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क्‍या है हिंदू देवियों का रहस्य

हिंदू धर्म की प्रमुख त्रिदेवियों में से एक माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है। हंस पर विराजमान मां सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। संगीत, कला, शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं सरस्वती। सरस्वती के नाम पर

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 12 Feb 2016 12:37 PM (IST)Updated: Fri, 12 Feb 2016 12:48 PM (IST)
क्‍या है हिंदू देवियों का रहस्य

सरस्वती

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हिंदू धर्म की प्रमुख त्रिदेवियों में से एक माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है। हंस पर विराजमान मां सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। संगीत, कला, शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं सरस्वती। सरस्वती के नाम पर ही एक नदी का नाम सरस्वती था, जो प्राचीनकाल में शिवालिक की पहाडि़यों से निकलकर हरियाणा और राजस्थान में बहती थी और सिंधु खाड़ी में समाहित हो जाती थी।

माता लक्ष्मी - भगवान विष्णु की पत्नी और ऋषि भृगु की पुत्री देवी लक्ष्मी त्रिदेवियों में से एक हैं, जो धन और समृद्धि को देने वाली मानी गई हैं। लक्ष्मी माता का वाहन उल्लू है और वह लक्ष्मी क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ कमल पर वास करती हैं। लक्ष्मीजी को 2 रूपों में पूजा जाता है, श्रीरूप और लक्ष्मी रूप। इनका विशेष दिन शुक्रवार को माना गया है। भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र कहे गए हैं जिसमें प्रमुख हैं, आनंद, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत।

गायत्री- गायत्री नाम से ऋग्वेद में एक सबसे लंबा छंद है। गायत्री को आद्याशक्ति प्रकृति के 5 स्वरूपों में एक माना गया है। यही वेद माता कहलाती हैं। किसी समय ये सविता देव की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं इसलिए इनका नाम सावित्री पड़ गया। इनका विग्रह तपाए हुए स्वर्ण के समान है। वेदों में अदिति के अलावा सविता का भी कई जगहों पर उल्लेख मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार वज्रनाश नामक राक्षस का वध करने के पश्चात ब्रह्माजी ने संसार की भलाई के लिए पुष्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्माजी यज्ञ करने हेतु पुष्कर पहुंच गए, लेकिन किसी कारणवश सावित्री जी समय पर नहीं पहुंच सकीं। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से उन्होंने एक कन्या गायत्री से विवाह कर यज्ञ शुरू किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंचीं और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, तब सावित्री से सभी देवताओं ने विनती की कि अपना श्राप वापस ले लीजिए, लेकिन उन्होंने नहीं लिया। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी।

श्रद्धा - श्रद्धा कर्दम ऋषि एवं देवहूति की तृतीय कन्या थी। श्रद्धा का विवाह अंगिरा ऋषि के साथ हुआ था। अंगिरा और श्रद्धा से सिनीबाला, कुहु, राका एवं अनुमति नामक पुत्रियां तथा तथ्य और बृहस्पति नामक पुत्र हुए। बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं।

शचि - शचि स्कंद पुराण के पुलोमा पुत्री शचि का भी वेदों में उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शचि ने देवराज इंद्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ज्वालपाधाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की थी। मां पार्वती ने शचि की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन दिए और शचि की मनोकामना पूर्ण की। जहां मां ने दर्शन दिए थे वह स्थान उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में है। यहां माता ज्वाला देवी का एक मंदिर है। देवी शचि को इंद्राणी कहा जाता है। इंद्राणी देवी शचि ने अपने पति इंद्र के हाथ में ब्राह्मणों द्वारा रक्षा सूत्र बंधवाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उस समय देवासुर संग्राम चल रहा था। रक्षासूत्र बांधकर जब इंद्र ने युद्ध किया तो वे विजयी हुए। कुछ लोगों का मानना है कि तभी से रक्षाबंधन का यह पर्व शुरू हुआ।

सावित्री - ब्रह्मा की पत्नी का नाम सावित्री देवी है। ब्रह्मा ने एक और स्त्री से विवाह किया था जिसका नाम गायत्री है। सावित्री की एक पुत्री का नाम सरस्वती है।


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