उल्लास का महारास
होली का पर्व मन की वर्जनाओं को तोड़कर सबको गले लगाने का संदेश देता है। यह उल्लास का महारास भी है, जिसमें सरसों के पीले फूलों, गेहूं की धूसर बालियों और भांति-भांति के पुष्पों के रूप में प्रकृति भी झूम-झूम कर हमारा साथ देती है।
होली का नाम लेते ही रंगों के न जाने कितने इंद्रधनुष बेतरतीब ढंग से पसर जाते हैं। जब कभी रंगों की दुकान के सामने से गुजरने का मौका मिलता है, स्मृति में छोटी-मोटी अस्थायी होली अपने आप मच जाती है। ऐसा न हो, तो आदमी कितना बेरंग हो जाएगा।
वसंत के कंधे पर सवार होकर होली अपने पूरे दल-बल के साथ आई है। धरती सरसों के पीले फूलों और गेहूं की धूसर बालियों से पटी पड़ी है। जंगल पलाश के लाल फूलों से दहक रहे हैं और सड़कों के किनारे तथा यहां-वहां खड़े पलाश के झुंड जगह-जगह अलाव जलाए हुए हैं। आम्रमंजरियों ने फूलों को अपनी सुंगध का दान क्या दिया, वह लोगों को बौराने लगी।
होली क्या आती है, पूरी प्रकृति में महारास शुरू हो जाता है। जहां नृत्य होगा, संगीत होगा, गान होगा, वहां उल्लास ही उल्लास होगा। जब प्रकृति में चारों ओर उमंग है, तो मन भला उदास कैसे रह सकता है? लेकिन कभी-कभी यह उदास हो भी जाता है, अपने किसी उसको याद करके, जो फिलहाल पास में नहीं है। फिर भी फाग मन में एक आशा जगाता है, उसके आने की आशा। इस प्रकार होली उदासी में भी उल्लास पैदा करने की ताकत रखती है। दरअसल प्रकृति की दुर्निवार शक्ति का नाम ही तो होली है।
रंगों का यह पर्व भारतीय जीवन दर्शन को जितनी संपूर्णता के साथ पेश करता है, उतना शायद ही कोई अन्य पर्व करता हो। एक ऋतु जा रही है, दूसरी आ रही है। होली की खूबी यह है कि यह आने वाले के साथ-साथ जाने वाले को भी अभिनंदित करता है, और गा-गाकर उसे खुशी-खुशी विदा करता है। यदि आना उल्लास का आधार है, तो फिर जाना शोक का कारण कैसे बन सकता है, क्योंकि जाने के कारण ही तो आना संभव होता है। यदि पतझड़ में पत्ते झड़ेंगे नहीं, तो वृक्ष पर नए पत्ते आएंगे कहां से? होली का संदेश ही यह है कि यह संपूर्ण प्रकृति और यह संपूर्ण जीवन उल्लासमय है, आनंदमय है।
हमारे यहां ब्रह्म को सच्चिदानंद कहा गया है। वह आनंद से परिपूर्ण है। शिव का भले ही तांडव नृत्य अधिक प्रसिद्ध है, लेकिन वे लास्य नृत्य भी करते हैं। आनंद से भरी हुई चेतना जब जगत का निर्माण करेगी, तो सब तरफ आनंद ही होगा। सोने से बने आभूषणों के रूप भले ही बदले हुए हों, लेकिन मूल में तो स्वर्ण ही रहेगा न। होली का संदेश यही है। जीवन में दुख-तकलीफें आती हैं, बाधाएं परेशान करती हैं। कभी-कभी लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है। लेकिन यह भाव स्थायी नहीं होना चाहिए, क्योंकि जीवन अंतत: बना तो आनंद से है। वह मूलत: है आनंद ही।
उल्लास के, उमंग के, आनंद के तीन स्तर होते है। एक है प्रकृति का स्तर। होली की प्रकृति में उमंग बिखरा पड़ा है। दूसरा स्तर होता है देह का। यह दैहिक स्तर पर आनंद की अभिव्यक्ति है। होंठ मुस्करा रहे हैं, लेकिन हो सकता है कि दिल में दुख भरा हुआ हो। तीसरा स्तर हृदय का है। जब उल्लास इस स्तर पर पहुंचता है, तो शेष दोनों स्तर इससे सराबोर हो जाते हैं।
होली मनाने से ज्यादा जीने का त्योहार है, क्योंकि इसमें हमारे मन को रूपांतरित करने की शक्ति है। यह मन के रूपांतरण का पर्व है और मन रूपांतरित हो जाए, बदल जाए, इसके लिए इस पर्व में रंगों का इतना ज्यादा विधान किया गया है कि यह रंगपर्व कहलाने लगा है। दृश्यों के रूप हमारे मन के स्तरों के अनुरूप बदल जाते हैं। लेकिन रंग मन के सभी स्तरों को भेदकर चेतना में गहरे उतर जाते हैं। इसका सम्मिलित प्रभाव अद्भुत और कभी-कभी तो रहस्यपूर्ण भी होता है। रंगों का यही प्रभाव होली का प्रभाव है, जो तन से अधिक मन को रंगता है। और रंगता भी ऐसा है कि फिर छुटाए नहीं छूटता।
मन में यदि कोई खटका रह जाए, तो मन पूरी तरह उमगता नहीं है। उसमें थोड़ी-सी रुकावट आ जाती है। किसी से क्षमा मांगने में अहम आड़े आ रहा है। अपने व्यवहार के लिए आप शर्मिदा हैं। अपराध का थोड़ा-सा बोध है मन में, तो कोई बात नहीं। होली का पर्व आपके इस मनोवैज्ञानिक संकट को समझता है। इसलिए उसने हम सबको एक ऐसा अवसर उपलब्ध करा दिया है, जब हम सभी गिले-शिकवे दूर करके उससे गले मिल सकते हैं। अपने अपराधबोध से मुक्त होकर हल्के हो सकते हैं।
बिना हल्के हुए उड़ा नहीं जा सकता। उल्लाससिक्त नहीं हुआ जा सकता। होली हमें हल्का होने की गुजांइश देती है। यह पर्व तो यहां तक अनुमति देता है कि हम अपने मन की वर्जनाओं को तोड़कर अपने मन की उमंगों को निश्छल भाव से और वह भी अनायास ही प्रकट कर सकें। क्या यह कम बड़ी बात है? अन्य कौन सा वह सर्वमान्य पर्व है, जो स्त्री-पुरुष के बीच नैसर्गिक आकर्षण को व्यक्त करने के लिए इस तरह का सांस्कृतिक माध्यम उपलब्ध कराता है? इस बार होली पर आप कम से कम उसे जरूर अपने रंग में डुबाइए, जिससे आपको कोई शिकायत है। तब होली के रंग साल भर आपके अंदर मौजूद रहेंगे।
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