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महाभारत : गांधारी ने क्यों नहीं रोका धृतराष्ट्र को

कई बार हमें अपने आस-पास कई चीजें गलत होती हुई दिखती हैं, लेकिन हम किसी परेशानी की डर से उसे स्वीकार कर लेते हैं, या अपनी मौन सहमति दे देते हैं। क्या यह सही है? क्या हर बार बदलाव के लिए आवाज उठाना जरूरी है?

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2015 01:30 PM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2015 01:33 PM (IST)
महाभारत : गांधारी ने क्यों नहीं रोका धृतराष्ट्र को
महाभारत : गांधारी ने क्यों नहीं रोका धृतराष्ट्र को

कई बार हमें अपने आस-पास कई चीजें गलत होती हुई दिखती हैं, लेकिन हम किसी परेशानी की डर से उसे स्वीकार कर लेते हैं, या अपनी मौन सहमति दे देते हैं। क्या यह सही है? क्या हर बार बदलाव के लिए आवाज उठाना जरूरी है?

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प्रश्‍न : सद्‌गुरु, धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी जानती थी कि सही क्या है और गलत क्या है – फिर उसने हस्तिनापुर में होने वाले सभी बुरे कामों से आंख क्यों मूंद ली? क्या उसे कुछ हद तक धृतराष्ट्र की राय को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी? आज भी घरेलू मामलों में स्त्रियों की राय बहुत मायने नहीं रखती, लेकिन अगर वे 5 फीसदी भी अंतर ला सकती हैं, तो क्या उन्हें इसकी कोशिश नहीं करनी चाहिए, परिवार की शांति को भंग करने की कीमत पर भी?

सद्‌गुरु: धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, इसलिए गांधारी भी अपनी आंखों से नहीं देखना चाहती थी। इसलिए जब उनकी शादी हुई, तो उसने अपनी बाकी जिंदगी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बिताने की कसम खा ली। सिर्फ एक बार, जब कृष्ण ने हस्तिनापुर दरबार में अपना विराट रूप दिखाया था, तब उसने अपनी आंखों की पट्टी हटाकर देखा था। सिर्फ आंखों से नहीं, बल्कि दूसरी तरह से भी। मगर दोनों, खास तौर पर धृतराष्ट्र ने कई चीजों की ओर से आंखें मूंद ली थी। शाही दरबार का दस्तूर ऐसा था कि जब राजा कोई फैसला कर लेता था, तो किसी को कुछ बोलने का अधिकार नहीं होता था, चाहे वह गड्ढे की ओर जा रहा हो। आखिरी फैसला उसी का होता था।

गांधारी की राय महत्वपूर्ण नहीं थी

कई बार गांधारी ने थोड़ी समझदारी दिखाई मगर बहुत कम। जब असली मुद्दों की बात आई, तो उसने कोई खास कोशिश नहीं की। हमें यह बात माननी पड़ेगी कि उसके हाथ में ज्यादा कुछ नहीं था, क्योंकि धृतराष्ट्र को समझाने वाले लोग काफी चतुर थे। शकुनि से बेहतर साजिश, कपट और छल कोई और नहीं कर सकता था। और जब भी गांधारी या धृतराष्ट्र ने किसी मुद्दे पर पीछे हटना चाहा, तो दुर्योधन आत्महत्या करने की धमकी दे देता था।

अगर आपको लगता है कि कोई चीज वाकई महत्वपूर्ण है, तो आपको किसी भी असहजता की कीमत पर उसके लिए खड़े होना चाहिए, उसका समर्थन करना चाहिए। दुर्योधन ने अपनी पूरी जिंदगी कोई चीज अपने मन मुताबिक न होने पर इसी का सहारा लिया। चाहे उसकी मांग कितनी भी मूर्खतापूर्ण या गलत होती, धृतराष्ट्र को मानना पड़ता क्योंकि उनका बड़ा बेटा उनके लिए सब कुछ था। ‘अगर वह आत्महत्या कर लेगा, तो मैं कैसे जिउंगा?’ कभी-कभार गांधारी बीच में पड़ने की कोशिश करती, मगर धृतराष्ट्र जब एक बार मन बना लेते या कुछ करने के लिए मजबूर कर दिए जाते, तो कदम पीछे नहीं हटाते। गांधारी वाकई कुछ खास नहीं कर सकती थी।

