रामकथा का गायन करने से वाणी की शुद्धि होती है
भगवान ने जो हमें समय प्रदान किया है, उसमें से कुछ समय निकालकर ऐसे लोगों के लिए काम करें, जिनका कोई आधार नहीं है, अर्थात जो बेसहारा हैं।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि भगवान ने जो हमें समय प्रदान किया है, उसमें से कुछ
समय निकालकर ऐसे लोगों के लिए काम करें, जिनका कोई आधार नहीं है, अर्थात जो बेसहारा हैं। उन्हें सहारा
दें। उसके झोंपड़े में दिए जलाएं। ऐसे शुभ मनोरथ जिनके होंगे, वे ही कपटरहित रामकथा गाएंगे। उनकी
मनोकामना रामकथा सिद्ध करेगी।
सिद्धि आठ प्रकार की होती है। राम कथा का पाठ करते हुए हमें यदि आठ प्रकार की सिद्धि आए , वह अष्टसिद्धि
और नौ प्रकार की भक्ति आए, वह नवनिधि। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा है अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता।
प्रथम शुद्धि तनशुद्धि। कई लोग बिना वर्षा के स्नान ही नहीं करते। कोई पूछे तो कहे मेरा काम अवधूत जैसा। पर
ऐसे लोग अवधूत नहीं, उपेक्षित हो जाते हैं। दूसरी है मानव मन की शुद्धि। मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की। मन को पूरी तरह शुद्ध किए कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो सकता है। तीसरी शुद्धि धन की शुद्धि। भगवत संबंधी कार्य या दूसरों के कार्य में यदि रुपया खर्च हो जाए, तो वह धन की शुद्धि है। रामायण से आदमी के चित्त की शुद्धि होती है। चित्त पवित्र होता है। चित्त के विक्षेप दूर होते हैं। पांचवीं शुद्धि का नाम अहंकार की शुद्धि है। आदमी का अहंकार धीरे-धीरे विगलित होता है। छठी शुद्धि वचनशुद्धि है। शब्द वचनशुद्धि है, पर इससे भी ऊंची वचनशुद्धि होनी चाहिए।
रामकथा का गायन करने से वाणी की शुद्धि होती है। वाणी पवित्र होती है। सांतवी शुद्धि नयनशुद्धि है। दृष्टि
साफ होती है। रामायण स्वयं सद्गुरु है। यह हम सबको दिव्यं ददामि ते चक्षु: इस न्याय से दिव्य दृष्टि दे। आखिर में बहुत जिम्मेदारी से और निवेदन कर इन आठ प्रकार की शुद्धिओं को सिद्धि कहता हूं। तब रामायण की कथा से पूरे कुल की शुद्धि होती है। सभी मैल यह कथा धो डालती है।
परमात्मा की इस कथा का मुख्य विचार मानस-कथा है। आदमी की मनोकामना तीन प्रकार की होती है। राजसी,
तामसी और सात्विक मनोकामना। राजसी मनोकामना का मतलब धन बढ़ने और कीर्ति फैलने से है। तामसी से
मतलब सबसे अधिक बलशाली होने से है। सभी से श्रेष्ठ और बलवान मैं ही रहूं। यदि कोई यह मनोकामना करता
है कि मेरे द्वार पर आए व्यक्ति को मैं भूखा न रहने दूं, अच्छे कार्य में सहयोगी बनूं और सत्संग करूं, तो ऐसी
सारी मनोकामनाएं सात्विक हैं।
मनोकामना की शुद्धि करनेवाली यह कथा भगवान शंकर ने देवी जगदंबा से पूछी थी। दरअसल, रामतत्व इतना गूढ़ है कि जल्दी किसी को समझ में नहीं आता है। भगवान शंकर चौपाई गाते हैं बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
हे पार्वती, राम वह हैं, जो बिना पांव के चलें, बिना हाथ के सबके काम कर दे। रामतत्व वह है, जो बिना वाणी के
जगत का सबसे बड़ा वक्ता है। बिना शरीर के सभी का शरीर स्पर्श करता है। राम की ऐसी अलौकिक करनी है।
वे इंद्रियातीत हैं। उनकी महिमा वेद भी नहीं कह सके। कार्य-कारण सिद्धांत जगत को लागू करना पड़ता है, पर
जगदीश को नहीं। भगवान शंकर कहते हैं कि हे पार्वती, जब धर्म को नुकसान हो, चारों तरफ अधर्म और अनीति
फैल जाए, तब परमात्मा बहुविध रूप धारण कर पृथ्वी पर पधारते हैं।
तुलसीदास जी लिखते हैं कि परमात्मा के प्रकट होने की आकाशवाणी होती है और प्रभु श्री राम अयोध्या के राजा
दशरथ और मां कौशल्या के यहां अवतरित होते हैं।