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कर्म में परिणाम की चिंता क्यों ?

कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है। व्याख्या : यदि प्रकृति सभी से कर्म करवाती है, तो कुछ लोग अकर्मण्य क्यों है? यह प्रश्न उठ सकता है। लेकिन दरअसल

By Edited By: Published: Mon, 22 Sep 2014 01:36 PM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 02:04 PM (IST)
कर्म में परिणाम की चिंता क्यों ?

कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है।

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व्याख्या : यदि प्रकृति सभी से कर्म करवाती है, तो कुछ लोग अकर्मण्य क्यों है?

यह प्रश्न उठ सकता है। लेकिन दरअसल गीता ने खाली बैठने को भी एक कर्म कहा है, जिसका गलत परिणाम मिलता है। आपको अपयश मिल सकता है, अर्थ और समय की हानि हो सकती है। इससे बेहतर है खाली बैठने के बजाय कुछ करें और उसका अच्छा परिणाम प्राप्त करें। हां, कई लोग बुरा परिणाम आने के डर से कुछ काम शुरू नहींकरते। हमें परिणाम की चिंता छोड़कर कर्म करना चाहिए। यदि कर्म पूरे मन से किया गया होगा, तो उसका अच्छा फल मिलना निश्चित है। इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा कर्म उत्कृष्ट हो।


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