व्रत और पूजा में क्या अंतर है
यहां तन का मतलब शरीर है। मंत्र वह, जहां ध्यान होता है, जो मन से होता है। वहीं यज्ञ में यंत्र का इस्तेमाल होता है।
यज्ञ आदमियों द्वारा किया जाता है। इसमें अलग-अलग प्रकार के पुजारी शामिल होते हैं। यज्ञ में पुरुषों की प्रधानता मानी जाती है-ऋत्विक, उद्गात्र इत्यादि सब पुरुष हैं। यदि हम व्रत की बात करते हैं, तो यह रीति औरतों के लिए मानी जाती है। व्रत में मूर्तियों या मंदिरों की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
आप मन में देवताओं को पूज सकते हैं। जब आप व्रत रखते हैं, तो आप बिना पानी के भी रख सकते हैं। खाने में क्या खाना है, यह भी तय कर सकते हैं। जैसे संतोषी मां के लिए सिर्फ चना और गुड़ को प्रसाद में लिया जाता है। व्रत के दौरान जागरण भी किया जा सकता है। यह सब आपके शरीर के जरिए हो रहा है, जहां आपका शरीर प्रभु तक पहुंचने का तरीका है। व्रत बिना ताम-झाम की पूजा है, जिसमें तन और मंत्र को लगाया जाता है। यहां तन का मतलब शरीर है। मंत्र वह, जहां ध्यान होता है, जो मन से होता है। वहीं यज्ञ में यंत्र का इस्तेमाल होता है।