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क्‍यों नहीं है पल-पल आनंद

आनंद की चाह हमारे हर क्रियाकलाप की बुनियाद है। हम जो कुछ भी करते हैं वो आनंद और तृप्ति की तलाश में ही करते हैं। फिर भी आनंद आता जाता क्यों रहता है? क्या कारण है कि आनंद टिक कर नहीं रहता?

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2015 02:48 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2015 02:52 PM (IST)
क्‍यों नहीं है पल-पल आनंद
क्‍यों नहीं है पल-पल आनंद

आनंद की चाह हमारे हर क्रियाकलाप की बुनियाद है। हम जो कुछ भी करते हैं वो आनंद और तृप्ति की तलाश में ही करते हैं। फिर भी आनंद आता जाता क्यों रहता है? क्या कारण है कि आनंद टिक कर नहीं रहता?

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प्रश्‍न:

कई बार मुझे सब कुछ बहुत अच्छा-अच्छा सा लगता है और मैं जीवन को बहुत सकारात्मक तरीके से महसूस कर पाती हूं। मगर कुछ यादें होती हैं और जब मैं लोगों से मिलती हूं और सकारात्मक रहने की कोशिश करती हूं, तब भी कई बार नकारात्मकता हावी हो जाती है। मैं हर समय इस मनोदशा को कायम नहीं रख पाती। फिर मैं निराशा महसूस करती हूं। जब मैं मुड़ कर देखता हूं, तो मैं ऐसा था, मैं गुस्से में आ जाती था। मैं अपने बच्चों, अपने रिश्तों के साथ भी कभी-कभार इस सकारात्मक, पूरी तरह आनंद की मनोदशा को हर समय बरकरार नहीं रख पाती। इसलिए मैं बस यह जानना चाहती था कि इसके लिए मैं क्या कर सकती हूं।

सद्‌गुरु: उहूं। आपको बस यह करना है कि आप जिस तरह रहना चाहते हैं, उस तरह रहें। आप किस तरह रहना चाहते हैं?

प्रश्न: आनंद में।

सद्‌गुरु: बस इतनी ही बात है। यह इतना ही आसान है मगर इतना ही मुश्किल भी है, है न? क्या यह आसान नहीं है, आखिरकार आप आनंदित रहना चाहते हैं, तो उसी तरह रहिए – आपको कौन रोक रहा है? ‘नहीं, नहीं, वे ऐसा कर रहे हैं।’ देखिए अब आप नहीं चाहते कि वे जो करना चाहते हैं, उसे करें मगर आप वह करना चाहते हैं जो आप चाहते हैं। समस्या यही है। अगर आप अपनी मर्जी से कुछ करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए भी तैयार होना चाहिए कि बाकी हर कोई वही करेगा, जो वह करना चाहता है। यही तरीका है क्योंकि आजादी एक दो तरफा प्रवाह है। है न? क्या कोई आपको शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है? अगर ऐसा है, तो आप हमारे पास आइए। हम आपको बचाएंगे क्योंकि आपको सुरक्षा की जरूरत है।

आप जो कुछ भी करते हैं, वह सब आपके दिमाग में तैयार होता है, है न? तो, वह एक नाटक ही है। विकल्प सिर्फ यह है कि आप उसे चेतनता में करना चाहते हैं या मजबूरी में। आप मजबूरी में उसे करते हैं और आपको लगता है कि वह असली है – यह अस्तित्व का एक बेवकूफाना तरीका है। कोई शारीरिक रूप से आपको परेशान नहीं कर रहा है, वे बस वही कर रहे हैं जो वे करना चाहते हैं, वे वही कह रहे हैं जो वे करना चाहते हैं। या वे सिर्फ वही कह रहे हैं जो वे कहना चाहते हैं, है न? या वे सिर्फ वही कह रहे हैं, जो वे जानते हैं, है न? आपके अंदर परेशानी कौन पैदा कर रहा है? आप खुद। क्योंकि कहीं न कहीं आप मानते हैं कि अगर आप गुस्से में आते हैं, अगर आप दुखी होते हैं, तो उसका फायदा मिल सकता है… कभी-कभी ऐसा होता भी है। है न? अगर आप घर में दुखी होने का नाटक करें, तो आपको कई चीजें मिल जाती हैं, अगर आप खुश होते हैं, तो शायद आपको नहीं मिलतीं। है न?

