Move to Jagran APP

महाभारत के युद्ध का कारण बना ये जुए का खेल

पांडवों ने हस्तिनापुर छोड़ने के बाद नया शहर इन्द्रप्रस्थ बसाया और राजसूय यज्ञ की योजना बनाई। इसी की तैयारी में ब्राह्मणों के वेश में कृष्ण, अर्जुन और भीम जरासंध के पास गए और वहां मल्ल युद्ध में भीम के द्वारा जरासंध का वध हुआ। यज्ञ से पहले होने वाली अग्र

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2015 02:05 PM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2015 02:41 PM (IST)
महाभारत के युद्ध का कारण बना ये जुए का खेल
महाभारत के युद्ध का कारण बना ये जुए का खेल

पांडवों ने हस्तिनापुर छोड़ने के बाद नया शहर इन्द्रप्रस्थ बसाया और राजसूय यज्ञ की योजना बनाई। इसी की तैयारी में ब्राह्मणों के वेश में कृष्ण, अर्जुन और भीम जरासंध के पास गए और वहां मल्ल युद्ध में भीम के द्वारा जरासंध का वध हुआ। यज्ञ से पहले होने वाली अग्र पूजा में पितामह भीष्म द्वारा कृष्ण का नाम प्रस्तावित किया। इसके बाद शिशुपाल भगवान कृष्ण को अपशब्द बोलने लगा और फिर कृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध हुआ। आगे पढ़ें कि कैसे इन्द्रप्रस्थ के वैभव को देख कर दुर्योधन के मन में ईर्ष्या आई और कैसे ये ईर्ष्या ही सब को महाभारत के युद्ध तक ले गई…

loksabha election banner

सद्‌गुरुराजसूय यज्ञ में भाग लेने के लिए दुर्योधन भी इंद्रप्रस्थ पहुंचा था। यहां आकर वह इंद्रप्रस्थ महल का वैभव देखकर हैरान था। वह महल को इधर-उधर देखता हुआ आगे बढ़ रहा था। रास्ते में उसे एक ऐसा फर्श दिखा, जो अपने आप में एक पानी का ताल लगता था। जब उसने उसे छुआ तो महसूस हुआ कि यह तो पारदर्शी क्रिस्टल का है। दूसरी ओर द्रौपदी और भीम एक झरोखे में खड़े होकर यह पूरी घटना देख रहे थे। दुर्योधन को लगा कि जो भी ताल जैसा दिखता है, वह दरअसल फर्श है, जिस पर चला जा सकता है। उसके बाद उसने इस पर ध्यान देना छोड़ दिया। रास्ते में जब एक ताल आया तो दुर्योधन उसे भी फर्श समझकर जैसे ही आगे बढ़़ा, वह पानी में गिर पड़ा। दुर्योधन की इस हालत पर द्रौपदी जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी।

दुर्योधन ने जब द्रौपदी को अपने उपर इस तरह से हंसते देखा तो वह गुस्से से भर उठा। उसने मन ही मन सोचा कि एक न एक दिन इस औरत को इस अपमान का मजा चखाउंगा। दुर्योधन को पहले से ही पांडवों की इतनी प्रगति और वैभवशाली राज्य देखकर ईष्र्या हो रही थी।

जब दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो उसकी इस हरकत पर भीम ने प्रतिज्ञा की, कि एक दिन मैं दुशासन की छाती फाड़कर उसका लहू पियूंगा। दूसरी ओर द्रौपदी ने भीम से कहा कि जब तक उसकी छाती का खून नहीं लाओगे, तब तक मैं अपने बाल नहीं बांधूंगी। वह सहन नहीं कर पा रहा था कि कैसे इन लोगों ने अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया। इस अपमान से जलते हुए वह वापस हस्तिनापुर पहुंचा और पांडवों से बदला लेने की योजना बनाने लगा। दुर्योधन जानता था कि शायद वह आपसी युद्ध में पांडवों से जीत न सके, इसलिए उसने पांडवों से बदला लेने के लिए अपने मामा शकुनि की मदद ली। शकुनि ने उन्हें जुए के खेल में भाग लेने के लिए बुलाने की योजना बनाई। दरअसल, वह जानता था कि कोई भी क्षत्रिय कभी भी जुए के खेल के न्यौते को ठुकरा नहीं सकता, क्योंकि उस समय जुए का न्यौता ठुकराना क्षत्रिय के लिए कायरता मानी जाती थी। दूसरी ओर जुआ युधिष्ठिर की कमजोरी भी थी। हालांकि वह इस खेल में कोई खास पारंगत नहीं थे, जबकि शकुनि इस खेल का माहिर माना जाता था।

