भारत में एक गांव ऐसा जहां देवता के साथ दौड़ लगाते हैं ग्रामीण
उत्तराखंड के टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है, जहां ग्रामीण देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं। यहां आयोजित होने वाले गुरु कैलापीर मेले में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

नई टिहरी। उत्तराखंड के टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है, जहां ग्रामीण देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं। यहां आयोजित होने वाले गुरु कैलापीर मेले में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि अच्छी उपज और खुशहाली के लिए ग्रामीण देवता के साथ दौड़ते हैं। अगर आप भी इस मेले के साक्षी बनना चाहते हैं तो चले आइए टिहरी। इस बार यह मेला 12 दिसंबर को शुरू हो रहा है। जानते हैं पूरी कहानी।
हम बात कर रहे हैं टिहरी जनपद से भिलंगना ब्लॉक के बूढ़ाकेदार गांव की। यहां सदियों से तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेले का आयोजन किया जाता है। मेले के पहले दिन सुबह देवता को नहलाने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है।
उसके बाद दोपहर को ग्रामीण ढोल-नगाड़ों के साथ मंदिर परिसर में पहुंचते हैं जहां दो बजे देवता के दर्शन के लिए उन्हें मंदिर से बाहर निकाला जाता है। इसके बाद आगे देवता का निशान और पीछे ग्रामीण खेतों तक जाते हैं। इन दिनों खेतों में गेहूं की फसल बोई रहती है।
इसके बाद देवता के निशान को लेकर पश्वा (जिस पर देवता के भाव आते हैं) आगे दौड़ता है और देवता के पीछे ग्रामीण दौड़ लगाते हैं। सीढ़ीनुमा खेतों के दोनों ओर सात चक्कर लगाए जाते हैं। अंतिम चक्कर में पुआल लेकर ग्रामीण देवता के निशान के साथ दौड़ते हैं।
दौड़ समाप्त होने पर उन्हें पुआल चढ़ाया जाता है। कई लोग अपनी समस्याओं को लेकर देवता के पास पहुंचते हैं जिन्हें देवता आशीर्वाद देकर उनकी समस्याओं का निराकरण करते हैं। सूरज ढ़लने से पहले देवता को मंदिर में प्रवेश कराया जाता है।
इस दौड़ में शामिल होने के लिए महानगरों में काम करने वाले ग्रामीण भी गांव पहुंच रहे हैं। कार्तिक की दीवाली के एक महीने बाद बूढ़ाकेदार क्षेत्र में यहां दो दिन की दीवाली मनाई जाती है। मेला समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि देवता के साथ दौड़ लगाने की काफी पुरानी परंपरा है।
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