ज्योतिष में शुक्र ग्रह को प्रेम वासना का प्रतीक भोग का कारक माना गया है
जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ज्यादा प्रभावी है, उस जातक के लिए संसार में सब कुछ मौजूद रहता है लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह दुखी रहता है।
भारतीय ज्योतिष में शुक्र ग्रह को भोग का कारक माना गया है। अमूमन देखा गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ज्यादा प्रभावी है, उस जातक के लिए संसार में सब कुछ मौजूद रहता है लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह दुखी रहता है। ये तो बात हुई शुक्र ग्रह के प्रभाव की, लेकिन शुक्र ग्रह की पौराणिक कहानी भी बहुत रोचक है।
शुक्र महर्षि भृगु के पुत्र हैं। जिस तरह देवों के गुरु बृहस्पति हैं, ठीक उसी तरह शुक्र दानवों के गुरु हैं। इसलिए बृहस्पतिदेव से शुक्र की कभी नहीं बनती है। शुक्र असुरराज बली के गुरु थे। इनकी पत्नी का नाम सुषमा और पुत्री का नाम देवयानी था।
हरवंश पुराण में वर्णित है कि एक बार शुक्र ने भगवान शिव से पूछा कि असुर देवताओं से कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? तब शिव ने उन्हें तप का मार्ग बताया। शुक्र तप के लिए वन चले गए। उन्होंने कई वर्षों तक तप किया।
जब शुक्र तप कर रहे थे। उस दौरान धरती पर देवताओं और असुरों का युद्ध हुआ। देवासुर संग्राम में विष्णु जी ने शुक्र की माता का वध किया। जब शुक्र तप करके लौटे, उन्होंने वरदान स्वरूप शिव से मृत संजीवनी मंत्र की दीक्षा प्राप्त की थी। जिससे वो मृत व्यक्ति को जीवित कर देते थे।
उनकी मां मर चुकी है जब यह बात शुक्र को पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दिया कि वह पृथ्वी पर 7 बार मानव रूप में जन्म लेंगे। लेकिन यही शाप श्रीहरि के लिए वरदान बना और दैत्यों के लिए शाप। सात बार मानव रूप में जन्म लेकर श्रीहरि ने अत्याचारी दैत्यों का संहार किया।
शुक्र ने श्रीहरि को शाप देने के बाद मृतसंजीवनी विद्या से सभी मृत दानवों और अपनी मां को जीवित किया। यही विद्या शुक्र ने पुत्री देवयानी के माध्यम से कच को सिखाई थी। लेकिन इस बार पुनः शुक्र ने तप किया।
तप को भंग करने के लिए इंद्र ने अपनी पुत्र जयंती को भेजा। लेकिन वह शुक्र के तप को भंग नहीं कर सकीं। तप के बाद शुक्र ने इंद्र की पुत्री जयंती से विवाह कर लिया था। शुक्र जिन्हें शुक्राचार्य भी कहा जाता था एक बेहतर राजनीतिज्ञ थे। इस बात का उल्लेख हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। शुक्रचार्य ने 'शुक्रनीति' नाम से एक ग्रंथ की रचना की थी।