पांडवों को जुए के लिए बुलाने का मकसद था कि जुए में उनसे उनका राज्य छीन लिया जाए। दुर्योधन के निमंत्रण पर पांडव हस्तिनापुर आए। दोनों के बीच खेल शुरू हुआ। शुरू में युधिष्ठिर अपना पैसा, आभूषण, अपनी निजी संपत्ति सब हार गया। यहां तक कि उसने अपना राज्य भी दांव पर लगा दिया और उसे भी हार गया। इस पर दुर्योधन और शकुनि युधिष्ठर को उकसाने लगे कि ‘अभी भी दांव पर लगाने के लिए तुम्हारे पास अपने भाई हैं। तुम उन्हें दांव पर लगा सकते हो।’ एक एक करके युधिष्ठर अपने भाइयों को दांव पर लगाता गया और हारता गया। अंत में वह अपने चारों भाइयों को हार बैठा। तब कौरवों ने उसे द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए उकसाया। उन्होनें कहा कि ‘अगर तुम अपनी पत्नी को दांव पर लगाते हो और जीत जाते हो तो तुम अपना सबकुछ वापस पा सकते हो। अगर तुम हारते हो सिर्फ अपनी पत्नी को हारोगे।’ मूर्ख युधिष्ठिर उनकी बातों में आ गया और उसने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया और उसे भी हार गया।

इस जीत से दुर्योधन और शकुनि बेहद खुश हो गए। उन्होंने कहा, ‘तुम जुए में हार गए हो; अब तुम, तुम्हारे भाई और तुम्हारी पत्नी सब हमारे दास हैं।’ दुर्योधन ने द्रौपदी को सभा में लाने का आदेश दिया। एक संदेशवाहक महल के भीतर द्रौपदी के पास गया और उसने बताया कि जुए में युधिष्ठिर ने आपको दांव पर लगाया और वह हार गए। इतना सुनते ही द्रौपदी क्रोध से पागल हो उठी। उसने कहा, ‘वह मुझे दांव पर कैसे लगा सकते हैं। अगर उन्होनें खेल में पहले खुद को दांव पर लगाया और हार गए तो वह दास हो गए। एक दास को यह अधिकार कैसे हो सकता है कि वह मुझे दांव पर लगाए।’ द्रौपदी ने सभा में जाने से साफ इनकार कर दिया।

कौरवों में दूसरे नंबर का भाई दुशासन अंत:कक्ष में गया और द्रौपदी को उसके बालों से खींचते हुए सभा में ले आया। भारत वर्ष के इतिहास में इससे पहले ऐसी घटना कभी नहीं हुई थी। यह घटना देखकर हर कोई खिन्न और सदमे में था। लेकिन कौरव एक तकनीकी आधार पर दलील दे रहे थे- ‘वे लोग खेल में हार गए हैं। अब वह एक गुलाम स्त्री है, इसलिए हम उसके साथ जो चाहे, कर सकते हैं।’ कर्ण कौरवों से एक कदम आगे बढ़ते हुए बोला- ‘यहां तक कि इन पांच भाइयों और इस स्त्री ने जो कपड़े पहने हैं, उन पर भी हमारा अधिकार है। तुम लोगों को इन कपड़ों को उतार देना चाहिए।’ यह सुनकर उन पांच भाइयों ने तुरंत अपने उपरी वस्त्र उतार दिए और अंत:वस़्त्रों में एक तरफ खड़े हो गए। जबकि द्रौपद्री सिर्फ एक वस्त्र यानी साड़ी में थी। वे लोग पांडवों और द्रौपदी को अपमानित करना चाहते थे। इसलिए वह इस हद तक गए कि उन्होंने भरी सभा में सबके सामने द्रौपदी की साड़ी खींचनी शुरू कर दी।

