संकटमोचन समारोह: हनुमत दरबार में प्रभु राम नाम की वर्षा
संकट मोचन दरबार में गुरुवार को हनुमत प्रभु के आराध्य देव श्रीराम नाम की वर्षा हुई। काशी के कलाकारों ने पहली बार नाट्य का मंचन किया। इसमें भावों से राम की शक्ति आराधना के भाव सजाए। सुर साज की झंकार और राग रागिनियों ने भी मर्यादा पुरुषोत्तम की महिमा का
वाराणसी। संकट मोचन दरबार में गुरुवार को हनुमत प्रभु के आराध्य देव श्रीराम नाम की वर्षा हुई। काशी के कलाकारों ने पहली बार नाट्य का मंचन किया। इसमें भावों से राम की शक्ति आराधना के भाव सजाए। सुर साज की झंकार और राग रागिनियों ने भी मर्यादा पुरुषोत्तम की महिमा का बखान किया। राम नाम की इस फुहार में श्रोता पूरी रात विभोर मन भींगते रहे। परिसर जय श्रीराम, जय हनुमान व हर हर महादेव के उद्घोष से गूंजता रहा।
संकट मोचन संगीत समारोह की दूसरी निशा में परंपरा का मान रखते हुए प्रयोगों का इतिहास समेटे इस मंच पर रूपवाणी के ने नृत्य नाटिका राम की शक्ति पूजा की प्रस्तुति की। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की इस रचना को धीरेंद्र मोहन की परिकल्पना के अनुसार कलाकारों ने सधे अंदाज में सजाया। राम रावण युद्ध प्रसंग जिसमें विजय के लिए प्रभु शक्ति संधान करते हैं। इसमें व्यवधान के बाद साधना भाव देख अंतत: देवी प्रगट होती हैं और राम में विलीन हो जाती हैं। व्योमेश शुक्ल निर्देशित नाट्य में स्वाति, नंदिनी, तापस, काजोल, मीनाक्षी, जय, वंशिका, साखी आदि ने भूमिका निभाई।
मुंबई के पं. रतन शर्मा ने राग विहाग में बड़ा ख्याल कैसे सुख सोऊं नींद न आए... व छोटा ख्याल लट उलझे सुलझाया बालम... प्रस्तुत किया। वन चले राम रघुराई.. भजन व मृग नयनी को यार नवल रसिया... से विभोर किया। तबला पर पं. रामकुमार मिश्र व हारमोनियम पर पं. दिनकर शर्मा ने संगत की। मुंबई के पं. भवानी शंकर ने पखावज और फजल कुरैशी ने तबला पर जुगलबंदी की। तीन ताल में अलाप व पारंपरिक प्रस्तुतियां दीं। पं. भवानी शंकर ने अपने पिता स्व. बाबूलाल रचित छंद व पखावज की पढ़ंत पेश की। हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मिश्र ने संगत की।
कोलकाता के शास्त्रीय गायक पं. अजय चक्रवर्ती ने राग काफी में बड़ा ख्याल मेरे मन में बसो राम... व छोटा ख्याल जाके प्रिय न राम वैदेही... सुनाया। धमार सियराम प्रेम पियूष पूरन.. के साथ ही भजन प्रस्तुत किया। तबला पर पं. कुमार बोस व हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मिश्र ने साथ दिया। देर रात तक श्रोताओं को पं. विश्वमोहन भïट्ट व पं. कृष्ण मोहन भïट्ट की मोहन वीणा व सितार की जुगलबंदी के साथ ही पं. जसराज के शास्त्रीय गायन का इंतजार था।