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नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करे यह रूप अमोघ फल देने वाला है

जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं, जो दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 02:30 PM (IST)Updated: Wed, 29 Mar 2017 12:38 PM (IST)
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करे यह रूप अमोघ फल देने वाला है
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करे यह रूप अमोघ फल देने वाला है

नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं प्रथम शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पांचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

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माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं। इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा।
पूजा विधि-
देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्‍नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें। इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्‍नान करायें और फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को लाल फूल काफी पसंद है। घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।
मंत्र
अंत में क्षमा प्रार्थना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्र्वरी।
ब्रह्मचारिणी की ध्यान- वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। 
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम् गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। 
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। 
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्
मां का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। 
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुलामा।।
ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ- तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्। 
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी। 
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्
ब्रह्मचारिणी की कवच- त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी। 
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्र्वरी 
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
देवी ब्रह्मचारिणी कथा-
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं। इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया। जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है। जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होता है।

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