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गुरु के पैर हम क्यों छूते हैं

हमारी संस्कृति में हमें अपने बड़ों और खासतौर पर अपने गुरु के पैर छूना सिखाया जाता है। क्या वजह है गुरु के पैर छूने की इससे कोई आध्यात्मिक लाभ मिलता है

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 12 Jan 2017 03:04 PM (IST)Updated: Thu, 12 Jan 2017 03:07 PM (IST)
गुरु के पैर हम क्यों छूते हैं
गुरु के पैर हम क्यों छूते हैं

सद्‌गुरुहमारी संस्कृति में हमें अपने बड़ों और खासतौर पर अपने गुरु के पैर छूना सिखाया जाता है। क्या वजह है गुरु के पैर छूने की? क्या इससे कोई आध्यात्मिक लाभ मिल सकता है? जानते हैं सद्‌गुरु से

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प्रश्न : सद्‌गुरु, भारत में एक सिद्ध पुरुष या गुरु के पैरों पर झुकने की परंपरा है। क्या इसका कोई महत्व है?

सद्‌गुरु : योग में, पद शास्त्र नाम की एक चीज होती है। पद मतलब पैर, खासकर पैरों के तलवे। बहुत से रूपों में, आपके अंदर लगभग सभी चीजों को जागृत करने के सभी बटन आपके पैरों में हैं, सिर्फ आपको पता होना चाहिए कि उसे कैसे करना है।

देने के लिए पैर, और ग्रहण करने के लिए हाथ

जब ग्रहण करने की बात आती है, तो आपके हाथ बहुत शक्तिशाली माध्यम हैं। अगर आप संवेदनशील हैं, तो आप अपने हाथों से जिस चीज को भी स्पर्श करें, आप तत्काल जान जाएंगे कि वह क्या है।

आप किसी ऐसे व्यक्ति से पैसे नहीं मांगते जिसमें ऊर्जा के कामी हो या जो कंजूस हो। आप सिर्फ उसी से मांगते हैं, जो समृद्ध हो और देने की इच्छा रखता हो।अगर आप उसे अपने कंधे या अपनी पीठ या अपने सिर के पीछे के भाग से छुएं, तो आप नहीं जान पाएंगे कि वह क्या है, लेकिन अगर आप उसे अपने हाथों से छुएं, तो तत्काल जान जाएंगे कि वह क्या है। सिर्फ महसूस करने और संवेदन के संबंध में नहीं, आपके हाथों से और गहरे अनुभव होते हैं।

लेकिन अगर आप अपनी ऊर्जा किसी को देना चाहते हैं, तो पैर बहुत शक्तिशाली माध्यम हैं। एक समय, हम लोगों को सिखा रहे थे कि अलग-अलग तरह के अनुभवों के लिए पैरों से किस तरह काम लिया जा सकता है – अगर आप किसी को आराम पहुंचाना चाहते हैं, अगर आप किसी को आनंदित करना चाहते हैं, अगर आप किसी को प्रेम से भरपूर करना चाहते हैं, तो कहां दबाव देना चाहिए। आपके पैरों में सात अलग-अलग चक्र स्पष्ट होते हैं। अगर आप जानते हैं कि पैरों से किस तरह काम लेना है, तो आप पूरे शरीर से बहुत सारी चीजें कर सकते हैं। आजकल इसे ‘रिफ्लेक्सोलॉजी’ कहा जाता है, लेकिन इसमें सिर्फ स्वास्थ्य की बात की जा रही है। हम जीवन में रुचि रखते हैं, इसलिए हम अनुभव के संदर्भ में बात करते हैं।

ऐसे व्यक्ति के पैर छुएं जिसके पास देने के लिए कुछ हो

जहां तक पैरों को स्पर्श करने यानी छूने का सवाल है, तो आप जिसके पैरों को छू रहे हैं, उनके पास देने के लिए कुछ होना चाहिए, उन्हें ऊर्जा के एक खास स्तर पर होना चाहिए। किसी दरिद्र से कर्ज मांगने का कोई फायदा नहीं है।

इसी वजह से भीड़ बढ़ने पर, गुरु लोग अपने पैरों को बचाने के लिए हमेशा ऊर्जा का एक रूप उत्पन्न करते थे और सभी से कहते थे – “जाओ उसको प्रणाम करो”। अगर आपको कर्ज मांगना है, तो आपको किसी ऐसे व्यक्ति से मांगना चाहिए, जिसके पास देने के लिए धन हो। अगर आप किसी कंगाल या कंजूस से कर्ज मांगें, तो उसका कोई मतलब नहीं है। आपको पता है, कंजूस का मतलब क्या होता है? कम जूस यानी ऊर्जा की कमी वाला इंसान। आप किसी ऐसे व्यक्ति से पैसे नहीं मांगते जिसमें ऊर्जा के कामी हो या जो कंजूस हो। आप सिर्फ उसी से मांगते हैं, जो समृद्ध हो और देने की इच्छा रखता हो।

