कर्म ही व्यक्तित्व का निर्धारण हैं, यह आप पर निर्भर करता है कि कैसा बनना चाहते हैं
यदि कोई मनुष्य खाने-पीने की तकलीफ होने पर भी मन-वचन-कर्म से सत्कर्म का आचरण करे, तो मैं ऐसे मनुष्य को ‘तिमिर से ज्योति में जाने वाला’ कहता हूं।
एक बार भगवान बुद्ध कहीं प्रवचन दे रहे थे। प्रवचन के उपरांत एक जिज्ञासु राजा ने भगवान बुद्ध से प्रश्न किया, ‘महाराज, आपने अभी-अभी कहा कि मनुष्य चार प्रकार के होते हैं। इसके गूढ़ार्थ क्या हैं? कृपया बताएं।’
भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, ‘मनुष्य चार प्रकार के होते हैं- एक, तिमिर से तिमिर में जाने वाला, दूसरा तिमिर से
ज्योति की ओर जाने वाला तथा तीसरा, ज्योति से तिमिर की ओर जाने वाला। चौथे प्रकार का मनुष्य वह होता है, जो ज्योति से ज्योति की ओर जाता है।’ बुद्ध ने राजा को आगे बताया, ‘राजन्! यदि कोई मनुष्य जीवन भर बुरे
कर्म करता रहा हो तथा जिसने अपने आप को बदलने की कभी कोशिश न की हो, तो वह ‘तिमिर से तिमिर में जाने वाला’ कहलाता है। वहीं दूसरी ओर, यदि कोई मनुष्य खाने-पीने की तकलीफ होने पर भी मन-वचन-कर्म से सत्कर्म का आचरण करे, तो मैं ऐसे मनुष्य को ‘तिमिर से ज्योति में जाने वाला’ कहता हूं। जो मनुष्य पहले तो सदाचरण की साधना करता हो, लेकिन बाद में दूसरे लोगों के प्रभाव में आकर दुराचरण करने लगा हो, तो वह ‘ज्योति से तिमिर में जाने वाला’ व्यक्ति कहलाएगा। इसी प्रकार, जो मनुष्य सदैव सदाचरण की साधना करता हो, तो मैं उसे ‘ज्योति से ज्योति में जाने वाला’ मनुष्य मानता हूं।’
कथासार : आपके कर्म ही आपके व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। यह आप पर निर्भर करता है कि कैसा
बनना चाहते हैं।