हमारे सभी सुख-दुख हमारे अंतर्मन से उपजते हैं
जो हाथ से निकल गया उसके लिए व्यर्थ ही क्यों रोते हैं। आप साथ न कुछ लाए थे और न ही आपने कुछ उत्पन्न किया।
जीवन का सार यही है कि हमें कर्मशील रहते हुए प्रत्येक क्षण का भरपूर आनंद लेना चाहिए। हमारे सभी सुख-दुख हमारे अंतर्मन से उपजते हैं। तरह-तरह के विकार हमें लुभाते-डराते रहते हैं, लेकिन जो व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण कर लेता है तो फिर उसे न कोई भय सताता है और न ही उसके मन में किसी तरह के विकार उत्पन्न होते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि सत से ही सुख है। अर्थात यदि मनुष्य अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है तो वह बाह्य जगत में नहीं, बल्कि उसके भीतर ही मौजूद है। मनुष्य आत्म निर्माण करके जीते-जी मोक्ष और परम आनंद को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य का जीवन तभी स्वर्ग है जब वह काम, क्रोध, मोह आदि नकारात्मक विकारों से दूर रहे। सांसारिक वस्तुओं से मनुष्य को कोई स्थाई सुख प्राप्त नहीं होता। उसका मन प्रत्येक क्षण दूसरी वस्तु की ओर भागता रहता है। यानी एक इच्छा पूरी होने पर उसके मन में हजार नई इच्छाएं जन्म ले लेती हैं।
यह प्रमाणित तथ्य है कि जब मनुष्य धन-संपत्ति, पद-प्रतिष्ठा और आनंद के तमाम लक्ष्यों को प्राप्त कर
लेता है तब भी उनके अंदर एक गहरी शून्यता रहती है। एक व्यक्ति कारोबार के क्षेत्र में ख्याति के शिखर पर पहुंच गया तो किसी ने उससे पूछा कि जब आपने अपना कारोबार शुरू किया था तब आपकी इच्छा क्या थी कि कोई आपको उस समय क्या सलाह दे? इसके उत्तर में कारोबारी ने कहा कि उसकी इच्छा यही थी कि तब कोई मुझे बताता कि जब आप शिखर पर पहुंच जाते हैं तो वहां पर कुछ नहीं होता। मनुष्य को अपने कई लक्ष्य तब बेकार जान पड़ते हैं जब वह उनके पीछे अपने जीवन का अधिकतर समय खर्च कर चुका होता है। गीता के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है और अंत में यह इन्हीं तत्वों में मिल जाता है। हम जो भी कर्म करें उसे परमपिता परमेश्वर को अर्पित करें। यही जीवन-मुक्ति
का सरल और सच्चा मार्ग है। हमें बेकार चिंता नहीं करनी चाहिए और न ही किसी से डरना चाहिए। हमें कोई मार नहीं सकता। संसार में जो कुछ हो रहा है वह अच्छा ही है। जो अब तक हुआ वह अच्छा ही हुआ और भविष्य में जो होगा वह भी अच्छा होगा। वर्तमान में जीना ही समझदारी है। जो हाथ से निकल गया उसके लिए व्यर्थ ही क्यों रोते हैं। आप साथ न कुछ लाए थे और न ही आपने कुछ उत्पन्न किया।