लठ्ठमार होली पर विशेष..
फाल्गुन शुक्ल नवमी (लठ्ठमार होली)-बरसाना। इस वर्ष यह तिथि 10 मार्च है। फाल्गुन शुक्ल दशमी (लठ्ठमार होली)-नंदगांव इस वर्ष यह तिथि 11 मार्च है। हरकारा है होलाष्टक होलाष्टक होली और अष्टक शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है होली के आठ दिन। यह होली खेले ज
फाल्गुन शुक्ल नवमी (लठ्ठमार होली)-बरसाना। इस वर्ष यह तिथि 10 मार्च है। फाल्गुन शुक्ल दशमी (लठ्ठमार होली)-नंदगांव
इस वर्ष यह तिथि 11 मार्च है।
हरकारा है होलाष्टक
होलाष्टक होली और अष्टक शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है होली के आठ दिन। यह होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले मनाया जाता है, यानी यह होली खेले जाने की पूर्वसूचना (हरकारा) देता है। इस दौरान मांगलिक कार्य नहीं होते है। पौराणिक मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद को भस्म करने की तैयारी हिरण्यकश्यपु ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से ही शुरू की थी।
बरसाना और नंदगांव की मशहूर लठ्ठमार होली में लड्डू और टेसू के फूलों से बने रंग से होली खेलने के बाद उत्संवी माहौल में लठ्ठ बरसाती गोपियां और उन्हें अपनी ढाल पर रोकते हुरियारों की छटा देखते ही बनती है..
बरसाना और नंदगांव में राधा-किशन की लीला कण-कण में समायी हुई है। इसलिए आज भी यहां के लोग हर पर्व-त्याहार पर उनके समान लीलाएं कर उनकी याद तरोताजा करते हैं। फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन बरसाना की हर युवती गोपी और नंदगांव का हर युवक किशन-कन्हैया बन जाता है और सब मिल कर खेलते हैं लठ्ठमार होली। इसे देखने न केवल देश, बल्कि विदेश से भी लोग प्रतिवर्ष यहां आते हैं। इस होली का आकर्षण रंग-अबीर एवं नृत्य-संगीत के अलावा, लाठियों से होली खेलना भी इसकी विशिष्टता है। दरअसल, होली का रंग यहां श्रीजी मंदिर में बसंत पंचमी के दिन से ही छाने लगता है। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर से रंगीली गली तक होली की प्रथम चौपाई अत्यंत धूमधाम के साथ निकाली जाती है। संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य गोस्वामीगण गान करते हुए चलते हैं। फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को श्रीजी मंदिर में राधारानी को छप्पन प्रकार का भोग लगाया जाता है।
होली का निमंत्रण
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को श्रीकृष्ण के प्रतीक के रूप में नंदगांव का एक गुसाई बरसाना की गोपिकाओं को होली खेलने का निमंत्रण देने बरसाना आता है। तब बरसाना की गोपिकाएं लड्डुओं और माखन-मिश्री से उनका अत्यधिक स्वागत-सत्कार करती हैं। साथ ही, वे होली खेलने का निमंत्रण भी स्वीकार करती हैं। बरसाना का भी एक गुसाईं नंदगांव जाकर वहां के गुसाइयों को बरसाना में होली खेलने का निमंत्रण देता है। इसी दिन बरसाना के श्रीजी मंदिर से होली की दूसरी चौपाई सुदामा मोहल्ला होकर रंगीली गली तक जाती है। साथ ही इसी रात्रि को श्रीजी मंदिर प्रांगण में लड्डू होली का भव्य आयोजन होता है।
अगले दिन फाल्गुन शुक्ल नवमी को नंदगांव के तकरीबन छह सौ गोस्वामी परिवारों के हुरियारे अपनी-अपनी ढालों को लेकर नंदगांव स्थित नंदराय मंदिर में एकत्रित होते हैं और वहां से पैदल ही गाते-बजाते, नाचते-झूमते लगभग 6 किमी. दूर स्थित बरसाना पहुंचते हैं। नंदगांव के इन हुरियारों का बरसाना में पहला पड़ाव 'पीली पोखर' पर होता है। मान्यता है कि यह वही सरोवर है, जिसमें राधारानी ने हल्दी का उबटन लगाकर स्नान किया था। इस कारण इसका रंग आज भी पीला है।
