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सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर लक्ष्य को कैसे पाया जा सकता है

स्वयं से पूछें कि क्या मैंने कभी ऐसा कार्य करने का प्रयत्न किया है, जिसे किसी अन्य ने न किया हो? यह सृजनात्मक शक्ति के उपयोग की प्रारंभिक अवस्था है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 20 Apr 2017 10:58 AM (IST)Updated: Thu, 20 Apr 2017 10:58 AM (IST)
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर लक्ष्य को कैसे पाया जा सकता है
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर लक्ष्य को कैसे पाया जा सकता है

 प्रत्येक व्यक्ति को न सिर्फ अपने अंदर की रचनात्मक शक्ति को पहचानना होगा, बल्कि उसे प्रयोग में लाने का प्रयास भी करना होगा। प्रयास की शक्ति से ही बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। परमहंस योगानंद का चिंतन्...

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 हम गौर से देखें तो संसार एक विराट दृश्य के समान मालूम होता है। इसमें मानव जाति का विशाल जनसमूह बिना किसी लक्ष्य के हड़बड़ी में कहीं दौड़ा चला जा रहा है। यदि विचार किया जाए, तो व्यक्ति आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता है कि यह सब क्या है? हम कहां जा रहे है? हमारा उद्देश्य क्या है? लक्ष्य तक पहुंचने का उत्तम व अति विश्वसनीय मार्ग कौन-सा है? ज्यादातर लोग खासकर युवा अनियंत्रित मोटरगाड़ियों की

भांति बिना किसी लक्ष्य या बिना किसी योजना के दौड़े चले जा रहे हैं। उन्हें यह जरा भी पता नहीं होता है कि आखिर उन्हें क्या हासिल करना है? जीवन के मार्ग पर असावधानी से दौड़ते हुए वे अपनी यात्रा के उद्देश्य को जानने में असफल हो जाते हैं। व्यक्ति कदाचित ही ध्यान दे पाता है कि वह घुमावदार भ्रामक मार्गों पर है, जो उसे कहीं भी नहीं ले जा रहा है। वह ऐसे सही मार्ग पर नहीं जा रहा है, जो सीधे उसके लक्ष्य तक ले जाता हो। इसी भ्रम में पूरी उम्र बीत जाती है। जब अंत समय आता है, तो फिर वह सोचने के लिए बाध्य हो जाता है कि अंधाधुंध दौड़ते हुए उसने कुछ भी तो नहीं पाया। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर लक्ष्य को कैसे पाया जा सकता है?

प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रयास करने की शक्ति होती है। यदि वह प्रयास करे, तो पहाड़ को काटकर सुगम रास्ता बना सकता है। यदि वह चाहे, तो समुद्र से मोती भी निकाल सकता है, बशर्ते उसे अपने लक्ष्य की पहचान हो।

यदि वह लक्ष्य हासिल करना चाहता है या कुछ पाना चाहता है, तो वह अपने अंदर की शक्ति को प्रयोग में लाने का प्रयत्न करता है।

यदि वह कोई सकारात्मक कार्य करना चाहता है, तो अंदर की शक्ति बहुत काम आती है। अंदर की शक्ति ही रचनात्मक शक्ति कहलाती है और उसको प्रयोग में लाना ही रचनात्मक प्रयास कहलाता है। इसे हम प्रथम प्रयास भी कह सकते हैं। यह रचनात्मक शक्ति हममें से प्रत्येक में विद्यमान होती है। यह अनंत सृष्टिकत्र्ता की एक चिंगारी के समान है। ज्यादातर लोग अपनी रचनात्मक शक्तियों का सीमित प्रयोग करते हैं। वे मुख्यत: भोजन करने, कार्य करने, मनोरंजन तथा सोने में ही अपनी सारी ऊर्जा समाप्त कर देते हैं। यदि हम जीवन इसी प्रकार जीते रहे, तो मनुष्य और पशु में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा। मनोवैज्ञानिक यह कह सकते हैं कि पशुऔर मनुष्य के बीच एक अंतर यह है कि मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जो हंसता है। हंसना अच्छा है। इसके अलावा, उसके पास विचार करने के लिए मस्तिष्क भी है। यदि आप मस्तिष्क का प्रयोग नहीं करते हैं, तो इस शक्ति का उपयोग न होने पर आप सर्वथा मानवीय विकास के एक पहलू को खो देते हैं। उन लोगों की तरह न बनें, जो रोजमर्रा के जीवन को इतने गंभीर रूप से लेते हैं कि वे हंसने से भी डरते हैं। वे जीने का आनंद बिल्कुल भी नहीं उठा पाते हैं। हंसने की अनूठी क्षमता के अतिरिक्त मनुष्य में प्रथम प्रयास करने की भी अनूठी शक्ति है। भारत आध्यात्मिक भूमि है। आध्यात्मिक तौर पर प्रयास की शक्ति सृजनशक्ति है। सृजन अर्थात कुछ ऐसा करना,

जिसे किसी दूसरे ने न किया हो। यह कार्यों को नए तरीके से करने तथा नई चीजों को नए ढंग से रचने का प्रयास है।

पहल करने की शक्ति वह सृजनात्मक सामथ्र्य है, जो आपको अपने सृष्टिकत्र्ता से सीधे प्राप्त होती है। कितने लोग अपनी सृजनात्मक क्षमता का प्रयोग करने के लिए वास्तव में प्रयास करते हैं? सप्ताह, महीने और वर्ष बीत जाते हैं, पर वे सदा वैसे ही रहते हैं। आयु के अतिरिक्त वे जरा भी नहीं बदलते। सृजनशक्ति वाला व्यक्ति एक उल्का की भांति तेजस्वी है, जो शून्य से भी कुछ उत्पन्न कर सकता है और जो ईश्वर की महान आविष्कारक शक्ति द्वारा असंभव को भी संभव बना देता है। सृजनात्मक शक्ति वाले व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं- साधारण श्रेणी, मध्यम श्रेणी एवं सामान्य श्रेणी। अन्य सैकड़ों लोग शून्यता के स्वामी हैं, जो श्रेणी विहीन भूमि में रह रहे हैं। स्वयं से यह प्रश्न पूछें कि क्या मैंने कभी ऐसा कार्य करने का प्रयत्न किया है, जिसे किसी अन्य ने न किया हो? यह सृजनात्मक शक्ति के उपयोग की प्रारंभिक अवस्था है। 


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