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क्‍यों एक इच्छा खत्म होती है दूसरी आ जाती है

क्रोध व्यर्थ है और जब मन भविष्य में रहता है तब वह उन घटनाओं को लेकर चिंतित रहता है, जो हो भी सकती है और नहीं भी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 02 Dec 2016 12:29 PM (IST)Updated: Fri, 02 Dec 2016 12:41 PM (IST)
क्‍यों एक इच्छा खत्म होती है दूसरी आ जाती है

- श्री श्री रवि शंकर, आध्यात्मिक गुरु

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तुम्हारा मन हमेशा अपनी इच्छाओं पर केन्द्रित रहता है। तुम हर समय किसी इच्छा को पाने में व्यस्त रहते हो। इससे पहले कि एक इच्छा खत्म होती है दूसरी आ जाती है, वे एक कतार में खड़ी हुई हैं!

यदि तुम मन के इस स्वभाव के बारे में चिंतन करोगे तो यह प्रश्न उठेगा की जीवन का उद्देश्य क्या है ये प्रश्न ही मनुष्यहोने का लक्षण है और हमारे अन्दर मानवीय मूल्यों को जागृत करता है।

इस प्रश्न का उत्तर ढूंढऩे की जल्दबाजी मत करो। इस प्रश्न के साथ रहो। जिसे इस प्रश्न काउत्तर मालूम है वह तुम्हें बताएगा नहीं और जो बताएगा उसे इसका उत्तर मालूम नहीं। यह प्रश्न अपनी गहराई में उतरने के लिए एक साधन है।

पुस्तकें पढक़र या इधर-उधर कुछ कर के तुम अपनी गहराई में नहीं उतर सकते यह सब एकहद तक तुमको समझ देने में सहायक तो हो सकते हैं लेकिन ये तुम्हारे उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकते। अपनी गहराई में अंदर से हम सब मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन हमें उस मुस्कुराहट का अहसास नहीं है। उस मुस्कान को पाना औरसहज, सरल और मासूम हो जाना ही बुद्धत्व है।

बुद्धत्व का अर्थ है जीवन को गहराई से जीना, किसी भी परिस्थिति में तनाव मुक्त रहना। परिस्थितियों और हालात पर प्रभाव डालना न कि उनसे प्रभावित होना। न अभाव में, न प्रभावमें बस अपने स्वभाव में।

कुछ लोग कहते हैं कि जीवन का उद्देश्य है इस पृथ्वी में वापस ना आना। कुछ और कहते हैं कि प्रेम ही जीवन का उद्देश्य है। कोई क्यों कहेंगे कि वह वापस नहीं आना चाहते? क्योंकि यहां उन्हें प्रेम नहीं मिला और अगर मिला भी तो उससे पीड़ा मिली।

अगर यह जगत अद्भुत लगे और प्रेम एवं दिव्यता से परिपूर्ण हो जाए तो यहां ना आने कि इच्छा स्वत: ही छूट जाएगी। जब हम जीवन को व्यापक दृष्टिकोण से देखते हैं तो पाते हैं कि जीवन का मूल उद्देश्य है ऐसा प्रेम जो कभी मिटे नहीं, प्रेम जो पीड़ाना दे, प्रेम जो बढ़े और हमेशा रहे।

तो कैसे तुम प्रेम की उस स्थिति तक पहुंचोगे जहां वह सभी विकृतियों से मुक्त हो और तुम अपने साथ सहजतापूर्वक रहो? तुम्हें पहचानना होगा कि वास्तव में जो तुम्हारे मासूम प्रेम में बाधक है, वह तुम्हारा अंहकार है। अंहकार केवल असहज होना है।

अंहकार का कोई अस्तित्व नहीं है, जैसे अन्धकार का कोईअस्तित्व नहीं होता है। अंधकार केवलप्रकाश का अभाव है। अंहकार नाम की कोई चीज है ही नहीं। तुम इसे परिपक्वता की कमीया शुद्ध ज्ञान की कमी कह सकते हो। अपने अंतरतम स्थिति यानि प्रेम केविकास में ज्ञान हमारा सहायक है।

प्रेम कोई कृत्य नहीं है। यह तुम्हारे अस्तित्व की स्थिति है। हम सब प्रेम केही बने हुए हैं। जब मन वर्तमान क्षण में रहताहै, तब हम प्रेम की अवस्था में रहते हैं। मन को वर्तमान में रखने के लिए थोड़े अभ्यास की आवश्यकता है। मन के स्वभाव पर ध्यान दो।

मन नकारात्मक गुण को पकड़ता है। दस प्रशंसा और एक निंदा, मन सिर्फ निंदाको ही पकड़ेगा। मन हर पल भूतकाल और भविष्य काल के बीच घूमता रहता हैं। अपनी गहराई में अंदर से हमसब मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन हमेंउस मुस्कुराहट का अहसासन हीं है।

उस मुस्कान को पानाऔर सहज, सरल और मासूम हो जाना ही बुद्धत्व है। बुद्धत्व का अर्थ है जीवन को गहराई से जीना, किसी भी परिस्थिति में तनाव मुक्त रहना।

क्रोध के छूटने के बाद प्रेम से भर जाता है मन: जब मन भूतकाल में रहता है, तब वह ऐसी किसी बात पर क्रोधित होता है जो बीत चुकी है। परंतु क्रोध व्यर्थ है और जब मन भविष्य में रहता है तब वह उन घटनाओं को लेकर चिंतित रहता है, जो हो भी सकती है और नहीं भी।

कल मेरे साथ क्या होगा? क्या तुमने ध्यान दिया कि यही प्रश्न तुमने पिछले वर्ष और दो वर्ष पूर्व भी करा था? लेकिन जब हम वर्तमान क्षण में रहते हैं और पीछे मुडक़र देखते हैं तो हमारी क्रोध और चिंता कितने निरर्थक लगते हैं। जब क्रोध और चिंता छूट जाते हैं तब मन आनंद और प्रेम से भर जाता है।


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