Move to Jagran APP

गुरु तेग बहादुर ने अपनी वाणी में जीवन जीने की एक सहज पद्धति प्रस्तुत की है

गुरु तेग बहादुर जयंती पर विशेष, इस अभूतपूर्व बलिदान के कारण ही उन्हें ‘हिंद की चादर - गुरु तेग बहादुर’ कहकर सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 15 Apr 2017 11:12 AM (IST)Updated: Sat, 15 Apr 2017 11:12 AM (IST)
गुरु तेग बहादुर ने अपनी वाणी में जीवन जीने की एक सहज पद्धति प्रस्तुत की है
गुरु तेग बहादुर ने अपनी वाणी में जीवन जीने की एक सहज पद्धति प्रस्तुत की है

‘सगल जगतु है जैसे सुपना, यह संसार सपना है। इसलिए इस नश्वर, क्षणभंगुर संसार का मोह त्यागकर प्रभु की शरण लेना ही उचित है।’ कहते हैं नवम गुरु तेग बहादुर जी। आध्यात्मिक चिंतक व धर्म साधक गुरु तेगबहादुर का जन्म वैशाख की कृष्ण पक्ष-पंचमी को छठे गुरु हरगोबिंद साहिब और माता बीबी नानकी के घर हुआ। बचपन से ही अध्यात्म के प्रति उनका गहरा लगाव था। वे त्याग और वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। उनका नाम भी पहले

loksabha election banner

‘त्याग मल’ था। उनमें योद्धा के भी गुण मौजूद थे। 

मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने करतारपुर के युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाई। उनकी तेग (तलवार) की बहादुरी से प्रसन्न होकर पिता ने उनका नाम त्यागमल से ‘तेग बहादुर’ कर दिया। सांसारिकता से दूर रहकर गुरु जी आत्मिक साधना में इतना लीन रहते थे कि गुरु पिता के ज्योतिजोत समाने के बाद वे शांत भाव से बकाला

गांव चले गए और निरंतर 21 वर्ष तक साधना में रत रहे। गुरु तेगबहादुर के 57 शबद और 59 श्लोक श्री गुरुग्रंथ साहब में दर्ज हैं। उन्होंने अपनी वाणी में जीवन जीने की एक अत्यंत सहज- स्वाभाविक पद्धति प्रस्तुत की है, जिसे अपनाकर मनुष्य सभी तरह के कष्टों से सुगमता से छुटकारा पा सकता है।

‘नानक हरि गुन गाइ ले छाड़ि सगल जंजाल’। गुरु जी का कथन है कि चिंता उसकी करो, जो अनहोनी हो-‘चिंता ताकी कीजिये जो अनहोनी होय’। इस संसार में तो कुछ भी स्थिर नहीं है। गुरु तेग बहादुर के अनुसार,समरसता सहज जीवन जीने का सबसे सशक्त आधार है। आशा-तृष्णाकाम-क्रोध आदि को त्यागकर मनुष्य को ऐसा

जीवन जीना चाहिए, जिसमें मान-अपमान, निंदा-स्तुति, हर्ष-शोक, मित्रता-शत्रुता समस्त भावों को एक समान रूप से स्वीकार करने का भाव उपस्थित हो - ‘नह निंदिआ नहिं उसतति जाकै लोभ मोह अभिमाना। हरख सोग ते रहै निआरऊ नाहि मान अपमाना’। गुरु जी का कहना है कि वैराग्यपूर्ण दृष्टि से संसार में रहते हुए सभी सकारात्मक - नकारात्मक भावों से निर्लिप्त होकर ही सुखी और सहज जीवन जिया जा सकता है।

अपने सिद्धांतों के लिए आत्मबलिदान करना बहुत बड़ी बात होती है, परंतु उससे भी बड़ी बात होती है दूसरों के सिद्धांतों और विश्वासों के लिए शहीद हो जाना। गुरु तेग बहादुर ऐसे ही अद्वितीय आत्मबलिदानी थे। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों ‘तिलक’ और ‘जनेऊ’ की रक्षा के लिए दिल्ली के शीशगंज में अपना शीश

कटाकर प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। नौवें गुरु की इस बेमिसाल कुर्बानी पर गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा- ‘तिलक जंझू राखा प्रभता का। कीनो बड़ो कलू महि साका।।’ इस अभूतपूर्व बलिदान के कारण ही उन्हें ‘हिंद की चादर - गुरु तेग बहादुर’ कहकर सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।

 डॉ. राजेंद्र साहिल 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.