आपके प्रश्न का आखिरी हिस्सा है, ‘क्या परिवार की शांति भंग होने की कीमत पर भी उन्हें कोशिश नहीं करनी चाहिए थी?’ ज्यादातर लोग ऐसा नहीं करना चाहते, चाहे उन्हें सौ फीसदी पता हो कि यही करना सही होगा। अगर वे किसी खास मकसद या सच्चाई या किसी और चीज के लिए खड़े होते हैं, तो उन्हें परिवार में अप्रियता का माहौल झेलना पड़ता है। बहुत सारे लोग उस तनाव को झेलने के लिए तैयार नहीं होते, मगर अपनी बाकी जिंदगी एक झूठ को जीने के लिए तैयार होते हैं। वे किसी चीज का समर्थन करने के लिए और यह कहने के लिए कि ‘ऐसा होना चाहिए’, अपने रिश्तों और परिवारों में उस थोड़ी सी असहजता का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते।

अगर आपको लगता है कि कोई चीज वाकई महत्वपूर्ण है, तो आपको किसी भी असहजता की कीमत पर उसके लिए खड़े होना चाहिए, उसका समर्थन करना चाहिए। वरना आपका जीवन किसी काम का नहीं है। अगर आप बस किसी तरह अपने आस-पास थोड़ी सुखद स्थिति बरकरार रखने की कोशिश करते हैं, तो यही सुख की चाह एक दिन आपको डुबो देगी। जिसे आप वाकई सही मानते हैं, उसके लिए खड़े होने पर अगर आपको माहौल में थोड़ी अप्रियता भी झेलनी पड़ती है, तो यह कोई बुरी बात नहीं है।

जब लोग खुद को कुछ सीमाओं, कुछ झूठों, कुछ सुविधाओं में कैद कर लेते हैं और आप उनकी नाराजगी की कीमत पर भी उनकी सीमाओं को तोड़ने की कोशिश नहीं करते, तो इसका मतलब सिर्फ यह है कि आप उनकी परवाह नहीं करते। आपको बस अपने आराम की चिंता है। क्या सहन करना चाहिए और क्या नहीं, यह कई चीजों पर निर्भर करता है जैसे हालात को संभालने की आपकी क्षमता और सामने वाला व्यक्ति कितना जिद्दी है। आप हर छोटी-छोटी चीज के लिए उठ कर लड़ नहीं सकते। हालात को पलटने की क्षमता हर इंसान में अलग-अलग हो सकती है मगर हर किसी के जीवन में थोड़ी-बहुत नेकी करने और हालात को बिगड़ने न देने की गुंजाइश जरूर होती है। बुराई का मतलब परिवार, रिश्तों या सामाजिक हालातों के अंदर थोड़ा-बहुत भ्रष्टाचार भी हो सकता है, जो किसी दिन एक बड़ा रूप ले सकता है।

यही वजह है कि मैं महाभारत की कहानी आपको बताने की कोशिश कर रहा हूं। लोगों ने हमेशा से दुर्योधन को एक दुष्ट राक्षस की तरह और कृष्ण को स्वर्ग से आए भगवान की तरह देखा है। मगर ऐसा नहीं है। दोनों इंसान हैं – एक अपनी समझ और मानवता का इस्तेमाल करता है, दूसरा नहीं करता। इससे ही सारा फर्क पड़ता है। यही चीज एक को देवता और दूसरे को राक्षस बनाता है। ऐसा नहीं है कि एक स्वर्ग से गिरा और दूसरा नरक से कूद पड़ा। बात बस इतनी है कि हर इंसान के पास हर पल यह अवसर होता है कि वह या तो अपनी मानवता का इस्तेमाल करे या उसे छोड़ कर अपने आस-पास मौजूद हालातों के जाल में फंस जाए।

