क्या आप जानते हैं, घर वाले ही छोड़ जाते हैं विधवाओं को वृंदावन में
बीस साल पहले रूपाली दासी को परिजन वृंदावन छोड़ गए। तब से वह यहां रहकर कृष्ण भक्ति कर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। एक दशक पहले किराये के मकान में रहीं। भिक्षावृत्ति कर उतना ही लिया, जितने में गुजर-बसर हो जाए। इसके बाद वह मीरा सहभागिनी आश्रय सदन में रहने लगीं, जहां भोजन के लिए दो हजार रुपये मिलने लगे। ऐसी ही सैकड़ो
वृंदावन। बीस साल पहले रूपाली दासी को परिजन वृंदावन छोड़ गए। तब से वह यहां रहकर कृष्ण भक्ति कर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। किराए के मकान में रहते हुए भिक्षावृत्ति कर उतना ही लिया, जितने में गुजर-बसर हो जाए। इसके बाद वह मीरा सहभागिनी आश्रय सदन में रहने लगीं, जहां भोजन के लिए दो हजार रुपये मिलने लगे।
ऐसी ही सैकड़ों विधवाएं और निराश्रित महिलाएं ज्ञान गूदड़ी, चैतन्य बिहार, गौशाला नगर स्थित आश्रय सदनों में रह रही हैं। कई विधवाओं ने बताया कि परंपरानुसार विधवा होने के बाद परिजन उन्हें घर से दूर किसी तीर्थ स्थान पर छोड़ जाते हैं। वृंदावन चैतन्य महाप्रभु की स्थली है, इसलिए निराश्रित महिलाएं और विधवाएं हालातवश यहां आकर रहने लगीं। ये सुबह शाम श्रीकृष्ण भक्ति और भजन- कीर्तन अपना जीवन यापन कर रही हैं।
ज्ञान गूदड़ी स्थित एनजीओ सुलभ इंटरनेशनल के संजय ने बताया कि इस आश्रय सदन में पच्चीस साल से विधवाएं रह रहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चैतन्य विहार आश्रय सदन चौदह साल पहले बना, जहां 355 बंगाली और बिहारी निराश्रित महिला और विधवाओं के रहने की व्यवस्था की गई है।
यह भगवान का घर- मुर्शिदा, कोलकाता की विधवा कनकलता और सरवनखेर पश्चिम बंगाल की आरती का कहना कि वे गरीबी और परिवार की उपेक्षा के बाद यहां आईं और कृष्ण भक्ति कर अपना जीवन यापन कर रही हैं।
मिलती है सुविधा- आश्रय सदनों में रहने वाली विधवा और निराश्रितों के बीपीएल राशन कार्ड हैं। उन्हें पेंशन की सुविधा है। दो हजार रुपये प्रतिमाह सुलभ से दिए जाते हैं।
घर जाने को दी जाती है छुट्टी- आश्रय सदन में रहने वाली किसी भी निराश्रित को साल में दो महीने के लिए घर जाने की सुविधा है। इसके लिए उसे आवेदन करना पड़ता है। इसके लिए संस्था की ओर आने-जाने का किराया भी दिया जाता है।
बोले संत -संत फूलडोल बिहारी दास ने कहा कि चूंकि चैतन्य महाप्रभु प. बंगाल के थे, इस कारण श्रीधाम को वे लोग पवित्र मानते हैं। इसी कारण यहां निराश्रित और विधवाएं सैकड़ों सालों से आकर रह रहीं हैं। संत मदन बिहारी दास का कहना है कि श्रीकृष्ण भक्ति में लीन होने के लिए बंगाल की महिलाएं यहां आकर रहतीं हैं। भगवान श्रीकृष्ण की 64 हजार पटरानियां थी, भागवत पुराण के अनुसार उन्होंने उनका कल्याण किया। इसी भावना से वे यहां आकर रहती हैं।