में कहा गया है- क्षमा वीरस्य भूषणम अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है, कायरों का नहीं। कायर तो प्रतिकार करता है। प्रतिकार करना आम बात है, यह तो हर व्यक्ति करता है। लेकिन क्षमा करना विशेष है। क्षमा आत्मा का भाव है। मित्ती मे सव्व भूयेसु, वैरं मज्झंण केणवि। प्राकृत भाषा की इस सूक्ति का अर्थ है कि सभी जीवों में मैत्री भाव रहे, कोई किसी से बैर-भाव न रखे। जैन संस्कृति ने इस सूक्ति को हमेशा दोहराया है। ईसा मसीह का वाक्य है- हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं? वाणभट ने 'हर्षचरित' में क्षमा को सभी तपस्याओं का मूल कहा है। महाभारत में कहा गया है कि क्षमा समर्थ मनुष्यों का गुण है। बौद्ध धर्म के ग्रंथ 'संयुक्त निकाय' में लिखा है कि दो प्रकार के मूर्ख होते हैं- एक वे, जो अपने अपराध को अपराध के तौर पर नहीं देखते और दूसरे वे, जो दूसरों के अपराध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नहीं करते हैं।
अगर किसी से पूछा जाए कि क्षमा का क्या अर्थ है? तो वह यही कहेगा कि किसी पर क्रोध आ जाए तो उसे माफ कर देना। लेकिन क्षमा का यह संकुचित मतलब है। क्षमा का अर्थ होता है कि किसी की किसी भी बात पर क्रोध ही न आए। जैसे महावीर अपने अपकारी को क्षमा कर देते हैं। उनके भीतर प्रेम है, तब क्रोध आने का सवाल ही नहीं।
अगर किसी को क्रोध आ गया और वह किसी को गालियां दे, फिर उससे क्षमा मांग ले। यह तो क्रोध पर लीपापोती हो गई। इसमें क्षमा की महिमा नहीं है। क्षमा ऐसी हो, जहां क्रोध का अभाव हो। जहां कोई प्रतिकर्म पैदा ही नहीं होता। गौतम बुद्ध एक बार एक गांव से गुजरे। उनके कुछ विरोधी थे, जो उन्हें गालियां देने लगे। जब वे थक गए तो बुद्ध ने उनसे कहा, शायद आप लोगों की बात पूरी हो गई है। अच्छा अब मैं चलता हूं। बुद्ध यह भी कह सकते थे कि जाओ, मैंने तुम्हें माफ कर दिया। लेकिन बुद्ध कहते हैं, तुम्हारी बात पूरी हो गई हो, तो मैं जाऊं। यहां क्रोध अनुपस्थित है। बुद्ध के लिए वे गालियां नहीं, बातें थीं।
क्षमा का अर्थ है, चित्त की ऐसी दशा, जहां क्रोध निष्फल हो जाता है। क्षमा का अर्थ है, चित्त की वह भाव-दशा, जहां क्रोध जन्म ही नहीं लेता। अनेक धर्माें ने क्षमा की महिमा को श्रेष्ठता के साथ निरूपित किया है। हालांकि अंतस के मूल गुण किसी धर्म या संप्रदाय से बंधे हुए नहीं होते हैं, इसलिए क्षमा का मनुष्यता पर व्यापक असर पड़ता है।