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कन्याकुमारी और शिव की कथा

परंपरा है कि शिव ने जहां पर भी कुछ अधिक समय बिताया, उसे कैलाश का नाम दे दिया जाता है। इसलिए इस पहाड़ को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 25 Feb 2017 02:39 PM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2017 02:44 PM (IST)
कन्याकुमारी और शिव की कथा
कन्याकुमारी और शिव की कथा

शिव को अक्सर एक शांत और संयमी योगी के रूप में दिखाया जाता है। परंतु हम शिव के बारे में जो भी कहें, इसके ठीक उल्टा भी उतना ही सही है। यह शांत योगी एक समय में एक भावुक प्रेमी भी बन गया था।

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पुण्याक्षी एक अत्यंत ज्ञानी स्त्री और भविष्यवक्‍ता थी, जो भारत के दक्षिणी सिरे पर रहती थीं। उनमें शिव को पाने की लालसा पैदा हो गई या कहें कि उन्हें शिव से प्रेम हो गया और वह उनकी पत्नी बनकर उनका हाथ थामना चाहती थीं। उन्होंने फैसला किया कि वह शिव के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। इसलिए, पुण्याक्षी ने शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने आप को उनके योग्य और उपयुक्त बनाना शुरू कर दिया। वह अपने जीवन का प्रत्येक क्षण पूरी तरह उनके ध्यान में बितातीं, उनकी भक्ति ने सभी सीमाएं पार कर लीं और उनकी तपस्या पागलपन की हद तक पहुंच गई।

शिव करुणा से भर उठे

उनके प्रेम की तीव्रता को देखते हुए, शिव प्रेम और करूणा से विचलित हो उठे। उनके हृदय में भी पुण्याक्षी से विवाह करने की इच्छा जागी। परंतु जिस समाज में पुण्याक्षी रहती थी, उन लोगों को चिंता होने लगी। उन्हें लगा कि विवाह के बाद पुण्याक्षी भविष्यवाणी करने की अपनी क्षमता खो देंगी और उनका मार्गदर्शन करने के लिए उपलब्ध नहीं होंगी। इसलिए उन्होंने इस विवाह को रोकने की हर संभव कोशिश की। लेकिन पुण्याक्षी अपने इरादे पर दृढ़ रहीं और शिव के प्रति अपनी भक्ति जारी रखी।

परंतु समुदाय के बुजुर्गों ने उन्हें रोक कर कहा, “यदि आप इस कन्या को अपनी पत्‍नी बनाना चाहते हैं, तो आपको कुछ शर्तें माननी होंगी। आपको हमें वधू का मूल्य देना होगा।”

शिव ने भी बदले में करूणा दिखाई और उनके विवाह की तिथि तय हो गई। वे भारत के दक्षिणी छोर की ओर चल पड़े। लेकिन पुण्याक्षी के समुदाय के लोग उनके विवाह के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने शिव से गुहार लगाई, “हे शिव, यदि आप उससे विवाह कर लेंगे, तो हम अपना इकलौता ज्ञानचक्षु या पथ-प्रदर्शक खो देंगे। कृपया आप उससे विवाह न करें।” लेकिन शिव उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे और उन्होंने विवाह के लिए अपनी यात्रा जारी रखी।

परंतु समुदाय के बुजुर्गों ने उन्हें रोक कर कहा, “यदि आप इस कन्या को अपनी पत्‍नी बनाना चाहते हैं, तो आपको कुछ शर्तें माननी होंगी। आपको हमें वधू का मूल्य देना होगा।”

शिव ने पूछा, “वधू का मूल्य क्या है? वह जो भी हो, मैं आप लोगों को दूंगा।”

फिर उन्होंने तीन चीजों की मांग की जो शिव को वधू मूल्य के रूप में देना था, “हम बिना छल्‍लों वाला एक गन्ना, बिना धारियों वाला एक पान का पत्ता, और बिना आंखों वाला एक नारियल चाहते हैं। आपको यही वधू मूल्य देना है।”