द्रौपदी ने जब खुद को निस्सहाय पाया तो उसने कृष्ण का नाम लेना शुरू कर दिया। तभी एक चमत्कार हुआ। दुशासन जितनी द्रौपदी की साड़ी खींचता, उसकी साड़ी उतनी ही बढ़ती जाती। देखते देखते द्रौपदी की साड़ी का ढेर लग गया। साड़ी खींचते-खीचते दुशासन थककर हांफ ने लगा। अंत में पांडवों और द्रौपदी को दासत्व से मुक्ति दे दी गई। पांडवों को उनका पूरा राज्य और दौलत दे दी गई। लेकिन कौरवों के कहने पर युधिष्ठर जुए का एक और दांव खेलने बैठ गया और फिर सब कुछ अपना हार बैठा। इस बार हारने के बदले उन्हें बारह साल का वनवास और उसके बाद एक साल का अज्ञातवास मिला। इसमें शर्त रखी गई कि अगर अज्ञातवास में उनका पता चल जाता है तो उन्हें फिर से बारह साल का वनवास झेलना पड़ेगा।

पांडवों ने बारह साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास पूरा किया और लौट कर अपना राज्य वापस मांगा। जब दुर्योधन ने पांडवों को उनका राज्य लौटाने से मना कर दिया तो युधिष्ठर ने कौरवों से कहा कि हम पांच भाइयों के लिए पांच गांव दे दिए जाएं। दरअसल, युधिष्ठर युद्ध नहीं चाहता था। लेकिन दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया कि मैं सुई की नोंक के बराबर भूमि नहीं दूंगा। अंतत: उसकी यह जिद पूरे परिवार को महाभारत के युद्ध तक ले गई।

जब दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो उसकी इस हरकत पर भीम ने प्रतिज्ञा की, कि एक दिन मैं दुशासन की छाती फाड़कर उसका लहू पियूंगा। दूसरी ओर द्रौपदी ने भीम से कहा कि जब तक उसकी छाती का खून नहीं लाओगे, तब तक मैं अपने बाल नहीं बांधूंगी। कई सालों बाद जब भीम ने महाभारत के युद्ध में दुशासन का वध किया तो द्रौपदी ने उसके खून से अपने बालों का अभिषेक किया और उसके बाद ही अपने बाल बांधे।

द्रौपदी एक बेहद तेजस्वी महिला थी। वह न सिर्फ बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थी, बल्कि राजकाज के सभी कामों में रुचि लेती थी। लेकिन इसके साथ ही वह अपने साथ हुई ज्यादतियों के चलते बदले की आग में भी जल रही थी। आज महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय में उन्हें न्याय कैसे दिलाया जाए?

दुर्योधन जानता था कि शायद वह आपसी युद्ध में पांडवों से जीत न सके, इसलिए उसने पांडवों से बदला लेने के लिए अपने मामा शकुनि की मदद ली। शकुनि ने उन्हें जुए के खेल में भाग लेने के लिए बुलाने की योजना बनाई। शहरों में तो फिर भी कुछ हद तक कानून काम करता है, लेकिन गांवों व दूरदराज के इलाकों में अभी कानून की बजाय सामाजिक नियम ही ज्यादा काम करते हैं। कई भयानक चीजें होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिलाओं के साथ ही होती हैं। लेकिन महिलाओं के साथ ज्यादा अन्याय इसलिए नजर आता है, क्योंकि वह शारीररिक तौर पर पुरुषों से ज्यादा असहाय नजर आती है।

अन्याय, तिरस्कार और पीड़ा तो किसी को हो सकता है, जो शक्तिविहीन है। फिर चाहें वह आदमी हो या औरत। बेहतर होगा कि हम अन्याय का सामना एक समस्या के तौर पर करें, न कि उसे किसी लिंग के साथ जोडक़र। हमें हर स्तर पर अन्याय को रोकना होगा या फिर हमें कोशिश करनी होगी कि इसकी तादाद कम से कम हो सके। हम या तो धर्म की स्थापना के लिए काम करते हैं या फिर धर्म की आलोचना के लिए।

सिर्फ गलत चीज न करना ही महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि इसके साथ गलत घटते हुए को रोकना या कुछ गलत न होने देना भी उतना ही महत्चपूर्ण है। हो सकता है कि हम सब कुछ न रोक पाएं, लेकिन ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें हम रोक सकते हैं। हर व्यक्ति को अपना धर्मयुद्ध अपने आस-पास और अपने भीतर जरूर लडऩा पड़ता है। सबसे पहले आप अपने भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार से लडि़ए।

साभार: सद्गुरु (ईशा हिंदी ब्लॉग)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.