तो आपने तरकीब सीख ली मगर आपको यह समझने की जरूरत है कि यह तरकीब दोमुंही है। अगर आप दुखी हैं, तो चाहे आपको जो कुछ भी मिल जाए, उसका कोई मतलब नहीं है। अगर आप आनंद में हैं, खुश हैं, तो चाहे आपको कुछ भी न मिले, क्या फर्क पड़ता है? तो यह सिर्फ आपकी चाल नहीं है। आपके आस-पास हर कोई हमेशा यह चाल चलता रहा है और आपको लगा कि यह तरीका है। मगर आप चाहते क्या हैं? आप आनंद चाहते हैं या दुःख? आप उस तरह रहें, जैसे रहना चाहते हैं। क्या उससे किसी को तकलीफ होती है? नहीं। अब अगर मैं सिगरेट पीना चाहता हूं, तो इससे किसी को कुछ परेशानी हो सकती है। मैं तो बस खुश होना चाहता हूं। क्या यह किसी के किसी चीज का उल्लंघन करता है, किसी के लिए परेशानी पैदा करता है। क्या ऐसा है, मैं पूछ रहा हूं? आप वैसे रहें, जैसे रहना चाहते हैं, कौन आपको रोक रहा है? आप जो करना चाहते हैं, वह नहीं कर सकते, मगर आप जिस तरह होना चाहते हैं, उस तरह हो सकते हैं, है न? क्या कोई आपको रोक सकता है? दूसरों को यह जानने की जरूरत भी नहीं है कि आप खुश हैं। अगर उन्हें दुखी चेहरा पसंद है, तो उनके लिए दुखी चेहरा बना लीजिए। मगर फिर भी आप खुश हो सकते हैं, है न? इसे हम अभी आजमाएंगे। ठीक है? इस समय बहुत से चेहरे खुश लग रहे हैं। मैं चाहता हूं कि आप इसी आनंद की अवस्था में रहें और दुखी दिखें। अभी ऐसा करें। ऐसा करें, मुझे देखने दें, मुझे देखकर मुस्कुराइए मत। अंदर से आनंदित होते हुए मुझे दुखी चेहरा दिखाइए। आपको इसका अभ्यास करना चाहिए। यह दुखी चेहरा नहीं है… मैं एक दुखी चेहरा देखना चाहता हूं, वाकई मैं आपसे कह रहा हूं। ऐसा कीजिए, मुझे देखने दीजिए। कीजिए, मुझे देखकर मत मुस्कुराइए। कृपया ऐसा करें, देखिए घर में आपको इसकी जरूरत पड़ेगी। अगर आप हर समय हा हा हा करते रहेंगे, तो वे पागल हो जाएंगे। कभी-कभार वे दुखी चेहरे की उम्मीद करते हैं। हम्म? आपके अंदर आध्यात्मिक क्या है? यह सब फालतू का योग, ही ही ही और यही सब। समस्या क्या है? क्या मैं हर समय इस बात पर जोर नहीं देता हूं कि हालात के मुताबिक काम होना चाहिए? मगर आप मुझे बताइए कि पहले क्या आता है, आपके अस्तित्व का तरीका पहले है या क्रिया पहले है? पहले क्या आता है?

साधक: अस्तित्व का तरीका।

सद्‌गुरु: आपके अस्तित्व का तरीका। तो अगर आप कहते हैं कि मैं आनंद चाहता हूं, तो उसे पक्का कीजिए। हालात के मुताबिक क्रिया कीजिए। कुछ लोगों को दुख पसंद होता है, कुछ को हंसी पसंद होती है, कुछ लोग रोना पसंद करते हैं – उसे कीजिए, मैं सब कुछ करता हूं। कृपया सत्संग में जीवन का अभ्यास कीजिए। आप यहां पर इसीलिए हैं – सच्चाई का सामना करने के लिए। यह यहीं पर होना चाहिए, आपके घर जाने के बाद नहीं। आप मुझे दुखी चेहरा नहीं दिखा रहे हैं। अंदर से खुश होने पर क्या आप दुखी चेहरा बना सकते हैं, अगर आप चाहें? क्यों नहीं?

जिज्ञासु: यह संभव नहीं है।

सद्‌गुरु: यह क्यों संभव नहीं है?

सद्‌गुरु: यह संभव है। यह मत कहिए कि अपने जीवन में आप अभिनय नहीं करते हैं। क्या आप घर पर कोई अभिनय नहीं करते हैं?

सद्‌गुरु: तो फिर?

जिज्ञासु: अंदर आनंद नहीं होता, इसीलिए कुछ करने की जरूरत होती है।

सद्‌गुरु: हम्म?

जिज्ञासु: अंदर से कोई खुशी नहीं है, इसीलिए मैं अभिनय कर रहा हूं। सद्गुरु, अगर मैं आपकी तरह आनंदित हो जाऊं…..

सद्‌गुरु: नहीं, अगर आप आनंद में हैं, तो आप हर समय अभिनय करेंगे। आप कभी अभिनय करते हैं, कभी नहीं। मैं हर समय अभिनय करता हूं।

सद्‌गुरु: मैं आपसे यह कह रहा हूं कि आप जो कुछ भी करते हैं, वह असल में अभिनय है। क्या ऐसा नहीं है? या तो आप जानबूझकर ऐसा करते हैं, या मजबूरी में। अगर आप मजबूरी में उसे करते हैं, तो आपको वह वास्तविक लगता है, मगर असल में वह एक अभिनय है। है न? आप जो कुछ भी करते हैं, वह सब आपके दिमाग में तैयार होता है, है न? तो, वह एक नाटक ही है।