ये सभी वस्तुएं अप्राकृतिक हैं। गन्ना हमेशा छल्लों के साथ आता है, बिना धारियों का कोई पान का पत्ता नहीं होता और आंखों के बिना कोई नारियल नहीं हो सकता। यह एक असंभव वधू मूल्य था जो विवाह रोकने का अचूक तरीका था।

शिव ने असंभव माँगें पूरी कर दीं

लेकिन शिव को पुण्याक्षी से बहुत प्रेम था और वह किसी भी कीमत पर उससे विवाह करना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने अपनी तंत्र-मंत्र की शक्ति और अपनी चमत्कारी क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए इन तीनों वस्तुओं की रचना कर दी।

परंतु समुदाय के बुजुर्गों ने उन्हें रोक कर कहा, “यदि आप इस कन्या को अपनी पत्‍नी बनाना चाहते हैं, तो आपको कुछ शर्तें माननी होंगी। आपको हमें वधू का मूल्य देना होगा।” शिव ने पूछा, “वधू का मूल्य क्या है? वह जो भी हो, मैं आप लोगों को दूंगा।”उन्होंने अन्यायपूर्ण और असंभव वधू मूल्य को चुकाने के लिए प्रकृति के नियमों को तोड़ दिया। इन मांगों को पूरा करने के बाद, वह विवाह के लिए फिर से आगे बढ़ने लगे।

लेकिन फिर समुदाय के बुजुर्गों ने शिव के सामने एक आखिरी शर्त रखी। उन्होंने कहा, “आपको कल सुबह का सूरज उगने से पहले विवाह करना होगा। यदि आप देर से आए, तो आप उस कन्या से विवाह नहीं कर सकते।”

यह सुनने के बाद, शिव तेजी से आगे बढ़ने लगे। उन्हें यकीन था कि वह समय पर पुण्याक्षी के पास पहुंच जाएंगे। समुदाय के बुजुर्गों ने देखा कि शिव उन सभी असंभव शर्तों को पार करते जा रहे हैं, जो उन्होंने तय की थी और वह अपना वादा पूरा कर लेंगे। फिर उन्हें चिंता होने लगी।

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अपने सफर पर जल्दी-जल्दी आगे बढ़ते हुए शिव विवाह स्थल से कुछ ही किलोमीटर दूर रह गए थे। यह जगह आज सुचिंद्रम के नाम से जाना जाता है। यहां पर उन बुजुर्गों ने अपना आखिरी दांव खेला, उन्होंने एक नकली सूर्योदय का आभास पैदा करने की सोची। उन्होंने कपूर का एक विशाल ढेर लगाया और उसमें आग लगा दी। कन्याकुमारी और शिव की कथा-6

कपूर की अग्नि इतनी चमकीली और तीव्र थी कि जब शिव ने कुछ दूरी से उसे देखा, तो उन्हें लगा कि सूर्योदय हो गया है और वह अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए। वह बहुत नजदीक, सिर्फ कुछ किलोमीटर दूर थे, लेकिन उनके साथ छल करते हुए उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि समय पूरा हो गया है और वह पुण्याक्षी से किया अपना वादा पूरा नहीं कर पाए।

कन्याकुमारी ने क्रोधित होकर शरीर त्याग दिया

पुण्याक्षी इस बात से पूरी तरह अनजान थीं कि उनका समाज इस विवाह को रोकने की कोशिशें कर रहा है, वह शिव के साथ अपने भव्य विवाह की तैयारी में जुटी थीं। जब आकाश में असली सूर्योदय हुआ, तब उन्हें महसूस हुआ कि शिव नहीं आ रहे हैं।

परंपरा है कि शिव ने जहां पर भी कुछ अधिक समय बिताया, उसे कैलाश का नाम दे दिया जाता है। इसलिए इस पहाड़ को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है।वह क्रोधित हो उठीं। उन्होंने जश्न की तैयारी के लिए बनाए गए भोजन से भरे सभी बरतनों को पांव की ठोकर से तोड़ दिया और गुस्से में भूमि के सिरे पर जाकर खड़ी हो गईं। वह एक सिद्ध योगिनी थीं, उन्होंने इस उपमहाद्वीप के आखिरी सिरे पर खड़े-खड़े अपना शरीर त्याग दिया। आज भी उस स्थान पर एक मंदिर है, जहां उन्होंने अपना शरीर त्यागा था और उस स्थान को कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है।