समझदारी से गलत काम रोके जाने चाहिएं

इसका मतलब यह नहीं है कि आपको आंदोलनकारी बन कर अपने आस-पास मौजूद हर किसी से लड़ना है। यह काम समझदारी से किया जा सकता है। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए हालात को बेहतर बनाने के तरीकों के बारे में सोचा जा सकता है।

सिर्फ एक बार, जब कृष्ण ने हस्तिनापुर दरबार में अपना विराट रूप दिखाया था, तब उसने अपनी आंखों की पट्टी हटाकर देखा था। सिर्फ आंखों से नहीं, बल्कि दूसरी तरह से भी। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप कामयाब होंगे या नहीं। आप लगातार उसके लिए प्रयास कर रहे हैं, यही बात आपके जीवन को सुंदर बनाती है। कृष्ण बार-बार कहते हैं, ‘अपने धर्म का पालन करो, अपना कर्तव्य करो। फल की चिंता मत करो।’ फल या नतीजा कभी भी पूरी तरह आपके हाथ में नहीं होता, चाहे आप कोई भी हों या कितने भी शक्तिशाली हों। जब बाहरी हालातों की बात आती है, तो हम सही नतीजे पाने के लिए हर तरह का हिसाब-किताब कर सकते हैं, फिर भी किसी के लिए कोई गारंटी नहीं है। शिव को भी दुनिया में मेहनत और संघर्ष करना पड़ा था। और आप जानते ही हैं कि कृष्ण को किस तरह हर कदम पर मेहनत और संघर्ष करना पड़ा।

जब कृष्ण फल की इच्छा न करते हुए कर्म करने की बात करते हैं, तब वह आपको दर्शन सिखाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, वह एक हकीकत बयान कर रहे थे। अगर आप फल की इच्छा रखते हैं, तो आपका निराश होना स्वाभाविक है। चाहे आप कुछ भी करें, बाहरी हालात कभी सौ फीसदी हमारे काबू में नहीं होते। अगर कोई ऐसा सोचता है, तो वह किसी कल्पनालोक में रह रहा है, वह लोक एक न एक दिन ध्वस्त हो जाएगा। हर स्थिति में लाखों अलग-अलग शक्तियां काम करती हैं। जो भी यह बात जानता है, वह कभी नहीं सोच सकता कि सब कुछ उसके हाथ में है।

सिर्फ एक मूर्ख ही यह नहीं जानता कि किसी हालात को कामयाब बनाने में कितनी चीजों का हाथ होता है। सिर्फ इसलिए कि अभी मेरे हाथों में एक माइक्रोफोन है, इसका मतलब यह नहीं है कि सारे हालात मेरे हाथ में हैं। लाखों दूसरी शक्तियां होती हैं और वे सब हमारे हाथ में नहीं होतीं। हम चीजों को वश में करने और उन्हें कामयाब बनाने की हर संभव कोशिश करते हैं, जो हमारी क्षमता और कौशल पर निर्भर करता है। मगर फिर भी, चाहे आप कितने भी काबिल और दक्ष हों, बाहरी हालात कभी भी सौ फीसदी आपके हाथों में नहीं हो सकते। और यही तो जीवन की खूबसूरती है।

अगर आपने कोई कोशिश की और वह कामयाब नहीं हुई, तो क्या हुआ? आपका जीवन इसलिए खूबसूरत नहीं है क्योंकि कोई चीज घटित हो रही है या नहीं हो रही। आपका जीवन सुंदर इसलिए है क्योंकि आप जिसे सही और उचित मानते हैं, उसके लिए कोशिश कर रहे हैं। इसलिए, निश्चित रूप से, चाहे आप कोई स्त्री हैं या पुरुष, आपको उसके लिए कोशिश करनी चाहिए। वरना, आपका जीवन किस लायक है?

सद्‌गुरु


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