अगर आप कहते हैं कि मैं आनंद चाहता हूं, तो उसे पक्का कीजिए। हालात के मुताबिक क्रिया कीजिए। कुछ लोगों को दुख पसंद होता है, कुछ को हंसी पसंद होती है, कुछ लोग रोना पसंद करते हैं – उसे कीजिए, मैं सब कुछ करता हूं।विकल्प सिर्फ यह है कि आप उसे चेतनता में करना चाहते हैं या मजबूरी में। आप मजबूरी में उसे करते हैं और आपको लगता है कि वह असली है – यह अस्तित्व का एक बेवकूफाना तरीका है। यह वैसे भी एक नाटक ही है, कम से कम इसे चेतन होकर करें। फिर जीवन बहुत सुंदर होगा। अगर आप इसे मजबूरी में करेंगे तो यह एक फंदे की तरह लगेगा। यह कोई फंदा नहीं है। जीवन कोई फंदा नहीं है क्योंकि निकलने का रास्ता हमेशा मौजूद होता है, पूरी तरह खुला। हां या नहीं? हां कि नहीं? जीवन कोई फंदा नहीं है, निकलने का द्वार हमेशा खुला होता है। हर कोई निकलने के रास्ते से बचने की कोशिश करता है। है न?

जब बाहर जाने का रास्ता बंद होता है, तभी आप उसे फंदा कह सकते हैं, है न? निकलने का रास्ता हमेशा पूरा खुला होता है, एक भी पल अगर आप लापरवाह हुए, तो आप मृत होंगे। बाहर जाने का रास्ता पूरा खुला हुआ है। आपका पूरा जीवन किसी न किसी तरह बाहर जाने के रास्ते से बचने में लगता है। है न? तो वह कोई फंदा नहीं है। जब आप सोचने लगते हैं कि आपके नाटक असली हैं, सिर्फ तभी वह फंदे की तरह लगता है। आप जो भी सोचते हैं, महसूस करते हैं और करते हैं, वह आपका अभिनय है। है न? हां कि नहीं? जब आप महसूस नहीं कर पाते कि यह आपका अभिनय है, तब आपको लगता है कि यह ईश्वर का आदेश है। आपको आवाजें सुनाई देने लगेंगी। जब आपको आवाजें सुनाई देने लगती हैं, तो यह साफ हो जाता है कि आपको इलाज की जरूरत है। वाकई, मैं कुछ नहीं कह रहा हूं, ईश्वर महान है मगर उसके पास आवाज नहीं है, क्या आपको पता था? आपको यह नहीं पता था? और यह पक्का है कि उन्हें तमिल नहीं आती। देखिए आप जिन भगवानों की पूजा करते हैं, वे सब उत्तर से आते हैं। तो आपको कैसे लगा कि उन्हें तमिल आती होगी? हो सकता है कि राम को थोड़ी-बहुत तमिल आती हो क्योंकि वह दक्षिण की ओर आए थे। मगर कृष्ण, शिव को बिलकुल तमिल नहीं आती, मैं आपसे कह रहा हूं, मेरा यकीन कीजिए। तो अगर आपको तमिल भाषा में आवाजें सुनाई देती हैं, तो साफ है कि आप काउच की ओर बढ़ रहे हैं। फर्नीचर आने वाला है।

तो अगर आप इसके बारे में पूछते हैं, यह जितना हो सके, उतना सुखद होना चाहता है, है न? आप सुखदता, आनंद की सर्वोच्च अवस्था जानना चाहते हैं। क्या ऐसा नहीं है? तो आपको कौन रोक रहा है? ‘नहीं, मगर वे ऐसा कर रहे हैं।’ वे जो चाहते हैं, वह कर रहे हैं। आप उस तरह रहिए, जिस तरह आप रहना चाहते हैं। अगर आप अपने अस्तित्व का तरीका तय कर लेते हैं, तो आप जो भी करते हैं, वह बस हालात पर निर्भर होता है। हम जिस तरह के हालात में मौजूद होते हैं, उस हिसाब से काम करते हैं। ‘नहीं, नहीं, मैं अपनी मर्जी से चीजें करना चाहता हूं।’ आपकी अपनी मर्जी जैसा कुछ नहीं है। ‘नहीं, मैं एक आईटी प्रोफेशनल बनना चाहता हूं।’ ऐसी कोई चीज नहीं है। आप आज भारत में जन्मे हैं, इसलिए आईटी प्रोफेशनल बनने की सोच रहे हैं। मान लीजिए आप यहां 1,000 वर्ष पहले जन्मे होते, तो आप समुद्र में मछलियां पकड़ने की सोच रहे होते, है न? क्रिया हालात की मांग और पेशकश के मुताबिक होती है। है न? आप कैसा होना चाहते हैं, यह आपकी मर्जी है। अगर आपने तय कर लिया है कि आप किस तरह होना चाहते हैं, तो उसी तरह रहिए, जैसा जरूरी हो, वैसा काम कीजिए। आप दुखी लोगों के बीच हों और अगर आप बहुत ज्यादा हंसेंगे तो वे आपको मार डालेंगे। वाकई, आपको अपनी हंसी के कारण जान गंवानी पड़ सकती है। क्या ऐसा नहीं है?

तो अपनी सास के साथ, आप ही ही ही ही नहीं कर सकतीं!

सद्‌गुरु:


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