कन्याकुमारी और शिव की कथा

शिव नहीं जानते थे कि उनके साथ छल किया गया। उन्हें लगा कि वह पुण्याक्षी से किया वादा पूरा नहीं कर पाए और वह अपने आप से बहुत मायूस और हताश थे। वह पीछे मुड़कर वापस जाने लगे। लेकिन अपने अंदर के गुस्से के कारण उन्हें कहीं बैठने और अपनी निराशा दूर करने की जरूरत थी। इसलिए वह वेलंगिरि पहाड़ पर चढ़ गए और उसकी चोटी पर बैठ गए।

कन्याकुमारी और शिव की कथा-4

वह आनंदपूर्वक या ध्यानमग्न होकर नहीं बैठे थे। वह एक किस्म की निराशा में और खुद पर क्रोधित हो कर बैठे थे। उन्होंने काफी समय वहां बिताया। पहाड़ ने उनकी ऊर्जा को आत्मसात कर लिया। ये ऊर्जा किसी भी और जगह की ऊर्जा से बहुत ही अलग है।

शिव ने वेल्लिंगिरी पर्वतों को दक्षिण के कैलाश में बदल दिया

परंपरा है कि शिव ने जहां पर भी कुछ अधिक समय बिताया, उसे कैलाश का नाम दे दिया जाता है। इसलिए इस पहाड़ को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है।ऊंचाई, रंग और आकार में वेलंगिरि पहाड़ हिमालय में मौजूद कैलाश की टक्कर का भले न हो, परंतु क्षमता में, सौंदर्य में और पवित्रता में यह उससे कम भी नहीं है। हजारों वर्षों में बहुत से संतों, योगियों और आध्यात्मिक गुरुओं ने इस पहाड़ पर अपने कदम रखे हैं। वेलंगिरि की इन पर्वत-श्रेणियों पर काफी मात्रा में आध्यात्मिक कार्य हुआ है। इतने प्राणियों ने और ऐसे महान पुरुषों ने इस पर्वत पर कदम रखे हैं, जिनकी गरिमा और प्रतिष्ठा से ईश्वर को भी ईर्ष्या होगी। इन महान प्राणियों ने इस पूरे पर्वत को अपने ज्ञान से परिपूर्ण किया और वह ज्ञान कभी नष्ट नहीं हो सकता।

इस पर्वत को ‘सेवेन हिल्स’ (सात पहाड़ों) के रूप में जाना जाता है क्योंकि जब आप उस पर चढ़ाई करते हैं तो वहां सात उतार-चढ़ाव आते हैं जिससे आपको महसूस होता है कि आप सात पहाड़ों पर चढ़ रहे हैं। आखिरी चोटी पर तेज हवा चलती है, वहां घास के अलावा कुछ नहीं उगता। वहां बस तीन बहुत विशाल चट्टानें हैं जो मिलकर एक एक छोटे मंदिर की तरह दिखती हैं, जिसमें एक छोटा लिंगम है। उस स्थान पर बहुत ही जबरदस्त ऊर्जा है।

बहुत से जीवों ने, ऐसे पुरुषों ने, जिनकी दिव्यता और गरिमा से देवताओं को भी ईर्ष्या होगी, ने इस पर्वत की चढ़ाई की है। इन महान विभूतियों के ज्ञान को इस पर्वत ने आत्मसात कर लिया जो कभी नष्‍ट नहीं हो सकता। यह वही पर्वत है जहां मेरे गुरु आए और इसी स्थान पर उन्होंने अपना शरीर त्यागा। इसलिए हमारे लिए यह सिर्फ एक पर्वत नहीं है, एक मंदिर है। यहां पर जानकारियों का विशाल भंडार है। मुझे ध्यानलिंग को प्रतिष्ठित करने का सारा ज्ञान यहीं से प्राप्त हुआ।”

सद्‌गुरु


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