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ब्रह्माण्ड: कहां है इसका ओर-छोर?

सृष्टि की विशालता को लेकर इंसान के मन में हमेशा से कौतुहल रहा है। इसका अंदाजा लगाने के लिए कभी उसने अध्यात्म तो कभी विज्ञान का सहारा लिया। तो क्या विज्ञान और अध्यात्म दोनों का कहना अलग है? कहां है इस सृष्टि का ओर-छोर? आइए जानें?

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 11:03 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 11:12 AM (IST)
ब्रह्माण्ड: कहां है इसका ओर-छोर?
ब्रह्माण्ड: कहां है इसका ओर-छोर?

सृष्टि की विशालता को लेकर इंसान के मन में हमेशा से कौतुहल रहा है। इसका अंदाजा लगाने के लिए कभी उसने अध्यात्म तो कभी विज्ञान का सहारा लिया। तो क्या विज्ञान और अध्यात्म दोनों का कहना अलग है? कहां है इस सृष्टि का ओर-छोर? आइए जानें?

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हम ब्रह्मांड के अंतिम छोर तक कभी नहीं पहुंच सकते, इसलिए हम इसे अंतहीन ब्रह्मांड कहते हैं। यह बात हमारी संस्कृति में हजारों वर्ष पहले बता दी गयी थी। वैज्ञानिक अब इस सृष्टि को अंतहीन कहते हैं, जबकि योग में हम हमेशा से यह कहते आ रहे हैं।

अभी हाल ही में एक जाने माने वैज्ञानिक के व्याख्यान में मुझे शामिल होने का मौका मिला। उन्होंने 'द एंडलेस यूनिवर्सÓ नाम की किताब लिखी है। यह किताब वैज्ञानिक वर्ग में बहुत लोकप्रिय है। सेमिनार के उस खास सत्र को उन लोगों ने 'बियॉन्ड बिग बैंगÓ नाम दिया था।

अगर आप अपनी अधिकतम चाल से इस ब्रह्मांड में यात्रा करते हैं तो जैसे-जैसे आप इसके एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे यह बढ़ता जाता है और इसी कारण आप कभी भी अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते। अभी कुछ समय पहले तक वैज्ञानिक समाज का यह मानना था कि सब कुछ एक बड़े धमाके के कारण हुआ जिसे बिग बैंग कहते हैं। लेकिन अब वे कह रहे हैं कि केवल एक ही नहीं, बल्कि कई धमाके हुए हैं। ऐसा माना जाता रहा है कि कुछ करोड़ साल पहले एक धमाका हुआ, जिसकी वजह से इन सभी ग्रहों- इस धरती और इस ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। लेकिन अब वे कहने लगे हैं कि केवल यही एक धमाका नहीं हुआ। ऐसे कई धमाके हुए।

ये बातें मुझे दिलचस्प लगती हैं, क्योंकि ये सिद्धांत मुझे योगिक विद्या की तरह लगते हैं। यह कुछ ऐसा है जिसे हम अपने अंदर हमेशा से जानते हैं। लेकिन धीरे-धीरे वे न केवल योगिक विद्या की तरह बातें करने लगे हैं, बल्कि उन रूप-रचनाओं का भी वर्णन करने लगे हैं, जिन्हें हम हमेशा से ही पवित्र मानते आए हैं और सदा पूजते रहे हैं।

जैसा कि मैंने कहा, योगिक पद्धति में हम यह नहीं मानते कि आप इस ब्रह्मांड की तह तक जा सकते हैं और वहां मौजूद सभी चीजों को ढूंढ सकते हैं। वैज्ञानिक भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। जब वे कहते हैं कि यह एक अंतहीन ब्रह्मांड है तो इसका सीधा सा मतलब है कि आप इसके बारे में कभी नहीं जान सकते कि यह आखिर है क्या और न ही इसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक सफर करके यह कह सकते हैं अच्छा, तो यह है सारा जगत। हम जानते हैं कि यह एक लगातार फैलते रहने वाली रचना है जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। आप इसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक सफर नहीं कर सकते, क्योंकि जब तक आप दूसरे सिरे तक पहुंचेंगे यह और फैल चुका होगा।

विज्ञान का एक बुनियादी सिद्धांत यह है कि इस ब्रह्मांड की कोई भी चीज जो प्रकाश की गति से चलेगी, वह प्रकाश बन जाएगी। मान लीजिए कि मैं अपनी उंगली आगे-पीछे करता हूं, तो यह सामान्य है। लेकिन अगर मैं इसी को प्रकाश की रफ्तार से चलाता हूं, तो यह अपने भौतिक रूप में नहीं रह जाएगी, यह प्रकाश बन जाएगी। प्रकाश ही एकमात्र ऐसा भौतिक पहलू है जिसका अस्तित्व बना रहता है, इसके अलावा दूसरी सभी चीजें गायब हो जाएंगी। यही वजह है कि हमारी रफ्तार कितनी भी अधिक हो, प्रकाश की चाल से एक किलोमीटर कम ही रहेगी। अगर आप अपनी अधिकतम चाल से इस ब्रह्मांड में यात्रा करते हैं तो जैसे-जैसे आप इसके एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे यह बढ़ता जाता है और इसी कारण आप कभी भी अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते। चूंकि हम इसके अंतिम छोर तक कभी नहीं पहुंच सकते, इसलिए हम इसे अंतहीन ब्रह्मांड कहते हैं। इस संस्कृति में यह हजारों वर्ष पहले कहा गया था। अब वैज्ञानिक भी इस सृष्टि को अंतहीन कहते हैं, जबकि योग में हम हमेशा से यह कहते आ रहे हैं।

इसीलिए इस रचना के बारे में जानने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने अंदर देखें। जो कुछ भी इस सृष्टि में घटित हुआ है, वह सब किसी न किसी तरह से इस छोटे से ब्रह्मांड, इस मानव शरीर में रेकॉर्ड हो चुका है।

विज्ञान का एक बुनियादी सिद्धांत यह है कि इस ब्रह्मांड की कोई भी चीज जो प्रकाश की गति से चलेगी, वह प्रकाश बन जाएगी। इस रिकॉर्डिंग की वजह से इस मानव शरीर में अस्तित्व का प्रतिबिंब झलकता है। और इसी वजह से कहा जाता है कि इंसान की रचना ईश्वर की छवि के रूप में ही हुई है। तो यह बात जो योगिक सिस्टम में हजारों साल पहले कह दी गई, वह हर धर्म में नजर आती है, बेशक थोड़े बिगड़े रूपों में। हमारा कहना यही था कि 'जो कुछ भी इस संसार में घटित हुआ है, वह सब एक छोटे पैमाने पर आपके अंदर भी घटित हुआ है।Ó अगर आप खुद को जान गए तो यह समझ लीजिए कि आप बाहर होने वाली किसी चीज से अनजान नहीं हैं। यह मानव शरीर इस पूरी सृष्टि का प्रतिबिंब है। हम रचना और रचयिता को अलग नहीं कर सकते और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो रचना ही रचयिता है।

साभार: सद्गुरु (ईशा हिंदी ब्लॉग)


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