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भ्रम..एक और सीढ़ी चढ़ने का मौका

जब जब आप भ्रमित होते हैं, तब तब आप एक और सीढ़ी चढ़ जाते हैं। इसलिए, कोई बात नहीं। जब कोई भ्रम नहीं है, तब ये ऐसा है कि आप एक सीधे जमीन पर चल रहे हैं, जिसमें कोई कूद-फांद नहीं है..

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 19 May 2015 12:10 PM (IST)Updated: Tue, 19 May 2015 12:28 PM (IST)
भ्रम..एक और सीढ़ी चढ़ने का मौका

जब जब आप भ्रमित होते हैं, तब तब आप एक और सीढ़ी चढ़ जाते हैं। इसलिए, कोई बात नहीं। जब कोई भ्रम नहीं है, तब ये ऐसा है कि आप एक सीधे जमीन पर चल रहे हैं, जिसमें कोई कूद-फांद नहीं है..

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गुरुदेव, पहले मूर्खता के कारण मैं हमेशा भय में रहता था, लेकिन अब कभी-कभी ज्ञान से मुङो संशय होता है? मैं क्या करूं ?

श्रीश्री रविशंकर : ये तो बढ़िया है। ज्ञान का उद्देश्य यही है कि वह आपको और भ्रम में डाले, दोबारा और तिबारा। ज्ञान का उद्देश्य आपको स्पष्टता देना नहीं है। 12003जब जब आप कन्फ्यूज (भ्रमित) होते हैं, तब तब आप एक और सीढ़ी चढ़ जाते हैं। इसलिए, कोई बात नहीं। जब कोई कन्फ्यूजन (भ्रम) नहीं है, तब ये ऐसा है कि आप एक सीधे रैम्प(जमीन) पर चल रहे हैं, जिसमें कोई कूद-फांद नहीं है। लेकिन, कभी-कभी सीढ़ियां होती हैं, जहां आपको एक सीढ़ी छोड़ कर, दूसरी सीढ़ी पर ऊपर चढ़ना होता है। और तभी कन्फ्यूजन होता है। अब आप मुझसे ये मत पूछिएगा कि ‘यदि मुङो कोई कन्फ्यूजन नहीं है और मुङो अपने जीवन में पूरी स्पष्टता है, तो क्या इसका मतलब मैं आगे नहीं बढ़ रहा?’ ‘क्या ज्ञान मेरे लिए काम नहीं कर रहा?’। ऐसा कुछ नहीं है। रास्ता एक दम सीधा है, रैम्प वॉक की तरह। यदि ऐसा नहीं है, तो आप एक ऊंची-नीची सड़क पर जा रहे हैं, और ये अच्छा है।

गुरुदेव, दक्षिणामूर्ति का क्या अर्थ है श्रीश्री रविशंकर : अमूर्त का अर्थ है, वह जिसका कोई रूप नहीं है, और जिसे व्यक्त न किया जा सके; वह जिसे देखा नहीं जा सकता। भगवान शिव का कोई रूप नहीं है और वे इस अनंत संसार को व्यक्त करते हैं। वे कोई रूप ले ही नहीं सकते, ये असंभव सा ही है। देखिये, हम अपने अंदर की सभी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकते। कितनी बार, हम अपने अंदर की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक फूल भेंट करते हैं। फूल चढ़ाने के इस कृत्य के द्वारा हम अपनी भावनाओं को दिखाने का प्रयास करते हैं, है न? हम ऐसा कुछ नहीं दे सकते, जिससे हम अपने अंदर छिपी संवेदनाओं को पूरी तरह से स्पष्ट कर पाएं, लेकिन फिर भी हम कुछ देने का प्रयास करते हैं। इसे कहते हैं, दक्षिणा। दक्षिणा मूर्ति वह है, जिसे देखा तो नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी जो व्यक्त हो रहा है वह जो अभिव्यक्ति के परे है, लेकिन फिर भी एक रूप के माध्यम से जिसे अभिव्यक्त किया जा रहा है


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