वास्तु अनुसार किस दिशा में क्या होना चाहिए व दिशा का क्या है महत्व
वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं।
दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण व उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती है।
वास्तु में दिशाओं का बड़ा महत्व है। अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होगी, ऐसा वास्तु के अनुसार माना जाता है। वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं।
किस दिशा का क्या है महत्व :-
उत्तर दिशा :- इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में यदि वास्तुदोष होने पर धन की हानि व करियर में बाधाएँ आती हैं। इस दिशा की भूमि का ऊँचा होना वास्तु में अच्छा माना जाता है।
दक्षिण दिशा :- इस दिशा की भूमि भी तुलनात्मक रूप से ऊँची होना चाहिए। इस दिशा की भूमि पर भार रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व निरोगी होता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें बढ़ोतरी होती है। दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए।
पूर्व दिशा :- पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। गृहस्वामी की लंबी उम्र व संतान सुख के लिए घर के प्रवेश द्वार व खिड़की का इस दिशा में होना शुभ माना जाता है। बच्चों को भी इसी दिशा की ओर मुख करके पढ़ना चाहिए। इस दिशा में दरवाजे पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ होता है।
पश्चिम दिशा :- इस दिशा की भूमि का तुलनात्मक रूप से ऊँचा होना आपकी सफलता व कीर्ति के लिए शुभ संकेत है। आपका रसोईघर व टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए।
उत्तर-पूर्व दिशा :- ‘ईशान दिशा’ के नाम से जानी जाने वाली यह दिशा ‘जल’ की दिशा होती है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। घर के मुख्य द्वार का इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से बेहद शुभ माना जाता है।
उत्तर-पश्चिम दिशा :- इसे ‘वायव्य दिशा’ भी कहते हैं। यदि आपके घर में नौकर है तो उसका कमरा भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए।
दक्षिण-पूर्व दिशा :- यह ‘अग्नि’ की दिशा है इसलिए इसे आग्नेय दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा :- इस दिशा को ‘नैऋत्य दिशा’ भी कहते हैं। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। गृहस्वामी का कमरा इस दिशा में होना चाहिए। कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं।