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उड़त अबीर कुमकुम-गुलाल, रहयो सकल ब्रज छाए

ब्रज के नगर-नगर, डगर-डगर, कुंज-निकुंज में मस्ती की बहार छाई है। फागुनी रसरंग का सुरूर सबको सराबोर कर रहा है। राधा श्याम संग होली खेलने को उत्साहित हैं, मगर श्याम को बुलाए कैसे? होली खेलन का संदेशा देकर छबीली राधा ने गुरुवार को अपनी सखी को नंदभवन भेजा।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 27 Feb 2015 02:07 PM (IST)Updated: Fri, 27 Feb 2015 02:14 PM (IST)
उड़त अबीर कुमकुम-गुलाल, रहयो सकल ब्रज छाए

बरसाना (मथुरा)। ब्रज के नगर-नगर, डगर-डगर, कुंज-निकुंज में मस्ती की बहार छाई है। फागुनी रसरंग का सुरूर सबको सराबोर कर रहा है। राधा श्याम संग होली खेलने को उत्साहित हैं, मगर श्याम को बुलाए कैसे? होली खेलन का संदेशा देकर छबीली राधा ने गुरुवार को अपनी सखी को नंदभवन भेजा।

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प्रेम भरे बुलावे के साथ ही चुनौती भी भेजी- आ जइयो श्याम बरसाने, लठियन से मजा चखा दूंगी। कान्हा तो बुलावे के इंतजार में थे ही, सो चुनौती सहर्ष स्वीकार कर ली। सखी ने जब बरसाना लौटकर कान्हा की हामी बताई, तो खुशी के मारे सब पागल हो गए। इतने लड्डू लुटाए गए कि मानो बरसात हो गई। राधारानी के प्रसाद स्वरूप इन लड्डुओं को लपकने के कोई झोली फैलाए रहा, तो कोई लपक रहा था।

उधर, नंदगांव में कान्हा ने भी सखाओं

से कह दिया- राधा ने बुलायो है, शुक्रवार को सब चलंगे लठामार होली खेलन, बरजोरी करेंगे।

गुरुवार को बरसाना की सुबह कुछ खास

तरह की किरणें लेकर निखरी। चारोंओर होली की उमंग-तरंग फैलने लगी। 'उड़त अबीर कुमकुम-गुलाल, रहयो सकल ब्रज छाएÓ।

बरसाना में त्रिभुवन का आनंद बरसा। गुलाल और अबीर के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे। केसर की खुशबू से समूचा भानु भवन महक रहा था। इधर, बरसाना के श्रीजी (लाडलीजी) मंदिर में सुबह से ही होली के मतवालों का पहुंचना शुरू हो गया। अपराह्न तक मंदिर का आंगन और छत पूरी तरह श्रद्धालुओं से लबालब हो गई। मंदिर की सीढि़यों पर धक्का-मुक्की हो रही थी। सभी मंदिर के अंदर समा जाना चाहते थे।

पौने चार बजे फाग गायन और नृत्य का दौर शुरू हो गया। 'बिरज में खेलत फाग मुरारी, चहुंओर दिस रंग-गुलाल उड़त है। धार कनक पिचकारी, ललिता-बिशाखा रंग बनावैÓ, 'श्याम रंग चित्त चढ़यौ है, रंग न दूजौ भावैÓ, 'तेरे आएंगे आजु सखी, हरि खेलन को फागु रेÓ जैसे एक के बाद एक होली के गीत हुरियारे और हुरियारिन गा रहे

थे। गीतों पर राधा रानी जी की सखियां और कान्हा के सखा थिरक रहे थे। पांच बजने से पहले गोस्वामी ने लड्डुओं से श्रीजी का भोग लगाया और यह प्रसाद उपहार स्वरूप नंदगांव से आए पांडा को दे दिया। भोग के साथ

ही मंदिर के पट खुल गए।

पांडा ने लड्डुओं के प्रसाद को हवा में उछालना शुरू किया। इसके साथ ही राधा रानी के दर्शन और प्रसाद के लड्डू लूटने के लिए होड़ लग गई। लपकने के लिए कोई उछल रहा था, तो कोई झोली फैलाए था। श्रद्धालु भी साथ लाए लड्डू उछालने लगे। कोई प्रसाद पाने में सफल हुआ, तो कोई जमीन पर गिरी थोड़ी सी बूंदी से ही तृप्त हो

गया। इसके बाद मंदिर में अबीर-गुलाल की होली शुरू हो गई। मंदिर के बाहर भी लोग गुलाल से होली खेलते रहे। राधा रानी के गांव में देसी-विदेशी लोग होली की मस्ती लेते नजर आए। गोस्वामी समाज के लोग ढप

और मृदंग की संगत पर पदगायन कर रहे थे। आस्था, उल्लास व मस्ती की त्रिवेणी की लहरें करोड़ों कामदेवों के पांव उखाड़ रही थी। मुखिया रामभरासे गोस्वामी, लीलाधर गोस्वामी, सत्यनारायण गोस्वामी, गोविंदा

गोस्वामी, उमाशंकर गोस्वामी, रसिक गोस्वामी, नंदकिशोर गोस्वामी, मुरारी लाल गोस्वामी, छैल बिहारी

गोस्वामी, बाबू लाल गोस्वामी, रास बिहारी गोस्वामी, रामहरि गोस्वामी, बृजेश गोस्वामी, हरिओम

गोस्वामी आदि ने समाज गायन किया।

इसके उपरांत रंगीली होली की दूसरी चौपाई निकाली गई। श्याम को लीनें होरी खेलन बुलाय

27 फरवरी को बरसाना में लठामार होली

28 फरवरी को नंदगांव और रावल में होली

1 मार्च को वृंदावन में बांकेबिहारी मंदिर में रंग भरनी होली और श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली

2 मार्च को गोकुल में छड़ी होली

5 मार्च को होलिका दहन

6 मार्च को धूलेड़ी६

7 मार्च को दाऊजी, जाब, नंदगांव का हुरंगा, मुखरई का चरकुला।


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