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इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है

साल में एक बार आने वाली इस शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता उत्तरायण में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 07 Feb 2017 11:16 AM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 11:14 AM (IST)
इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है
इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है

हर महीने अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है। उत्तरायण के समय जब धरती के उत्तरी गोलार्ध में सूरज की गति उत्तर की ओर होती है, तो एक ख़ास शिवरात्रि को मानव शरीर में उर्जाएं कुदरती तौर पर ऊपर की ओर जाती हैं। इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।

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रात्रि के साथ शिव शब्द इसलिए जोड़ा गया क्योंकि शिव का अर्थ होता है वह जो नहीं है। सृष्टि का अर्थ है वह जो है। इसलिए सृष्टि के स्त्रोत को शिव नाम से जाना गया। शिव शब्द के अर्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण है वह ध्वनि जो की शिव शब्द से जुडी है। यह ध्वनि एक ख़ास ऊर्जा उत्पन्न करती है जो हमें सृष्टि के स्त्रोत तक ले जा सकती है। इसलिए शिव एक शक्तिशाली मन्त्र भी है।

आदि योगी, जिन्होंने योग की तकनीक सप्त ऋषियों के माध्यम से सारे विश्व तक पहुंचाई, को भी हम शिव कहते है हर महीने की सबसे अंधेरी रात शिवरात्रि होती है, यह अमावस्या से एक दिन पहले की रात होती है। साल में एक बार आने वाली इस शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।

खास तौर पर यहां, वेलंगिरि पहाडिय़ों में यह और भी ज्यादा है। आधुनिक विज्ञान में और काफी पहले से योग विज्ञान में यह बात सिद्ध हो चुकी है कि शून्य डिग्री अक्षांश से यानि विषुवत रेखा या इक्वेटर से तैंतीस डिग्री अक्षांश तक, शरीर के अंदर खड़ी अवस्था में जो भी साधना की जाती है, वह सबसे ज्यादा असरदार होती है।

शून्य से तैंतीस डिग्री के बीच, ग्यारह डिग्री अक्षांश को सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि उस जगह पर ऊर्जा शरीर के अंदर नीचे से ऊपर की ओर चढ़ती है। वेलंगिरि पहाडिय़ां और ध्यानलिंग ठीक ग्यारह डिग्री पर मौजूद हैं। दुनिया में और भी कई पवित्र स्थान हैं, जिन्हें ग्यारह डिग्री अक्षांश पर बनाया गया है। इसलिए हम सही समय पर सही जगह पर हैं और अगर आपकी ग्रहणशीलता बिल्कुल सही स्तर पर हो, तो यह हर किसी के लिए बहुत शक्तिशाली रात हो सकती है। मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है कि यह रात आपके लिए सिर्फ जागते रहने की एक रात न हो यह आपके लिए जागरण और बोध की रात भी बन जाए।

शिव शब्द की ध्वनि और अर्थ-

शिव शब्द का मतलब है 'वह जो नहीं हैÓ। सृष्टि वह है जो है। सृष्टि के परे, सृष्टि का स्रोत वह है जो नहीं हैÓ। शब्द के अर्थ के अलावा, शब्द की शक्ति, ध्वनि की शक्ति बहुत अहम पहलू है। हम संयोगवश इन ध्वनियों तक नहीं पहुंचे हैं। यह कोई सांस्कृतिक घटना नहीं है, ध्वनि और आकार के बीच के संबंध को जानना एक अस्तित्व संबंधी प्रक्रिया है। हमने पाया कि 'शिÓ ध्वनि, निराकार या रूपरहित यानी जो नहीं है, के सबसे करीब है। शक्ति को संतुलित करने के लिए 'वÓ को जोड़ा गया।

अगर कोई सही तैयारी के साथ 'शिÓ शब्द का उच्चारण करता है, तो वह एक उच्चारण से ही अपने भीतर विस्फोट कर सकता है। इस विस्फोट में संतुलन लाने के लिए, इस विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए, इस विस्फोट में दक्षता के लिए 'वÓ है। 'वÓ वाम से निकलता है, जिसका मतलब है, किसी खास चीज में दक्षता हासिल करना।

इसलिए सही समय पर जरूरी तैयारी के साथ सही ढंग से इस मंत्र के उच्चारण से मानव शरीर के भीतर ऊर्जा का विस्फोट हो सकता है। 'शिÓ की शक्ति को बहुत से तरीकों से समझा गया है। यह शक्ति अस्तित्व की प्रकृति है।

शिव शब्द के पीछे एक पूरा विज्ञान है। यह वह ध्वनि है जो अस्तित्व के परे के आयाम से संबंधित है। उस तत्व जो नहीं है के सबसे नजदीक 'शिवÓ ध्वनि है। इसके उच्चारण से, वह सब जो आपके भीतर है आपके कर्मों का ढांचा, मनोवैज्ञानिक ढांचा, भावनात्मक ढांचा, जीवन जीने से इक_ा की गई छापें वह सारा ढेर जो आपने जीवन की प्रक्रिया से गुजरते हुए जमा किया है, उन सब को सिर्फ इस ध्वनि के उच्चारण से नष्ट किया जा सकता है और शून्य में बदला जा सकता है। अगर कोई जरूरी तैयारी और तीव्रता के साथ इस ध्वनि का सही तरीके से उच्चारण करता है, तो यह आपको बिल्कुल नई हकीकत में पहुंचा देगा।

