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सावन में जितने सोमवार उतने महादेव

सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित है। सावन में बरसती हर बूंद भोलेनाथ का आर्शीवाद होता है। ऐसे में सोमवार के दिन महादेव के किस रूप की पूजा करना फलदाई होगा।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Fri, 28 Jul 2017 04:50 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jul 2017 04:50 PM (IST)
सावन में जितने सोमवार उतने महादेव
सावन में जितने सोमवार उतने महादेव

महामायाधारी
इस सावन के पहले सोमवार को महामायाधारी भगवान शिव की आराधना शुभ मानी गई। पूजा क्रिया के बाद शिव भक्तों को ‘ॐ लक्ष्मी प्रदाय ह्री ऋण मोचने श्री देहि-देहि शिवाय नम: का मंत्र माला जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। व्यापार में वृद्धि और ऋण से मुक्ति मिलती है।  

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महाकालेश्वर 

दूसरे सोमवार को महाकालेश्वर शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। श्रद्धालु को ‘ॐ महाशिवाय वरदाय हीं ऐं काम्य सिद्धि रुद्राय नम: मंत्र का रुद्राक्ष की माला से कम से कम 11  मामला जाप करना चाहिए। महाकालेश्वर की पूजा से सुखी गृहस्थ जीवन, पारिवारिक कलह से मुक्ति, पितृ दोष व तांत्रिक दोष से मुक्ति मिलती है।  

अर्द्धनारीश्वर 

सावन के इस तृतीय सोमवार को अर्द्धनारीश्वर शिव का पूजन किया जाना चाहिए। इन्हें खुश करने के लिए ‘ॐ महादेवाय सर्व कार्य सिद्धि देहि-देहि कामेश्वराय नम: मंत्र का 11 माला जाप करना श्रेष्ठ माना गया है। इनकी विशेष पूजन से अखंड सौभाग्य, पूर्ण आयु, संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, कन्या विवाह, अकाल मृत्यु निवारण व आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है।  

तंत्रेश्वर शिव 

चतुर्थ सोमवार को तंत्रेश्वर शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन कुश के आसन पर बैठकर ‘ॐ रुद्राय शत्रु संहाराय क्लीं कार्य सिद्धये महादेवाय फट् मंत्र का जाप 11 माला शिवभक्तों को करनी चाहिए। तंत्रेश्वर शिव की कृपा से समस्त बाधाओं का नाश, अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग से मुक्ति व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।  

श्री त्रयम्बकेश्वर 

पांचवें सोमवार को श्री त्रयम्बकेश्वर की पूजा की जाती है। इसमें रुद्राभिषेक, लघु रुद्री, मृत्युंजय या लघु मृत्युंजय का जाप करना चाहिए। गंजा जल, दूध, शहद, घी, शर्करा व पंचामृत से बाबा भोले का अभिषेक कर वस्त्र, यज्ञो पवित्र, श्वेत और रक्त चंदन भस्म, श्वेत मदार, कनेर, बेला, गुलाब पुष्प, बिल्वपत्र, धतुरा, बेल फल, भांग आदि चढ़ायें। उसके बाद घी का दीप उत्तर दिशा में जलाएं। पूजा करने के बाद आरती कर क्षमार्चन करें।  


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