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अहोई अष्टमी पर्व

आज के समय में लोगों के पास अपनी संतानों के लिए समय ही नहीं है। अहोई अष्टमी (26 अक्टूबर) का पर्व हमें संदेश देता है कि अपनी संतानों की बेहतरी के लिए हम उन्हें समय और संस्कार दें.. आज के व्यावसायिक और तकनीकी युग में लोगों के पास समय की कमी है। लोग अपने बच्चों पर ध्यान नही

By Edited By: Published: Sat, 26 Oct 2013 11:29 AM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2013 11:51 AM (IST)
अहोई अष्टमी पर्व

आज के समय में लोगों के पास अपनी संतानों के लिए समय ही नहीं है। अहोई अष्टमी (26 अक्टूबर) का पर्व हमें संदेश देता है कि अपनी संतानों की बेहतरी के लिए हम उन्हें समय और संस्कार दें..

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आज के व्यावसायिक और तकनीकी युग में लोगों के पास समय की कमी है। लोग अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते। उन्हें एक घंटा पढ़ाने के बजाय फोन पर चैटिंग करना पसंद करते हैं। ऐसे लोगों में जागृति का संदेश देता है अहोई अष्टमी का पर्व। यह पर्व संतानों के लिए है। इसमें व्रत आदि जो भी अनुष्ठान होते हैं, उनका अर्थ यही है कि अपने बच्चों पर ध्यान दें, उन्हें बेहतर संस्कार दें, भले ही आप कितने भी व्यस्त हों। क्योंकि यही बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं।

मान्यता है कि इस पर्व पर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए व्रत करती हैं। पहले यह व्रत सिर्फ पुत्रों के लिए होता था, किंतु अब पुत्रियों की माताएं भी यह व्रत उनकी मंगल-कामना के लिए रखती हैं। क्योंकि आज के बदलते दौर में जब पुत्री भी माता-पिता के लिए बराबर की मान्यता रखती है, तो पुत्रियों के सुख-सौभाग्य के लिए भी अहोई माता कृपालु होती हैं। इस दिन अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर चित्र बनाया जाता है। इससे हमारी कलात्मक अभिरुचि की अभिव्यक्ति होती है, लेकिन आज दीवार पर बने-बनाए कैलेंडर चित्र लगा लेने का प्रचलन है। शाम के समय पूजन करने के बाद अहोई माता की कथा सुनी-सुनाई जाती है। पूजा के बाद बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस व्रत में तारों को जल चढ़ा कर व्रत तोड़ते हैं। पूजा के उपरांत लाल धागे का रक्षा-सूत्र बांधकर पुत्र अथवा पुत्री को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया जाता है।

इस पर्व के व्रत-अनुष्ठान के पीछे एक ही मंतव्य है कि हम अपनी संतानों पर भी ध्यान दें। उनका कल्याण तभी होगा, जब हम उन्हें समय और अच्छे संस्कार देंगे।

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