शिव शब्द या शिव ध्वनि में वह सब कुछ विसर्जित कर देने की क्षमता है, जिसे आप 'मैंÓ कहते हैं। वह सब कुछ जिसे आप 'मैंÓ कहते हैं, फिलहाल आप जिसे भी 'मैंÓ मानते हैं, वह मुख्य रूप से विचारों, भावनाओं, कल्पनाओं, मान्यताओं, पक्षपातों और जीवन के पूर्व अनुभवों का एक ढेर है। अगर आप वाकई अनुभव करना चाहते हैं, कि इस पल में क्या है, अगर आप वाकई अगले पल में एक नई हकीकत में कदम रखना चाहते हैं, तो यह तभी हो सकता है जब आप खुद को हर पुरानी चीज़ से आजाद कर दें। वरना आप पुरानी हकीकत को ही अगले पल में खींच लाएंगे। रोज, हर पल, कई दशकों का भार घसीटने का बोझ, जीवन से सारा उल्लास खत्म कर देता है। ज्यादातर लोगों के लिए बचपन की मुस्कुराहटें और हंसी, नाचना-गाना जीवन से गायब हो गया है और उनके चेहरे इस तरह गंभीर हो गए हैं मानो वे अभी-अभी कब्र से निकले हों। यह सिर्फ बीते हुए कल का बोझ आने वाले कल में ले जाने के कारण होता है। अगर आप एक बिल्कुल नए प्राणी के रूप में आने वाले कल में, अगले पल में कदम रखना चाहते हैं, तो शिव ही इसका उपाय है।

स्थायी शांति, जिसे हम शिव कहते हैं, में जब ऊर्जा का पहला स्पंदन हुआ, तो एक नया नृत्य शुरू हुआ। आज भी, वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हुआ है कि अगर खाली स्थान में या उसके आस-पास भी आप इलेक्ट्रोमैगनेटिक ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, तो सूक्ष्म आणविक कण प्रकट होते हैं और नृत्य करने लगते हैं। तो एक नया नृत्य शुरू हुआ, जिसे हम सृजन का नृत्य कहते हैं।

सृजन के इस नृत्य को जो खुद ही स्थायी शांति से उत्पन्न हुआ कई अलग-अलग नाम दिए गए। सृष्टि के उल्लास को प्रस्तुत करने की कोशिश में हमने उसे कई अलग-अलग रूपों में नाम दिया।

भगवान शिव की ध्यानमग्न अवस्था-

हिमालय के बहुत ऊंचाई वाले इलाकों में एक योगी प्रकट हुए। किसी को पता नहीं था कि वह कहां से आए थे। किसी को उनके अतीत की कोई जानकारी नहीं थी, न ही उन्होंने खुद अपना परिचय देने की जरूरत समझी। लोग बस उनका तेजस्वी रूप और भव्य मौजूदगी को देखते हुए उनके इर्द-गिर्द जमा हो गए। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वे उनसे क्या उम्मीद रखें। वह बिना कुछ कहे, बिना कुछ बोले, बिना हिले-डुले बस वहां बैठे रहे। दिन, सप्ताह, महीने गुजर गए, वह बस वहां बैठे रहे। फिर आम लोग अपनी दिलचस्पी खो बैठे क्योंकि वे किसी तरह की आतिशबाजी की उम्मीद में थे। उन्हें उम्मीद थी कि वह किसी तरीके से उनकी साधारण समस्याओं का समाधान करेंगे। मगर योगी ने उनमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, वह बस स्थिर, बिना हिले-डुले, वहां बैठे रहे। केवल सात लोग वहां लगातार बैठे रहे और इन सात लोगों को आज सप्तऋषि इस धरती के विख्यात ऋषियों के नाम से जाना जाता है। ये सात ऋषि शिव की शिक्षा के सात आयामों को दुनिया के अलग-अलग कोनों तक ले जाने के साधन बने। उनका कार्य अब भी दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद है, भले ही वह विकृत हो गया हो मगर मौजूद है।

सप्तऋषि-अगस्त्य मुनि का योगदान-

आज भी पूरी धरती पर इन ऋषियों के पहुंचने के महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण हैं। मगर दक्षिण भारत में हमारे लिए इन सभी में से सबसे महत्वपूर्ण अगस्त्य मुनि हैं।

वह दक्षिण भारत में सबसे महत्वपूर्ण चीज यह लाए कि उन्होंने योग को एक शिक्षा, एक अभ्यास, एक गूढ़ प्रक्रिया के रूप में नहीं सिखाया बल्कि वह उसे लोगों के जीवन में इस तरह ले आए कि हम जिस तरह बैठें, खड़े हों, खाएं, अपनी दिनचर्या की मामूली चीजें करें, वही हमारी मुक्ति का साधन बन जाए। उन्होंने जीवन और जीवन के नियमों को इस तरह सामने रखा कि जीवन की प्रक्रिया ही वैसी बन गई। आज भी, विंध्य के इस ओर के लोग अनजाने में योग को सीखे बिना उसका आनंद उठा रहे हैं। आप देख सकते हैं कि उसका क्या असर पड़ा है और उसने लोगों को कितना फायदा पहुंचाया है।

कुछ हजार साल पहले अगस्त्य मुनि ने जो किया, वह अब भी जीवित है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दक्षिण भारत में उनका काम एक बार फिर से फैले और गुंजायमान हो।

साभार: सद्गुरु (ईशा हिंदी ब्लॉग)


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