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नेत्रहीनों के लिए रोशनी

यह कविता हमारे लिए एक निमंत्रण है, सद्गुरु के भीतर प्रज्जवलित ज्ञान की अग्नि से अपनी अज्ञानता के अंधेरे को दूर करने का।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 10:14 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 10:17 AM (IST)
नेत्रहीनों के लिए रोशनी
नेत्रहीनों के लिए रोशनी

यह कविता हमारे लिए एक निमंत्रण है, सद्गुरु के भीतर प्रज्जवलित ज्ञान की अग्नि से अपनी अज्ञानता के अंधेरे को दूर करने का।

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नेत्रहीनों के लिए रोशनी

अग्नि मेरे मन की

अग्नि मेरे ह्रदय की

अग्नि मेरे शरीर की

मेरे अस्तित्व की प्रबल अग्नि

जिसे कर लिया है संघनित मैंने

अपने भीतर शीतल ज्वाला के रूप में

शीतलता मेरी अग्नि की

बनाती है उसे बेशर्त

नहीं है निर्भर वह

अपने जीवन के लिए, ऑक्सीजन पर

रहती है वह प्रज्जवलित

ठंढे जल या हिम के भीतर भी

और देती रहती है सतत् प्रकाश

प्रकाश जो परे है

इन्द्रियों की अनुभूति से

प्रकाश जो है सनातन

प्रकाश जिसे जान सकता है

एक नेत्रहीन भी

अपनी नेत्रहीनता को

हर लो और भर लो प्रकाश

अपने भीतर मेरी शीतल ज्वाला से

साभार: सद्गुरु (ईशा हिंदी ब्लॉग)


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