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लोग जात-पात का भेद क्यों करते हैं

जो व्यक्ति भगवान की शरण में आ गया या भगवान की भक्ति करने लगता है उसका कोई गोत्र या जाति नहीं होती। वह केवल ईश्वर का भक्त होता है। जब भगवान की कोई जाति नहीं होती वह सभी के साथ समानता का व्यवहार करते हैं तो लोग जात-पात का भेद

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2015 11:21 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2015 11:30 AM (IST)
लोग जात-पात का भेद क्यों करते हैं

जो व्यक्ति भगवान की शरण में आ गया या भगवान की भक्ति करने लगता है उसका कोई गोत्र या जाति नहीं होती। वह केवल ईश्वर का भक्त होता है। जब भगवान की कोई जाति नहीं होती वह सभी के साथ समानता का व्यवहार करते हैं तो लोग जात-पात का भेद क्यों करते हैं? जो भगवान की शरण में आ जाता है उसका दूसरा जन्म हो जाता है।

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सागर में मिलने के बाद खत्म होता है नदियों का घमंड, घमंड से मति मलीन हो जाती है। नदियां जब तक सागर में नहीं मिल जाती तब तक उन्हें अपने नाम अर्थात गंगा, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, सिंधु या पाप विमोचनी होने का गर्व हो सकता है, लेकिन जब यही समुद्र में जाकर समा जाती हैं तो उनमें अंतर करना मुश्किल है। नदियां पृथक-पृथक नामों व गुणों से चाहे जितनी विशेषता रखती हैं, लेकिन समुद्र में मिल जाने के बाद वह केवल समुद्र का जल ही कहलाता है। माता शबरी ने भक्ति की शक्ति का बोध कराया शबरी प्रसंग में बताया कि मतंग ऋ षि के आश्रम में गुरु के आदेशानुसार नित्य राम के आगमन के लिए रास्ते की सफाई करना और आसन बनाकर उनकी प्रतीक्षा करने की भक्ति के कारण ही शबरी को राम का धाम मिला। भक्ति अनुपम सुख की जड़ होती है, जीवन में यदि संतों की सेवा का लाभ व कृपा मिल जाए तो जीवन संवर जाता है। मतंग ऋ षि जैसे गुरु की कृपा से ही शबरी को राम की भक्ति का लाभ मिला। शबरी की भक्ति ऐसी थी कि उसे भान ही नहीं था कि वह प्रभु को जूठे बेर खिला रही है और श्रीराम उसे प्रेमपूर्वक खा रहे हैं। यही बेर जब लक्ष्मण को दिए गए तो उसे लेकर पीछे फेंक दिए।

कहा जाता है कि वही बेर बाद में संजीवनी बूटी बना, जिसके कारण लक्ष्मण के प्राण बचे। आशय यह है कि जिसे भगवान ने स्वीकार किया, यदि आप उसे अस्वीकार करते हैं तो उसका परिणाम दुखद ही होगा। शबरी के भाव पूजा के कारण ही राम ने शबरी को नवधा भक्ति बताई। माता शबरी ने अपनी शक्ति की भक्ति का जनमानस को बोध कराया।


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