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साईं बाबा ने शिरडी में यहीं 1918 में समाधि ली थी

लेकिन उसकी जगह साईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी(दशहरा) का दिन था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 20 Oct 2016 01:21 PM (IST)Updated: Thu, 20 Oct 2016 01:40 PM (IST)
साईं बाबा ने शिरडी में यहीं 1918 में समाधि ली थी

शिरडी महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले की राहटा तहसील का एक क़स्बा है। यहां दुनियाभर से साईं बाबा के भक्त उनके दर्शन के लिए आते हैं। दरअसल, शिरडी में साईं बाबा का समाधि मंदिर है। कई श्रद्धालु यहां समाधि पर चादर चढ़ाते हैं।

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यह समाधि सवा दो मीटर लंबी और एक मीटर चौड़ी है। गुरुवार के दिन भक्तों का तांता बहुत अधिक रहता है। समाधि मंदिर के अलावा यहाँ द्वारकामाई का मंदिर चावडी और ताजिमखान बाबा चौक पर साईं भक्त अब्दुल्ला की झोपड़ी है। साईं बाबा ने शिरडी में यहीं 1918 में समाधि ली थी।

जन्म कहां हुआ किसी को नहीं मालूम

साईं बाबा का जन्म कब और कहां हुआ ? इसके बारे में प्रमाणिक जानकारी आज तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। मान्यता है कि महज 16 वर्ष की उम्र में साईं बाबा शिरडी आए थे और फिर वहीं रहने लगे। ताउम्र फकीर की तरह जीवन यापन कर उन्होंने श्रद्धा और सबूरी का संदेश दिया। उनका मत था 'सबका मालिक एक है'।

महासमाधि लेने का कारण

कहते हैं कि दशहरे के कुछ दिन पहले ही साईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचंद्र पाटिल को विजयादशमी पर 'तात्या' की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई साईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, साईं बाबा को मामा कहकर संबोधित करते थे। इस तरह साईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया।

27 सितंबर 1918, साईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न,जल सब कुछ त्याग दिया।

बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह साईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी(दशहरा) का दिन था।


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