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जानें, क्‍यों माघ महीने का हर दिन इतना पवित्र होता है

इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान हो अमृत वर्षा करते हैं। इसके अंश वृक्षों, जलाशयों में होते सारे रोगों से मुक्ति दिलाने वाले गुण उत्पन्न होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 14 Jan 2017 12:54 PM (IST)Updated: Sat, 14 Jan 2017 01:13 PM (IST)
जानें, क्‍यों माघ महीने का हर दिन इतना पवित्र होता है
जानें, क्‍यों माघ महीने का हर दिन इतना पवित्र होता है

माघ एक ऐसा माह जो भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास व दसवां सौरमास कहलाता है। दरअसल मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण यह महीना माघ का महीना कहलाता है। वैसे तो इस मास का हर दिन पर्व के समान जाता है। लेकिन कुछ खास दिनों का खास महत्व भी इस महीने में हैं। उत्तर भारत में पौष पूर्णिमा के साथ ही माघ स्नान की शुरुआत हो चुकी है जिसका समापन फरवरी के माघी पूर्णिमा के दिन संपन्न होगा।

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भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ महीना है। ये सारा माह शुभ कर्मों में वृद्धि के लिए खास है लेकिन कुछ विशेष तिथियां बहुमूल्यता लेकर आती हैं।

षटतिला एकादशी - इस दिन तिलों के जल से स्नान किया जाता है, तिल का ही उबटन लगाया जाता है, तिल से ही हवन होता है व तिल मिले जल का पान, तिल का भोजन एवं तिल का दान किया जाता है। माना जाता है इससे समस्त पापों का नाश होता है। काले तिल व काली गाय के दान का भी बहुत महत्व होता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्री हरि को प्रसन्न करने का सरलतम माध्यम है षटतिला एकादशी पर तिल अथवा उससे बनी चीजों का दान, इससे पापों का नाश होता है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल जल स्नान, तिल जलपान तथा तिल पकवान का सेवन करने पर घोर से घोर पाप का नाश होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है-

तिलस्नायी तिलोद्वार्ती तिलहोमी तिलोद्की।

तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला: पापनाशना:।।

अर्थात- तिल का उबटन लगाकर, जल में तिल मिलाकर स्नान करना, तिल से हवन करना, पानी में तिल को मिलाकर पीना, तिल से बने पदार्थों का भोजन करना और तिल अथवा तिल से बनी चीजों का दान करने से सभी पापों का नाश होता है।

कृष्ण पक्ष की मौनी अमावस्या - यह दिन भी अति पवित्र होता है। इस दिन मौन रहकर या मुनियों जैसा आचरण करते हुए स्नान-दान करें। इस दिन त्रिवेणी या गंगा तट पर स्नान-दान की भी बहुत ज्यादा मान्यता है। स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्रादि का दान करना चाहिए। यदि मौनी अमावस्या का दिन रविवार, व्यतिपात योग और श्रवण नक्षत्र हो तो ‘अर्धोदय योग’ होता है। इस अवसर पर स्नान-दान का फल भी मेरू के समान मिलता है। कृष्ण पक्ष की मौनी अमावस्या पुराणों के अनुसार अमावस्या तिथि के देव पितृ माने जाते हैं इसलिए इस दिन पितृों के नाम का शुद्ध शाकाहारी भोजन किसी जनेऊधारी ब्राह्मण को अर्पित करें अगर संभव न हो तो खीर ही अर्पित कर दें।

माघ शुक्ल पंचमी बसंत पंचमी- इस दिन विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी को पूजा जाता है। ब्रह्मावैवर्त पुराण में इन देवियों का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के कंठ से होना बताया गया है।

अचला सप्तमी - माघ मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत रखा जाता है। इसका महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। उनके अनुसार इस दिन स्नान-दान, पितरों के तर्पण व सूर्य पूजा एवं वस्त्रादि दान करने से व्यक्ति बैकुंठ में जाता है। माना जाता है कि इस दिन के व्रत रखने से साल भर रविवार के दिन रखे व्रतों के समान पुण्य मिलता है। सप्तमी को अचला भानू सप्तमी भी कहा जाता है और इसे बहुत शुभ माना जाता है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी, सूर्य सप्तमी, आरोग्य सप्तमी या पुत्र सप्तमी के नाम से जाना जाता है। युधिष्ठिर को इस तिथि का महत्व बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था की इस तिथि पर स्नान-दान, पितरों के तर्पण व सूर्य पूजा एवं वस्त्रादि दान करने वाला बैकुंठ में स्थान पाता है।

भीमाष्टमी - शुक्ल पक्ष की ही अष्टमी को भीमाष्टमी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण-त्याग किया था। मान्यता है कि इस दिन स्नान-दान व माधव पूजा से मनुष्य मात्र के सब पाप कट जाते हैं। इस शुभ दिन को भीष्म अष्टमी नाम से जाना जाता है। महाभारत में कहा गया है, जो व्यक्ति माघ शुक्ल अष्टमी के दिन भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करेंगे उनके वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाएंगे।

माघ पूर्णिमा - माघी पूर्णिमा का महत्व सर्वाधिक माना गया है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होकर अमृत की वर्षा करते हैं। इसके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों में होते हैं इसलिए इनमें सारे रोगों से मुक्ति दिलाने वाले गुण उत्पन्न होते हैं। मान्यता यह भी है कि माघ पूर्णिमा में स्नान दान करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।

माघ पूर्णिमा पर चंद्रदेव बरसाते हैं अमृत। इस तिथि पर स्नान और दान करने से सूर्य-चंद्रमा युक्त दोषों से निजात मिलता है। सफलता हेतु दूध में मिश्री मिलाकर सफ़ेद शिवलिंग पर अभिषेक करें ।

इसके अतिरिक्त संपूर्ण भारत के प्रमुख तीर्थों पर माघ मास में मेलों का आयोजन होता है। प्रयाग, हरिद्वार, उत्तरकाशी आदि स्थलों पर लगने वाला माघ मेला तो बहुत विख्यात है।


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