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अचला एकादशी: इस दिन विष्णु के वामन रूप की पूजा कर कृपा प्राप्त की जाती है

एकादशी व्रत सिर्फ मोक्ष और मुक्ति की कामना से ही नहीं किया जाता है बल्कि इस व्रत के प्रताप से धन-धान्य और समृद्धि में भी बढ़ोतरी होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 31 May 2016 10:35 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 10:32 AM (IST)
अचला एकादशी:  इस दिन विष्णु के वामन रूप की पूजा कर कृपा प्राप्त की जाती है

शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में स्नान करने या गंगा तट पर पितरों का पिंडदान करने से जो फल प्राप्त होता है वैसा ही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन की पूजा कर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। वामन विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए अलबत्ता बौने ब्राह्मण के रूप में। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।

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एकादशी व्रत सिर्फ मोक्ष और मुक्ति की कामना से ही नहीं किया जाता है बल्कि इस व्रत के प्रताप से धन-धान्य और समृद्धि में भी बढ़ोतरी होती है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ही अपरा या अचला एकादशी कही जाती है।

इस दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करके जीवन में सभी तरह के कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है। चूंकि यह अपार भगवत कृपा दिलाने वाली एकादशी है इसलिए इसे अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी भवसागर से पार उतारने वाली है।

पद्यपुराण में वर्णन है कि इस एकादशी का प्रभाव व्यक्ति को तमाम तरह के आर्थिक संकटों से मुक्ति दिलाता है और उसे मुश्किलों से उबारता है। यह भी मान्यता है कि इस एकादशी पर व्रत के प्रताप से ऐसे बुरे कर्मों का भी शमन होता है जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को प्रेत योनि में जाना पड़ सकता है।

शास्त्रों में कहा गया है परनिंदा, छल, दूसरों से ठगी और झूठ बोलना ये ऐसी बुराइयां हैं जिनसे व्यक्ति का परलोक बिगड़ता है और भूलवश भी अगर ये गलतियां मनुष्य से हो जाएं तो आत्मा का मैल धोने के लिए ही एकादशी व्रत श्रेष्ठ है।

यह व्रत आत्मा को निर्मल और स्वच्छ करता है और दूसरों के प्रति अधिक भलाई से पेश आने की सीख देता है। इस व्रत से मिलने वाला सौभाग्य तीर्थ यात्रा, पिंडदान, सुवर्ण दान आदि से बढ़कर है। विधि-विधान से यह व्रत करने वाला कष्टों से मुक्ति पाकर विष्णु धाम का भागी होता है।

पुराणों में कहा गया है कि एकादशी के दिन प्रात:काल मन को विकारों से मुक्त करें। स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें तुलसीदल, फल, चंदन अर्पित करें। पूरे दिन मन को संयमित रखें और झूठ और कपटपूर्ण व्यवहार भूलवश भी न होने पाए।

जो श्रद्धालु किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं उन्हें एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए। इस दिन विष्णु सहानाम का पाठ करने से भगवान की कृपा पाई जा सकती है। 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्त्रनाम जपें। इस दिन भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि - 'हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस व्रत प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।

एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। इस दिन प्याज, मसूर की दाल सहित कुछेक वस्तुओं को त्याज देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: लकडी का दातुन न करें, नीबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी इस दिन निषेध है।

अत: गिरे हुए पत्ते लेकर उनका उपयोग करें। इस दिन जाने-अनजाने किसी का दिल दुखाने के लिए बार-बार क्षमा मांगना चाहिए। एकादशी का अर्थ तन और मन दोनों की शुद्धि है। मन में दूसरों के प्रति किसी भी तरह का बैर भाव न रहे यही एकादशी का सच्चा अर्थ है। इस दिन अपने मनोविकारों पर नियंत्रण का पूर्ण प्रयास करना चाहिए।

एकादशी के दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए या किसी भूखे व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए। इस दिन किंतु किसी का दिया हुआ अन्ना कदापि ग्रहण न करें। इस दिन जो भी वस्तु ग्रहण करें उसका पहले प्रभु को भोग लगाएं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्ना और दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन अपनी वाणी को सयंमित रखने का पूरा प्रयास करना चाहिए।

व्रत की महत्ता : ग्रंथों में अचला एकादशी व्रत के साथ एक कथा आती है कि महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई बज्रध्वज बहुत ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह बड़े भाई से बहुत द्वेष रखता था तथा स्वभाव से भी अवसरवादी था। एक रात उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसकी देह को पीपल के नीचे दबा दिया। मृत्यु उपरांत वह पीपल के वृक्ष पर उत्पात मचाने लगा। लोग उससे बहुत परेशान हो गए।

एक दिन अकस्मात धौम्य ऋषि का उधर से गुजरना हुआ। जब उन्हें इस बात का बोध हुआ तो उन्होंने अपने तपोबल से पेड़ पर रहने वाली उस आत्मा को नीचे उतारा और उसे उपदेश दिया।

उसे इस योनि से छुटकारे के लिए अपरा एकादशी व्रत का मार्ग सुझाया। इस प्रकार इस व्रत के प्रभाव से उसकी मुक्ति संभव हुई। धर्मग्रंथों की ये प्रतीकात्मक कथाएं हमें बताती हैं कि अगर हम ईश्वर का भजन करते हैं और उसकी शरण पाते हैं तो हम जीवन की भुलभूलैया से निकल पाते हैं और हमें सही रास्ता मिल जाता है।


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