देव दीपावली क्या है
शिशिर खास तौर पर देव दीपावली की भव्यता को निहारने कमोवेश वर्ष-दो वर्ष में एक बार काशी चले आते हैं। उन्होंने कई तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद कीं। लेकिन अबकी तस्वीरों में वो मजा नहीं आया जो इससे पहले दिखता था। दूधिया रोशनी का प्रभाव नकारात्मक भाव में दीप
वाराणसी। शिशिर खास तौर पर देव दीपावली की भव्यता को निहारने कमोवेश वर्ष-दो वर्ष में एक बार काशी चले आते हैं। उन्होंने कई तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद कीं। लेकिन अबकी तस्वीरों में वो मजा नहीं आया जो इससे पहले दिखता था। दूधिया रोशनी का प्रभाव नकारात्मक भाव में दीप पर्व की आभा पर पड़ता दिखा।
ऐसा महसूस करने वाले कई देसी-विदेशी सैलानी रहे जो सिर्फ एक फोटो कलाकार के रूप में इस पर्व को कैमरों में कैद करने आते हैं। ऐसा नहीं है कि पक्के घाटों को दूधिया रोशनी में नहवाए जाने को लेकर आपत्ति नहीं की गई। केंद्र सरकार तक से शिकायत की गई लेकिन छह माह से अधिक बीत जाने पर भी कोई कवायद नहीं हुई। कुछ माह पूर्व आए केंद्रीय पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा के संज्ञान में जब यह समस्या लाई गई तो उन्होंने भी शीघ्र निदान का भरोसा दिलाया था लेकिन बात बन न सकी।गुलेरिया घाट की जगमगाती सीढ़ियां।
रोशनी में दीवार
देव दीपावली क्या है? सहज नजरिए की बात करें तो रोशनी का पर्व। यह काशी में इसलिए खास क्योंकि यहां के पथरीले घाट की सीढ़ियों पर सजे दीपों की टिमटिमाहट गंगा की शांत लहरों में भव्यता के साथ डूबती-उतराती हैं। 84 घाटों की श्रृंखला दीप माला की तरह सजी दिखती है। अबकी यह दीपमाला अपनी दिव्यता को लेकर जद्दोजहद करती दिखी। मानो रार सी मची थी श्वेत और पीत रोशनी के बीच।
यह रार कायदे से देखी गई। सैलानियों ने महसूस किया, खास नजर रखने वाले पूरे दीप पर्व के दौरान इसे लेकर चर्चा करते दिखे। उन्हें घाटों पर अबकी लगी एलईडी लाइट की दूधिया रोशनी के बीच पीली टिमटिमाहट बिखेरते दीपों की छटपटाहट रास नहीं आई।