आप किसी ऐसे व्यक्ति के चरण नहीं छूते जो खुद कंगाल हो। अगर वह ऊर्जा से भरपूर हो और बांटने की इच्छा रखता हो, तो उससे जुड़ने का एक खास तरीका है, एक प्लग प्वाइंट की तरह। प्लग प्वाइंग अलग-अलग तरीके के होते हैं। अगर आप उस खास प्लग प्वाइंट से जुड़ना चाहते हैं, तो आपको एक खास तरह के प्लग की जरूरत होती है।

बड़ों के पैर छूने की परम्परा

कई घरों में, अपने बड़ों के पैर छूने की परंपरा होती है। शायद दक्षिण भारत में यह खत्म हो चुकी है, लेकिन उत्तरी भारत में वैदिक संस्कृति के कारण यह परंपरा अब भी कायम है।

यह सिर्फ उन्हें सम्मान देने के लिए होता है, उनकी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए नहीं! जब आप किसी देवता को देखे हैं, तो चरण स्पर्श का तरीका दूसरा होता है। जब वे पिता, माता, चाचा, मामा या अपने से बड़े किसी को भी देखते हैं, तो सबसे पहले उनके पैर छूते हैं। यह सिर्फ उन्हें सम्मान देने के लिए होता है, उनकी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए नहीं! जब आप किसी देवता को देखे हैं, तो चरण स्पर्श का तरीका दूसरा होता है। अगर आप किसी शक्तिशाली व्यक्ति, जो आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ न हो लेकिन अपने तरीके से शक्तिशाली हो, को नमस्कार या प्रणाम करते हैं, तो अभिवादन का एक अलग तरीका होता है। अगर आप गुरु के सामने झुकते हैं, तो यह नमन का तरीका अलग होता है। मैं इनके तकनीकों में नहीं जाना चाहता। मैं आपको दूसरे तीन के बारे में बता सकता हूं, लेकिन मैं आपको यह नहीं बताना चाहता कि एक गुरु के आगे किस तरह झुकना है। आप जैसे भी चाहें, वैसे कर सकते हैं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हर वक्त मेरे पैर खींचे और पकड़े जाएं!

आपके हाथ में जहां पर ग्रहण करने का स्वभाव होता है और पैरों में जहां देने का गुण होता है – अगर इन दो चीजों को जोड़ दिया जाए, तो आप एक पल में वह हासिल कर सकते हैं, जो बरसों की साधना में नहीं कर सकते। इसी उम्मीद से हर कोई हर समय पैरों पर झुकता रहता है, इस उम्मीद पर कि कहीं वे जुड़ सकते हैं। शायद पश्चिमी समाज में लोग किसी के पैरों पर गिरने को एक तरीके की अधीनता या दासता मानते हैं। योग परंपरा में, हमने कभी नहीं सोचा कि पैर हाथों से कमतर हैं। ऐसा कभी नहीं समझा गया कि शरीर का एक हिस्सा दूसरे से कम है। वह जहां भी काम करता है, आप उसे वैसे ही इस्तेमाल करते हैं।

गुरु की जगह ऊर्जा रूपों को छूने का प्रचलन

जब कुछ खास परंपराओं के लोग मेरे पास आते हैं, तो मुझे यह देखकर हैरानी होती है कि उन्हें बचपन से ये चीजें सिखाई गई हैं, वे बिलकुल अच्छे से जानते हैं कि इसे कैसे करना है।

इसी वजह से भीड़ बढ़ने पर, गुरु लोग अपने पैरों को बचाने के लिए हमेशा ऊर्जा का एक रूप उत्पन्न करते थे और सभी से कहते थे – “जाओ उसको प्रणाम करो”।बहुत से लोग सिर्फ अपनी भावनाओं से ऐसा करते हैं। कभी-कभार वे शायद ठीक कर पाते हैं। इसलिए कुछ लोग पैर के सभी हिस्सों को छूते हैं ताकि वे गलती न करें! वे जानते हैं कि उन्हें तकनीक नहीं पता, इसलिए वे किसी न किसी तरह जुड़ना चाहते हैं। वे अपने हाथ गुरु के पैरों के नीचे रख देंगे, भले ही गिर कर गुरु का सिर फूट जाए, चाहे जैसे भी, वे उसे पाना चाहते हैं। यह खजाने की खोज की तरह है।

इसी वजह से भीड़ बढ़ने पर, गुरु लोग अपने पैरों को बचाने के लिए हमेशा ऊर्जा का एक रूप उत्पन्न करते थे और सभी से कहते थे – “जाओ उसको प्रणाम करो”। हम ऊर्जा का एक रूप उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके आगे झुककर आप हासिल कर सकते हैं, जो बेहतर है। ये चलते-फिरते पैर हैं लेकिन ऊर्जा के रूप चलकर आपसे दूर नहीं जा सकते। आप दिन में जितनी बार चाहें, उसे प्रणाम कर सकते हैं, वे विरोध नहीं कर सकते और यह ठीक है।


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