जानें शिव के हाथ में त्रिशूल, डमरू और गले में सांप का रहस्य
सावन के महीने में भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने का हर प्रयास करते हैं। ऐसे में हम आप को भगवान शिव के त्रिशूल, डमरू, गले में सांप और चंद्रमा के सिर पर धारण करने के बारे में बतायेंगे।
ऐसे हुई थी त्रिशूल की उत्पत्ति
भगवान शिव को सभी प्रकार के अस्त्रों के चलाने में महारथ हासिल है। पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को दो प्रमुख माना गया है। भगवान शिव के धनुष का नाम पिनाक था। जिसे विश्वकर्मा ने ऋषि दधीचि की अस्थियों से तैयार किया था। सृष्टि से आरंभ में ब्रह्रानाद से जब शिव प्रगट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत गुण भी प्रगट हुए। यही तीनों गुण शिवजी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने। सृष्टि के आरंभ में जब सरस्वती उत्पन्न हुई तो वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया। यह सुर और संगीत विहीन थी।
इसलिये चंद्रमा को धारण करते हैं शिव
भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए। इस ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई। शिवजी के गले में लिपटे नाग के बारे में पुराणों में बताया गया कि यह नागों के राजा नाग वासुकी है। वासुकी नाग भगवान शिव के परम भक्त थे इसलिए भगवान शिव ने गले में आभूषण की तरफ से हमेशा लिपटे रहने का वरदान दिया। प्रजापति दक्ष द्वारा मिले श्राप से बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके जीवन की रक्षा की और उन्हें अपने शीश पर धारण किया।