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वैशाख मास: सेवा है असली भक्ति

हमारी संस्कृति में सद्कार्यो एवं परोपकार को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए वैशाख मास में गरीबों की सेवा को ईश्वर की भक्ति के समतुल्य बताया गया है। 16 अप्रैल से शुरू हुए हैं वैशाख मास। भारतीय संस्कृति में संवत्सर (वर्ष) के प्रत्येक मास का एक विशेष आध्यात्मिक महत्व माना

By Edited By: Published: Thu, 17 Apr 2014 11:20 AM (IST)Updated: Thu, 17 Apr 2014 11:27 AM (IST)
वैशाख मास: सेवा है असली भक्ति

हमारी संस्कृति में सद्कार्यो एवं परोपकार को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए वैशाख मास में गरीबों की सेवा को ईश्वर की भक्ति के समतुल्य बताया गया है। 16 अप्रैल से शुरू हुए हैं वैशाख मास।

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भारतीय संस्कृति में संवत्सर (वर्ष) के प्रत्येक मास का एक विशेष आध्यात्मिक महत्व माना गया है। हमारे ऋषियों ने हमारे अंतस को उन्नत बनाने हेतु ही पर्र्वो एवं मासों की विभिन्न अवधारणाएं दी हैं। वैशाख मास को परोपकार का मास माना जाता है, क्योंकि इस मास में वंचितों और गरीबों की मदद करने और प्राणिमात्र की सेवा करने को प्रमुखता दी गई है। भारतीय अध्यात्म और दर्शन का मानना है कि जीवों के प्रति सदाशयता और परोपकार ही वह कृत्य है, जिससे हमें पुण्य प्राप्त होता है।

वैशाख मास में भीषण गर्मी से प्यासे प्राणियों (पशु-पक्षी व मनुष्यों) को पानी पिलाना सर्वाधिक पुण्यदायक माना गया है। इसीलिए जो लोग साम‌र्थ्यवान हैं, वे इस माह जगह-जगह शीतल एवं स्वच्छ पानी पिलाने के लिए प्याऊ लगवाते हैं। पुराणों में तो यहां तक लिखा है कि हर प्रकार के दान और तीर्थस्थानों से जो पुण्यफल प्राप्त होता है, उससे भी अधिक पुण्य वैशाख में जलदान (पानी पिलाने) मात्र से मिल जाता है। प्यासों को पानी पिलाने से हजारों यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है।

इस मास में सूर्य देव का ताप प्रचंडता लिए होता है। ऐसे में धनी लोग तो उससे राहत पाने की व्यवस्था कर लेते हैं, लेकिन गरीब लोगों को बड़ी परेशानी होती है। इसीलिए इस मास में आध्यात्मिक पुण्य प्राप्त करने के लिए कड़ी धूप से व्याकुल पथिकों के विश्राम की समुचित व्यवस्था करने का नियम बनाया गया है। कई लोग निर्धनों को पंखे और छाते का दान भी करते हैं। तवे की तरह तप रही धरती पर नंगे पैर चलने को विवश मनुष्यों को पहनने के लिए चप्पल देना भी श्रेष्ठ दान माना गया है। धर्मग्रंथों का कथन है कि वैशाख में गर्मी से पीडि़त प्राणी को आराम पहुंचाना साक्षात् भगवान की सेवा है। यह सही भी है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने गरीबों को ही तो दरिद्रनारायण का संबोधन दिया था और अपने शिष्य स्वामी विवेकानंद से कहा था कि गरीब लोग ही ईश्वर हैं, इनकी सेवा करें।

जीवों की सेवा से ही नारायण प्रसन्न होते हैं। तभी तो ग्रंथों में कहा गया है कि जो व्यक्ति धूप, भूख-प्यास और थकान से पीडि़त लोगों के भोजन, पानी और विश्राम का प्रबंध करता है, वह भव-बंधन से मुक्त होकर भगवान विष्णु की निकटता प्राप्त कर लेता है। इस मास में लोग सुराही-घड़े तथा पंखे-कूलर आदि का भी दान करते हैं।

ग्रंथों में वैशाख मास को पुण्यार्जन का पर्वकाल कहा गया है। स्कंदपुराण के अनुसार - न माधवसमा मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थम् गंगया समम्।। अर्थात 'वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।'

देवर्षि नारद अंबरीष को वैशाख मास का माहात्म्य बताते हुए कहते हैं- 'वैशाख मास को ब्रहमाजी ने सब मासों में सर्वोत्तम बताया है। यह मास अपनी दिव्य ऊर्जा के कारण साधक को अभीष्ट फल देने वाला है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने में यह मास सर्वोपरि है।' वैशाख मास में ब्रहममुहूर्त से लेकर सूर्योदय तक समस्त देवगण और तीर्थ नदी अथवा सरोवर के शुद्ध जल में वास करते हैं। इस मास को भगवान विष्णु के नाम 'माधव' से भी जाना जाता है। अस्तु भगवान विष्णु को अतिशय प्रिय होने के कारण इस मास में जो भी सत्कार्य किए जाते हैं, उससे श्रीहरि अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

वैशाख मास के प्रारंभ होने के दिन प्रतिपदा तिथि से शिवलिंग पर सतत जलधारा हेतु जल से परिपूर्ण घट (अर्घा) लगा दिया जाता है। भगवान शंकर को पृथ्वी का स्वामी माना गया है। अतएव ग्रीष्म ऋतु-वैशाख और ज्येष्ठ मास में शिवलिंग पर निरंतर जलधारा का प्रबंध करना एक प्रकार से संपूर्ण पृथ्वी को सींचने के समान है। यह कार्य हमें इस बात की ओर ध्यान दिलाता है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जल कितना महत्वपूर्ण है। हम अपनी जल-संपदा को प्रदूषण से बचाएं।

वैशाख मास में भगवान महाकालेश्वर की नगरी अवंतिका (उज्जयिनी) की यात्रा करने की परंपरा है। सिंहस्थ कुंभ का मुख्य स्नान उज्जयिनी वैशाखी पूर्णिमा के दिन ही होता है। सिंहस्थ कुंभ का महापर्व उज्जयिनी में वैशाख मास में ही संपन्न होता है। प्रत्येक वर्ष उज्जयिनी की पंचकोशी-पंचेशानि यात्रा वैशाख मास में ही होती है। अवंतिका (उज्जयिनी) मंगल की जन्मभूमि बताई गई है, अत: इस मास के हर मंगलवार को श्रद्धालु मंगलनाथ के दर्शन-पूजन हेतु बड़े उत्साह के साथ आते हैं।

चांद्र (चंद्र संबंधी) संवत्सर का वैशाख मास 16 अप्रैल से प्रारंभ होकर 14 मई तक रहेगा, जबकि सौर (सूर्य संबंधी) संवत्सर का वैशाख 14 अप्रैल को सूर्य के मेष राशि में प्रवेश (मेष संक्रांति) के साथ शुरू हो चुका है और 14 मई तक सूर्य के मेष राशि में बने रहने तक रहेगा।

वैशाख मास हमें पुण्य अर्जित करने का अवसर देता है। इस मास में धर्माचरण (परोपकार आदि सत्कार्य) करने वाले को ही भगवान विष्णु की सामीप्य प्राप्त होता है।


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