सजते हैं हुरियारे
नंदगांव के हुरियारे पीली पोखर में स्नानादि कर वट वृक्ष के तले बरसाना की गोपियों के साथ होली खेलने के लिए सजते हैं। वह अपनी ढालों को भी सजाते हैं। नंदगांव के इन हुरियारों में दस-बारह वर्ष के बच्चों से लेकर साठ-सत्तर वर्ष के बूढ़े तक हुआ करते हैं।
इसके बाद हुरियारे नंदगांव के नंदराय मंदिर का झंडा लेकर अपनी पारंपरिक वेशभूषा में बड़े नगाड़ों और मंजीरों की ताल पर होली और रसिया आदि गाते हुए श्रीजी मंदिर की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में इनकी बरसाना के वयोवृद्धों से 'मिलनी' होती है। यह 'मिलनी' गले मिलकर, रंग-अबीर लगाकर और इलायची-मिश्री आदि खिलाकर होती है।
होली के रसिया गाते, अबीर-गुलाल उड़ाते और नाचते-झूमते नंदगांव के हुरियारे बरसाना के ब्रह्मेश्वर गिरि के उच्च शिखर पर स्थित श्रीजी मंदिर पहुंचते हैं और समाज गायन होता है। इसमें नंदगाव के गुसाईं अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानकर राधारानी के प्रतीक के रूप मे बरसाना के गुसाइयों को और बरसाना के गुसाईं अपने को राधारानी का प्रतिनिधि मानकर एक-दूसरे को प्रेम भरी गालियां सुनाते हैं। साथ ही, सभी परस्पर टेसू के फूलों से बने रंग से होली खेलते हैं।
रंगीली गली में प्रवेश करते समय हुरियारे रंगों की बौछारों एवं संगीत की मृदुल ध्वनियों के बीच खूब हंसी-ठिठोली करते हैं। इस हंसी-मजाक में बरसाना की गोपिकाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। आखिर लें भी क्यों न, होली कौन-सी रोज-रोज होती है।
लाठियों से प्रहार
ठिठोली होली हो चुकने के बाद बरसाना की गोपियां श्रीजी मंदिर के गोस्वामी घरों की स्त्रियां और नंदगांव के हुरियारे लठ्ठमार होली खेलने के लिए रंगीली गली के चौक पर एकत्रित होते हैं। उनके हाथों में मेहंदी, पांवों में महावर और आंखों में कटीला काजल हुआ करता है। हार, हमेल, हथफूल, कर्णफूल आदि अनेकानेक आभूषण उनके अंग-प्रत्यंग की शोभा बढ़ाते हैं। इसके अलावा, उनके हाथों में लंबी-लंबी लाठियां और सिर पर लंबे-लंबे घूंघट होते हैं। ये गोपिकाएं अपने-अपने घूंघटों की ओट में नंदगांव के हुरियारों पर उछल-उछल कर अपनी-अपनी लाठियों से बड़े ही प्रेमपूर्ण
प्रहार करती हैं। इन प्रहारों को नंदगांव के हुरियारे अपनी-अपनी ढालों पर रोकते हैं। नंदगांव के हुरियारों को बरसाना की गोपिकाओं की लाठियां इतनी अच्छी लगती हैं कि जब-जब उनका जोश ठंडा पड़ता है, तब-तब नंदगांव के हुरियारे श्रृंगार रस की कड़ियां गा-गाकर उन्हें उकसाते हैं। इस होली के खत्म होने के बाद बरसाना की गोपिकाएं अपनी लाठियों को दर्शकों के माथे पर टिका-टिकाकर उनसे इनाम मांगती हैं।
नंदगांव की लठ्ठमार होली
अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल दशमी को इसी प्रकार की लठ्ठमार होली नंदगांव में गांव से बाहर एक रेतीले चबूतरे पर होती है। नंदगांव में होने वाली लठ्ठमार होली में हुरियारे होते हैं बरसाना के गुसाईं और लाठियां चलाती हैं नंदगांव की गोपिकाएं। नंदगांव में होली खेलने के लिए बरसाना के गुसाईं बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर की ध्वजा को लेकर नंदगांव जाते हैं। वहां के यशोदा मंदिर में उनका भांग-ठंडाई से स्वागत-सत्कार किया जाता है। संगीत समाज के बाद होती है बरसाना की भांति लठ्ठमार होली। कहा गया है कि बरसाना और नंदगांव की लठ्ठमार होली को देखने के लिए देवी-देवता भी स्वर्ग छोड़कर बरसाना आ जाते हैं।